CGNEWS: मां मनी आयरन प्लांट में फर्नेस ब्लास्ट से दो बिहारियों की दर्दनाक मौत, दो ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे — यह हादसा नहीं, मुनाफाखोरी का ‘हत्या उद्योग’ है!

CGNEWS: मां मनी आयरन प्लांट में फर्नेस ब्लास्ट से दो बिहारियों की दर्दनाक मौत, दो ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे — यह हादसा नहीं, मुनाफाखोरी का ‘हत्या उद्योग’ है!

 

रायगढ़/छत्तीसगढ़ (गंगा प्रकाश)। पूंजीपथरा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित मां मनी आयरन एंड इस्पात फैक्ट्री एक बार फिर मज़दूरों के खून से रंग गई। बुधवार रात करीब 10 बजे जब फैक्ट्री में मजदूर अपनी शिफ्ट पूरी करने ही वाले थे, तभी फर्नेस में अचानक जोरदार विस्फोट हुआ। यह कोई मामूली ब्लास्ट नहीं था — यह था सुरक्षा मानकों की खुली हत्या, मजदूरों के जीवन के साथ खिलवाड़ और मुनाफे की अंधी हवस का नतीजा।

दो मज़दूर जलकर मर गए — नाम हैं अनुज कुमार (35) और रमानंद साहनी (32), दोनों बिहार के मूल निवासी। इनके साथ काम कर रहे दो अन्य मज़दूर गंभीर रूप से झुलसे हुए हैं और रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।

फर्नेस ब्लास्ट या सुनियोजित हत्या?

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, फर्नेस में लंबे समय से सेफ्टी वॉल्व और प्रेशर कंट्रोल सिस्टम खराब था। बार-बार मैनेजमेंट को इसकी सूचना दी गई, मगर कोई सुधार नहीं हुआ। “सिर्फ उत्पादन चले, मशीनें ना रुकें, चाहे आदमी मर जाए!” — यही सोच फैक्ट्री के संचालन में हावी थी।

विस्फोट इतना भीषण था कि फर्नेस का लावा सीधे मजदूरों के शरीर पर गिरा। चीखें गूंजीं, लेकिन फायर सेफ्टी टीम नदारद थी, एंबुलेंस 25 मिनट देरी से पहुंची। क्या ये सब लापरवाही थी? या फिर एक पूंजीवादी साजिश, जो सस्ते मज़दूरों की जान की कीमत लगाकर मुनाफा गिनती है?

प्रशासनिक चुप्पी — मुनाफाखोरों के साथ मिल बैठा सिस्टम?

हादसे को 24 घंटे से अधिक हो चुके हैं, लेकिन अब तक:

  • ना कोई FIR दर्ज हुई,
  • ना प्लांट मालिक की गिरफ्तारी हुई,
  • ना ही DM या SDO ने घटना स्थल का दौरा किया,
  • श्रम विभाग और फैक्ट्री निरीक्षक तो मानो भूमिगत हो गए हों!

क्या यही प्रशासन है जो उद्योगपतियों के स्वागत में रेड कारपेट बिछाता है? क्या यही वो तंत्र है जो CSR के भोज में शामिल होता है लेकिन मज़दूरों के जनाज़े पर चुप्पी साध लेता है?

मौत का कारखाना बना ‘मां मनी प्लांट’

रमानंद साहनी पिछले दो साल से क्रेन ऑपरेटर के तौर पर काम कर रहा था। उसके परिजनों का कहना है कि “उसे न सुरक्षा जैकेट दी गई, न हेलमेट, न फायरप्रूफ जूते।” कंपनी का जवाब था — “बजट नहीं है।” अब सवाल यह है कि जिस फैक्ट्री में हर दिन लाखों का उत्पादन होता है, वहां मज़दूरों की जान की कीमत दो हज़ार का हेलमेट भी नहीं?

तो क्या मां मनी प्लांट का असली नाम अब “मौत मनी फैक्ट्री” होना चाहिए?

क्या कोई कार्रवाई होगी? या मजदूरों का खून फिर फाइलों में दफन होगा?

अब जनता पूछ रही है —

  • क्या इस फैक्ट्री को सील किया जाएगा?
  • क्या प्रबंधन पर IPC की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 287 (लापरवाही), 120B (षड्यंत्र) के तहत मुकदमा चलेगा?
  • क्या श्रम विभाग, ADM और फैक्ट्री निरीक्षक की जवाबदेही तय होगी?
  • क्या परिवारों को सिर्फ मुआवजा थमा कर चुप कराया जाएगा?

रक्तरंजित सवालों के जवाब कौन देगा?

यह खबर सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं — यह एक आरोप-पत्र है उस व्यवस्था पर जो मज़दूरों के खून की स्याही से लिखा गया है। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक यह सवाल गूंजता रहेगा:

“आख़िर मज़दूरों की ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों है?”

“कब तक देश की फैक्ट्रियों में मज़दूर जलते रहेंगे और सिस्टम खामोश रहेगा?”

जनहित में अपील:

यदि आप इस घटना से आक्रोशित हैं, तो चुप मत रहें। आवाज़ उठाइए।

– प्रशासन को घेरिए,

– जवाबदेही की मांग कीजिए,

– और शोषण के खिलाफ एकजुट होइए।

क्योंकि यह हादसा कल आपके किसी भाई, पिता या बेटे के साथ भी हो सकता है।

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