“छुरा नगर पंचायत का नया कारनामा: टेंडर बाद में, काम पहले! पारदर्शिता पर फिर उठे सवाल”

गरियाबंद/छुरा (गंगा प्रकाश)। छुरा नगर पंचायत एक बार फिर सवालों के घेरे में है। इस बार मामला केवल लापरवाही या अनियमितता तक सीमित नहीं, बल्कि शासन की पारदर्शी व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाने वाला है। नगर पंचायत ने 17 अप्रैल को 8 लाख रुपये की लागत से छह नलकूपों के खनन हेतु निविदा (टेंडर) जारी की—जिसकी अंतिम तिथि 8 मई रखी गई है। लेकिन हैरत की बात यह है कि जिन कार्यों के लिए टेंडर निकाला गया, वे तो निविदा जारी होने से पहले ही पूरे हो चुके थे!

“टेंडर जारी, लेकिन नलकूप पहले से खुदे!”
सूत्रों की मानें तो वार्ड क्रमांक 1, 4, 10 और 12 में नलकूप खुदाई का काम लगभग एक माह पहले ही पूरा कर लिया गया था। यानी टेंडर तो बस कागजी औपचारिकता थी—सरकारी धन के दुरुपयोग की एक और कहानी!
शासन के नियमों की खुली उड़ाई धज्जियाँ
राज्य शासन के क्रय नियम साफ कहते हैं कि किसी भी सरकारी कार्य के लिए सार्वजनिक निविदा अनिवार्य है—और वह भी पूरी प्रक्रिया के तहत। केवल आपातकालीन स्थिति में सीधी क्रय की अनुमति होती है, वह भी उचित दस्तावेज और स्वीकृति के साथ। इस मामले में न तो कोई वैध निविदा पहले निकाली गई, न ही कोई आपात प्रस्ताव पारित हुआ। बावजूद इसके, ठेकेदार द्वारा कार्य करवा लिया गया!
CMO ने दी सफाई, लेकिन सवाल अब भी कायम
मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) लालसिंह मरकाम ने जब जवाब दिया तो उन्होंने पानी की किल्लत को आधार बनाते हुए इसे “अत्यावश्यक कार्य” बताया। लेकिन अगर यह वाकई आपातकालीन था, तो पीआईएसी प्रस्ताव के ज़रिए इसे स्वीकृत किया जा सकता था। सवाल ये भी उठ रहा है कि यदि काम पहले से पूरा था, तो टेंडर जारी करने की नौटंकी क्यों?
जनता भड़की: “यह टेंडर नहीं, टेंडर गेम है!”
नगरवासियों ने इस पूरे मामले को “टेंडर गेम” करार देते हुए गंभीर संदेह जताया कि यह सब एक खास ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए रचा गया षड्यंत्र है। लोगों ने जिलाधिकारी से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
अब क्या होगा?
यह मामला न केवल शासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कुछ अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर किस तरह से जनता की आँखों में धूल झोंकते हैं। क्या अब इस पर कोई कार्रवाई होगी या फिर यह भी फाइलों में दफन होकर रह जाएगा?