दक्षिण-पश्चिम कोना अगर गंदा या खाली हो,तो यह परिवार के मुखिया की स्थिरता और निर्णय शक्ति को कमजोर करता है,जिससे कार्यों में अड़चनें आती हैं और घर में तनाव बढ़ता है.इस कोने में भारी फर्नीचर या परिवार के बड़े-बुजुर्गों का कमरा होना शुभ माना जाता है.
उत्तर-पूर्व कोना अगर बंद,अंधेरा या भरा हुआ हो,तो यह मानसिक शांति,आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है.इस दिशा में जल तत्व से जुड़ी चीज़ें जैसे फव्वारा या मंदिर रखना शुभ माना जाता है,लेकिन जूते-चप्पल या कबाड़ रखने से बचना चाहिए.
पूर्व दिशा में रसोई या शौचालय होने पर व्यक्ति की समाजिक प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में गिरावट आती है.वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है,और इसे खुला तथा स्वच्छ रखना अत्यंत आवश्यक होता है.
घर के मध्य भाग(ब्रह्मस्थान)में किसी भी प्रकार का भारी सामान,पिलर या सीढ़ी होने से जीवन में स्थायी बाधाएं आती हैं.यह स्थान ऊर्जा का केंद्र होता है,और इसे खुला और स्वच्छ रखना सुख-समृद्धि के लिए अत्यावश्यक है.
पश्चिम दिशा में अधिक खिड़कियाँ या दरवाजे होने से आर्थिक अस्थिरता और लक्ष्मी का घर से बाहर निकलना माना जाता है.यह दिशा स्थायित्व और परिणामों की प्रतीक है,अतः इसे बंद और सुरक्षित बनाए रखना लाभकारी होता है.
घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने कोई खंभा,पेड़ या सीढ़ी होना वास्तु दोष माना जाता है,जो ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है और घर के लोगों को मानसिक तनाव और निर्णय भ्रम की स्थिति में डाल सकता है.
यदि घर में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक ढलान हो,तो यह वास्तु के सबसे बड़े दोषों में एक है,जो स्वास्थ्य,व्यवसाय और पारिवारिक जीवन में गंभीर समस्याएं पैदा करता है.सही ढलान उत्तर-पूर्व में ऊँचाई और दक्षिण-पश्चिम में नीचाई होना चाहिए.