CG: शिक्षा विभाग की वरिष्ठता पर सिफ़ारिश भारी, बच्चों की शिक्षा के नाम पर हो रहा ‘कला’ का छलावा

धरमजयगढ़ शिक्षा विभाग

CG: शिक्षा विभाग की वरिष्ठता पर सिफ़ारिश भारी, बच्चों की शिक्षा के नाम पर हो रहा ‘कला’ का छलावा

“धरमजयगढ़ में युक्तियुक्तकरण नहीं, ‘युक्तिहीन तमाशा’ चल रहा है!”

धरमजयगढ़ अब छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग का ‘नया सर्कस’ बन चुका है?

क्या यहाँ शिक्षकों की पदस्थापना योग्यता और वरिष्ठता से नहीं, सिफ़ारिश और जातिगत समीकरणों से तय होती है?

इन सवालों की गूंज अब केवल शिक्षकों तक सीमित नहीं रही, यह अब गांव-गांव की चर्चा बन चुकी है।

 

रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। धरमजयगढ़ के कई स्कूलों में शिक्षा विभाग की ओर से लागू युक्तियुक्तकरण (Rationalization) की प्रक्रिया अब शिक्षक समाज के बीच ‘चहेतायुक्तकरण’ और ‘बदनीयतीकरण’ के नाम से कुख्यात हो चुकी है। वरिष्ठता, विषय की आवश्यकता और नियम — इन सबको ठेंगा दिखाकर कुछ चहेतों को बचाया गया और बाकियों को बलि का बकरा बना दिया गया।

धरमजयगढ़ शिक्षा विभाग

केस-1: गनपतपुर — हिन्दी की हत्या और ‘कला’ का उत्सव

गनपतपुर स्कूल में प्रधान पाठक अगापित मिंज (कला) पहले से पदस्थ हैं। उसी विषय में एक और शिक्षक राजू बेक (कला) भी पदस्थ हैं। तीसरे शिक्षक अगनेयुस कुजूर ‘हिन्दी’ विषय से हैं — और पूरे विद्यालय में हिन्दी पढ़ाने वाले अकेले व्यक्ति थे।

तीसरे दिन खलील अहमद की घातक गेंदबाजी, मेजबान इंग्लैंड की हालत खराब http://gangaprakash.com/?p=75598

लेकिन हुआ क्या?

हटाया गया हिन्दी शिक्षक अगनेयुस कुजूर को — जबकि वो वरिष्ठ भी थे, और उनका विषय विद्यालय के लिए अनिवार्य भी।

बचाए गए कला विषय के दोनों शिक्षक — एक प्रधान पाठक, और दूसरा जूनियर राजू बेक।

अब सवाल यह उठता है —

अगर ‘कला’ विषय के दो-दो शिक्षक पहले से हैं, तो हिन्दी जैसे मुख्य विषय के शिक्षक को हटाना क्या ‘युक्तियुक्त’ है या ‘युक्तिहीन’?

सूत्रों की मानें तो अगनेयुस कुजूर नियमों के अनुशासक शिक्षक थे — लेकिन विभाग को आजकल नियम पसंद नहीं, ‘नरमी’ और ‘नज़दीकी’ चाहिए।

शिक्षक पदस्थापना विवाद

केश -2: ससकोबा — ‘रानी’ बच गई, ‘कांती’ हटी!

ससकोबा स्कूल में तीन शिक्षक ‘कला’ विषय से हैं:

  1. प्रधान पाठक — बचे (कोई आश्चर्य नहीं)
  2. कांती बाई — नियुक्ति तिथि: 10.10.2009
  3. मंजू रानी — नियुक्ति तिथि: 01.07.2011

आप सोचेंगे, कांती बाई वरिष्ठ हैं तो वो रहेंगी — लेकिन यहीं धरमजयगढ़ का तमाशा शुरू होता है।

हटाया गया कांती बाई को —

और बचा लिया गया मंजू रानी को — जो कनिष्ठ हैं।

क्या कारण?

शायद वही पुराना फार्मूला — ‘रानी कभी हार नहीं मानती’, चाहे वो टीवी सीरियल की हो या शिक्षा विभाग की।

CG CRIME – शादी का झांसा देकर नाबालिग से दुष्कर्म, पुलिस ने आरोपी को दबोचा http://gangaprakash.com/?p=75585

शिक्षा विभाग का नया ‘तमाशा पाठ्यक्रम’

धरमजयगढ़ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक नया मंत्र सुनाया गया:

“जिन्हें जहाँ बिठा दिया गया है, वहीं बैठो — सवाल मत पूछो।”

“धनिया बो दिए हैं, अब नींबू की उम्मीद मत करो!”

इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक अब केवल आदेश के गुलाम हैं — उन्हें ना नियमों से मतलब रखने की इजाज़त है, ना सवाल पूछने की।

‘नया पाठ्यक्रम’ — विभाग की नई परिभाषाएँ:

पारंपरिक शब्द शिक्षा विभाग की नई परिभाषा

  • युक्तियुक्तकरण – चहेतायुक्तकरण
  • वरिष्ठता – अवसरहीनता
  • नियम – बाधक तत्व
  • पदस्थापना पगला-स्थान प्रक्रिया

निष्कर्ष नहीं, व्यवस्था का पोस्टमॉर्टम:

धरमजयगढ़ की यह घटनाएँ केवल प्रशासनिक असंगति नहीं हैं, यह बच्चों के भविष्य के साथ धोखा हैं। जब हिन्दी जैसे विषय के शिक्षक को हटाकर, कला में अतिरिक्त शिक्षक बचाए जाएं, तो यह तय हो जाता है कि यहाँ शिक्षा नहीं, सिफ़ारिशों का शासन चल रहा है।

कांती बाई, अगनेयुस कुजूर जैसे समर्पित शिक्षक हटा दिए जाते हैं, जबकि कुछ ‘बेकअप प्लान’ वाले शिक्षकों को संरक्षण मिलता है — तो यह शिक्षा नहीं, प्रशासनिक राजनीति है।

जनता से सवाल:

  • क्या धरमजयगढ़ के बच्चे अब विषय नहीं, ‘वोट बैंक’ के हिसाब से पढ़ेंगे?
  • क्या अब शिक्षक की योग्यता नहीं, उसकी ‘लॉबी’ तय करेगी कि वो रहेगा या हटेगा?
  • क्या BEO और DEO की कुर्सियों ने नियमों को कुचल दिया है?

अंतिम शब्द — सिस्टम के नाम एक व्यंग्यीय पंच:

“यहां वरिष्ठता मायने नहीं रखती,

यहां सिर्फ वो मायने रखता है —

जो ‘धनिया बोने’ में दक्ष हो।”

धरमजयगढ़ शिक्षा विभाग

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *