पाली के प्राचीन शिवमंदिर के पास बिना अनुमति राखड़ डंपिंग, मंदिर के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। पाली क्षेत्र स्थित ऐतिहासिक महादेव शिवमंदिर, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है, उसके समीप बिना अनुमति के राखड़ डंपिंग का मामला सामने आया है। उड़ती राखड़ से 9वीं शताब्दी के इस प्राचीन मंदिर के पत्थरों और कलाकृतियों को नुकसान पहुँचने लगा है, जिससे इसके अस्तित्व पर संकट गहराता दिख रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि विभागीय अधिकारी अब तक इस मामले से बेखबर बने हुए हैं।
निषिद्ध क्षेत्र में बिना अनुमति हो रहा कार्य
भारतीय पुरातत्व अधिनियम के अनुसार किसी भी संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के भीतर किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य, खुदाई या निजी गतिविधि पर सख्त प्रतिबंध है। यह नियम प्राचीन स्मारकों और पुरास्थलों की सुरक्षा के उद्देश्य से लागू किया गया है।
पाली का महादेव शिवमंदिर भी इसी अधिनियम के तहत संरक्षित है। बावजूद इसके, बीते कुछ दिनों से मंदिर से मात्र 20 मीटर की दूरी पर सरकारी योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर राखड़ डंपिंग कराई जा रही है। उड़ती राखड़ मंदिर की प्राचीन शिल्पकला, पत्थरों और संरचना को नुकसान पहुँचा रही है।
ऐतिहासिक धरोहर का गौरवमयी इतिहास
पाली का यह शिवमंदिर नागर शैली में निर्मित एक भव्य सप्तरथ मंदिर है। इसका निर्माण वाणवंशी राजा प्रथम विक्रमादित्य द्वारा 870 से 900 ईस्वी के बीच कराया गया था। बाद में कल्चुरी वंश के शासक जाजल्वदेव प्रथम ने इसका जीर्णोद्धार कराया।
इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर उस कालखंड का प्रतीक है जब त्रिपुरी के कल्चुरी राजाओं ने कौशल प्रदेश (पाली) पर अधिकार स्थापित किया था। मंदिर के स्तंभों और मंडप में उस समय के विभिन्न राजाओं के अभिलेख आज भी सुरक्षित हैं, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं।
यह शिवमंदिर न केवल पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक आस्था, तीर्थाटन और पर्यटन के लिहाज से भी एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
विभागीय उदासीनता पर उठे सवाल
राखड़ डंपिंग के कारण मंदिर की दीवारों, शिल्पों और पत्थरों पर राख की परत जम रही है, जिससे इनके क्षरण की गति तेज हो सकती है। इससे मंदिर की मूल संरचना को स्थायी नुकसान पहुँचने का खतरा है।
स्थानीय नागरिकों, इतिहास प्रेमियों और पुरातत्वविदों ने इस अवैध गतिविधि पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि समय रहते इस कार्य पर रोक नहीं लगी तो यह ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल एक कहानी बनकर रह जाएगी।
अब सवाल उठ रहे हैं कि जब इतना महत्वपूर्ण स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है, तो फिर विभाग की निगरानी व्यवस्था इतनी लचर क्यों है? स्थानीय लोगों ने मांग की है कि इस मामले में त्वरित जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और मंदिर के आसपास तत्काल प्रभाव से सभी गतिविधियाँ बंद करवाई जाएं।
निष्कर्ष
पाली का ऐतिहासिक शिवमंदिर छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश की अमूल्य धरोहरों में से एक है। ऐसी धरोहरों की सुरक्षा हम सभी की जिम्मेदारी है। विभागीय लापरवाही और नियमों के उल्लंघन से यदि इस मंदिर को क्षति पहुँचती है तो यह इतिहास, संस्कृति और आस्था सभी के लिए अपूरणीय क्षति होगी।