Breakings: पाली जनपद करतला पंचायत में 22.88 लाख की पेयजल योजना बनी भ्रष्टाचार का जलस्रोत: सचिव-सरपंच की मिलीभगत से शासन को लाखों का चूना, ग्रामीणों ने की उच्च स्तरीय जांच की मांग

करतला पंचायत घोटाला

Brekings: पाली जनपद करतला पंचायत में 22.88 लाख की पेयजल योजना बनी भ्रष्टाचार का जलस्रोत: सचिव-सरपंच की मिलीभगत से शासन को लाखों का चूना, ग्रामीणों ने की उच्च स्तरीय जांच की मांग

 

कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। पाली जनपद के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत करतला में पंचायती राज व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीते पंचवर्षीय कार्यकाल के दौरान विकास कार्यों की आड़ में कथित रूप से करोड़ों नहीं, तो लाखों की लूट को अंजाम दिया गया है। सबसे बड़ा मामला पेयजल व्यवस्था को लेकर सामने आया है, जहां 22 लाख 88 हजार 515 रुपए खर्च किए जाने की बात कागजों में दर्ज है, लेकिन धरातल पर न तो योजनाएं पूरी हुई हैं और न ही जनता को इसका लाभ मिला है।

करतला पंचायत घोटाला

ग्राम पंचायत करतला में उस वक्त की सरपंच विमला बाई कुसरो और सचिव छत्तर सिंह जगत पर गंभीर आरोप लगे हैं कि इन्होंने मिलकर शासन की योजनाओं को लूट का जरिया बना डाला। खास बात यह है कि ये सब कुछ शासकीय दस्तावेजों में पूरी पारदर्शिता के साथ दर्शाया गया है, जिससे पता चलता है कि फर्जी बिल, फर्जी कार्यविवरण और झूठे खर्चों के आधार पर पंचायत ने लाखों का सरकारी धन हड़प लिया।

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पेयजल के नाम पर योजनाओं का अपहरण

ग्राम पंचायत में पेयजल व्यवस्था को सुदृढ़ करने के नाम पर लाखों की राशि विभिन्न मदों में खर्च होना बताया गया। उदाहरण के लिए:

  • माध्यमिक शाला भवन करतला एवं झोरखीपारा में रनिंग वाटर सिस्टम के नाम पर 15वें वित्त आयोग से ₹4,20,300 की राशि खर्च दिखाई गई। जबकि ग्रामीणों का साफ कहना है कि झोरखीपारा में यह व्यवस्था पूर्व सरपंच के कार्यकाल में ही चालू थी। इसके बावजूद अतिरिक्त ₹1 लाख की राशि निकाल ली गई।
  • पुराने हैंडपंपों में सबमर्सिबल पंप और सिंटेक्स टैंक लगाने के नाम पर ₹49,000 वाली योजना को ₹1.05 लाख प्रति यूनिट की दर से खर्च दिखाया गया। इस तरह 4 पंपों पर ₹4.20 लाख खर्च कर डाले गए।
  • रामसिंह और नारायण घर के पास की योजनाओं पर क्रमशः ₹70,000 और ₹63,860 की राशि निकाली गई, जबकि यहां पूर्व से ही पेयजल व्यवस्था चालू थी।
  • परदेशी और संतोष घर के पास कोई व्यवस्था नहीं है, बावजूद इसके ₹68,000 और ₹70,000 खर्च दर्शाए गए।
  • झोरखीपारा देवालय के पास हैंडपंप में सबमर्सिबल पंप लगाने के नाम पर ₹90,000, और अशोक घर के पास मरम्मत पर ₹45,000 खर्च दिखाया गया है। जब एक नया पंप ₹15,000 से कम में आ सकता है, तब मरम्मत पर तीन गुना राशि खर्च करना समझ से परे है।

जनता के सवाल, प्रशासन की चुप्पी

गांव के लोगों ने बताया कि इन योजनाओं की न तो कोई जनसुनवाई हुई, न पंचायत में प्रस्ताव रखा गया और न ही सामाजिक ऑडिट कराया गया। ग्रामसभा की अनदेखी कर सचिव और सरपंच ने अपने करीबी ठेकेदारों के माध्यम से भुगतान कराए और निजी लाभ कमाया।

ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि यह भ्रष्टाचार एक सुनियोजित गिरोह की तरह किया गया, जिसमें पंचायत प्रतिनिधियों के साथ-साथ जनपद स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत भी रही। शासकीय दस्तावेजों में हुए भुगतान को वैध ठहराने के लिए कागजों में काम पूरा दिखाया गया, लेकिन जमीनी हकीकत इससे एकदम उलट है।

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ग्रामीणों का फूटा आक्रोश, की उच्च स्तरीय जांच की मांग

पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा में इस प्रकार की लूट ने ग्रामीणों का भरोसा बुरी तरह तोड़ा है। गांव के वरिष्ठ नागरिकों और युवाओं ने पंचायत कार्यालय के सामने प्रदर्शन कर सीधी कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रशासन इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप नहीं करता, तो वे जन आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

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सिर्फ पेयजल नहीं, अन्य योजनाओं में भी घोटाले के संकेत

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि यह मामला केवल पेयजल योजनाओं तक सीमित नहीं है। नाली निर्माण, शौचालय निर्माण, भवन मरम्मत जैसे कार्यों में भी इसी तरह फर्जीवाड़ा किया गया है। सूत्रों के अनुसार, आने वाले दिनों में इन सभी कार्यों की भी परतें खुल सकती हैं और नए खुलासे सामने आ सकते हैं।

क्या कहते हैं जानकार?

पूर्व जनपद सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र साहू का कहना है:

“यह पूरा मामला वित्तीय अनियमितताओं और प्रशासनिक लापरवाही का ज्वलंत उदाहरण है। पेयजल जैसी आवश्यक सेवा को भी नहीं छोड़ा गया। यदि इसकी निष्पक्ष जांच हो, तो और भी बड़े घोटाले सामने आ सकते हैं।”

निष्कर्ष: अब चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए!

करतला पंचायत में हुए इस कथित घोटाले ने यह साफ कर दिया है कि यदि स्थानीय प्रशासन, जनप्रतिनिधि और अधिकारी मिलकर काम करें तो गांवों का विकास संभव है, लेकिन जब वे मिलकर लूट का तंत्र बनाएं, तो जनता को सिर्फ ठगा ही जा सकता है। अब सवाल ये है कि क्या इस मामले में सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी, या यह मामला भी फाइलों के ढेर में दब जाएगा?

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