CG: गरियाबंद में धूमधाम से मनी ईद-उल-अजहा — नमाज, कुर्बानी, भाईचारा और सेवा बना त्योहार की पहचान

ईदगाह में हजारों लोगों ने अदा की नमाज, अल्लाह से मांगी अमन-चैन की दुआ, पुलिस-प्रशासन की मुस्तैदी से शांतिपूर्ण रहा आयोजन
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। त्योहार जब मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत, त्याग और सेवा का संदेश देने लगे, तो वह सिर्फ उत्सव नहीं, समाज का आईना बन जाता है। कुछ ऐसा ही नज़ारा आज गरियाबंद में देखने को मिला, जहां मुस्लिम समुदाय ने पूरी आस्था, श्रद्धा और सौहार्द के साथ ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार मनाया।

सुबह की पहली किरण के साथ ही शहर में उत्साह का माहौल था। सुबह 9 बजे भाटा मैदान स्थित ईदगाह में हजारों लोगों ने एकजुट होकर नमाज अदा की। मौलाना पेश इमाम द्वारा कराई गई विशेष नमाज में गरियाबंद शहर ही नहीं, बल्कि कुरुद, भालूकोना, मैनपुर, छुरा, और दूर-दराज़ के गांवों से लोग पहुंचे थे।
नमाज के बाद गले मिलकर दी मुबारकबाद, दुआओं में दिखी एकता की ताकत
नमाज के बाद लोगों ने एक-दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी। ईदगाह का माहौल भाईचारे, आपसी प्रेम और इंसानियत के जज़्बे से सराबोर हो गया। सभी ने मिलकर देश और समाज में शांति, एकता और तरक्की की दुआ मांगी। कई जगहों पर विशेष मीठे पकवान बनाए गए और कुर्बानी की परंपरा भी निभाई गई।
ईद-उल-अजहा इस्लाम धर्म के उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है, जब हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह की रज़ा के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देने का संकल्प लिया था। यह पर्व उसी भावना को समर्पित है — त्याग, सच्ची भक्ति और खुदा की राह में हर चीज़ न्यौछावर करने का संकल्प।
त्योहार के पीछे छुपा है बड़ा सामाजिक संदेश: अमीन मेमन
समाजसेवी अमीन मेमन ने इस मौके पर कहा, “बकरीद हमें बताता है कि खुदा की राह में दिया गया त्याग सबसे बड़ा होता है। लेकिन यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और बराबरी का प्रतीक है। हम हर साल कोशिश करते हैं कि कोई गरीब, कोई बेसहारा इस दिन खाली हाथ न रहे।”
तीन हिस्सों में बांटा जाता है कुर्बानी का मांस — इमरान मेमन
स्थानीय युवा इमरान मेमन ने जानकारी दी कि, “कुर्बानी के मांस को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है — पहला गरीबों और जरूरतमंदों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए, और तीसरा अपने परिवार के लिए। यही इस त्योहार की असल आत्मा है — सेवा, सहयोग और समता।”
“कुर्बानी केवल जानवर की नहीं, नफ़रत, घमंड और स्वार्थ की भी होनी चाहिए”: सोहेल मेमन
जमात के वरिष्ठ सदस्य सोहेल मेमन ने कहा, “आज का दिन हमें यह याद दिलाता है कि कुर्बानी केवल जानवरों की नहीं, बल्कि अपने भीतर की नफरत, ईर्ष्या और घमंड की भी होनी चाहिए। जब हम दूसरों के लिए कुछ छोड़ना सीख जाते हैं, तभी असली इंसानियत जागती है।”
पुलिस प्रशासन रहा मुस्तैद, ओम प्रकाश यादव की अगुवाई में रही कड़ी सुरक्षा
त्योहार के शांतिपूर्ण आयोजन में गरियाबंद पुलिस प्रशासन की भूमिका सराहनीय रही। थाना प्रभारी ओम प्रकाश यादव स्वयं ईदगाह और मस्जिद चौक पर उपस्थित रहे। उन्होंने बताया, “हमारी टीम ने पूरी सतर्कता के साथ व्यवस्था संभाली। सौहार्दपूर्ण माहौल बनाए रखने के लिए सभी समुदायों का सहयोग मिला। हमारा प्रयास था कि हर कोई निडर होकर अपने त्योहार को मना सके।”
पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनज़र बाजार, ईदगाह और मस्जिद क्षेत्रों में विशेष गश्त की, जिससे किसी प्रकार की अफवाह या असामाजिक तत्वों की कोई गुंजाइश नहीं रही।
ईद बनी सामाजिक एकता और राष्ट्रीय समरसता की मिसाल
गरियाबंद में इस वर्ष की ईद-उल-अजहा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रही, बल्कि यह आपसी प्रेम, सेवा, त्याग और सामाजिक न्याय की एक शानदार मिसाल बन गई। समाज के सभी वर्गों — व्यापारी, किसान, छात्र, महिलाएं और बुज़ुर्ग — ने मिलकर इसे त्याग और भाईचारे के पर्व के रूप में मनाया।
सामाजिक संगठनों ने भी कई इलाकों में ज़रूरतमंदों को मांस, मिठाइयाँ और कपड़े बांटे। कई युवाओं ने त्योहार को प्लास्टिक मुक्त बनाने का संदेश भी दिया।
निष्कर्ष
त्योहार आते हैं, चले जाते हैं — लेकिन कुछ त्योहार ऐसी छाप छोड़ जाते हैं जो समाज को बदलने की ताकत रखते हैं। गरियाबंद में इस बार की ईद-उल-अजहा ने यही साबित किया। अल्लाह की इबादत के साथ जब इंसानियत का चिराग रोशन होता है, तो वह पर्व हर दिल में बस जाता है।