Cgnews: विशेष न्यायालय का कड़ा प्रहार — मासूम के साथ दरिंदगी करने वाले को 10 साल की सश्रम कैद!

रायगढ (गंगा प्रकाश)। ‘न्याय देर से सही, पर मिला जरूर!’—ऐसा ही उदाहरण पेश किया है रायगढ़ जिले के घरघोड़ा स्थित विशेष न्यायालय फास्ट ट्रैक कोर्ट ने। न्यायाधीश शहाबुद्दीन कुरैशी ने शुक्रवार को पॉक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दोषी पाए गए शिव शंकर उर्फ बेड़ा को 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाकर समाज को यह स्पष्ट संदेश दिया कि “बचपन से खेलने वालों की हिफाजत अब अदालतें बखूबी करना जानती हैं।”
क्या है पूरा मामला?
यह हृदय विदारक मामला थाना लैलूंगा क्षेत्र के एक गांव का है। वर्ष 2020 की एक शाम, जब 13 वर्षीय नाबालिग बच्ची अपने घर में अकेली थी — माता-पिता किसी कार्य से बाहर गए थे — तभी मौका पाकर आरोपी शिव शंकर उर्फ बेड़ा घर में घुस आया और उसके साथ जबरन दुष्कर्म किया।
घटना के बाद पीड़िता की तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। होश में आने पर पीड़िता ने जो कुछ बताया, उसने माता-पिता की रूह तक कंपा दी।
एफआईआर से लेकर फैसला तक…
घटना की जानकारी मिलते ही पिता ने थाना लैलूंगा में रिपोर्ट दर्ज करवाई।
एफआईआर नंबर 15/2020 के तहत पुलिस ने तत्काल एक्शन लिया और आरोपी के खिलाफ धारा 376 भादंसं और पाक्सो एक्ट की धारा 4 व 6 के तहत मामला दर्ज कर सूक्ष्म जांच शुरू की।
थाना प्रभारी ने चश्मदीदों के बयान, मेडिकल रिपोर्ट, और डिजिटल सबूतों को संकलित कर केस को बेहद मजबूती से तैयार किया, जिससे अदालत में अभियोजन पक्ष का पक्ष मजबूत रहा।
अदालत में क्या हुआ?
मामला विशेष न्यायालय फास्ट ट्रैक कोर्ट, घरघोड़ा में चला, जहाँ न्यायाधीश श्री शहाबुद्दीन कुरैशी ने केस की गहराई से सुनवाई की।
अभियोजन की ओर से अपर लोक अभियोजक श्री राजेश सिंह ठाकुर ने पूरे तथ्यों को मजबूती से पेश किया।
आख़िरकार न्याय ने जीत हासिल की — आरोपी को दोनों धाराओं के तहत 10-10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा और ₹500-₹500 का अर्थदंड सुनाया गया।
क्या कहता है समाज?
इस सख्त फैसले के बाद क्षेत्र में न्यायपालिका की सराहना की जा रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि, “ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि समाज में डर बना रहे और मासूम बच्चियों की हिफाजत सुनिश्चित हो सके।”
ये सिर्फ एक फैसला नहीं, एक संदेश है!
घरघोड़ा विशेष न्यायालय का यह फैसला सिर्फ एक आरोपी को सजा देने का मामला नहीं है, यह उन हजारों मासूमों की आवाज है जो न्याय के इंतज़ार में होते हैं।
यह अदालत का एक कड़ा संदेश है — “बचपन से खिलवाड़ करने वालों की अब खैर नहीं!”