Brekings: एक घंटे… दो जिंदगियां… एक मसीहा: RHO पूनम सिन्हा ने रच दिया सेवा का कीर्तिमान

गरियाबंद/कोपरा (गंगा प्रकाश)। एक घंटे… दो जिंदगियां… एक मसीहा कोपरा जैसे दूरस्थ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जब शहर सो रहा था, उस वक्त एक महिला चिकित्साकर्मी अपने कर्तव्य पथ पर डटी हुई थी—ताकि दो गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे शिशुओं को जीवनदान मिल सके। रात्रिकालीन ड्यूटी पर तैनात ग्रामीण स्वास्थ्य अधिकारी (RHO) श्रीमती पूनम सिन्हा ने रविवार तड़के महज एक घंटे के भीतर दो सामान्य प्रसव अकेले कराकर यह साबित कर दिया कि सेवा अगर सच्चे मन से हो, तो संसाधनों की कमी भी आड़े नहीं आती।

पहला मामला: पहली बार मां बनी वंदना साहू
रविवार को रात 1 बजकर 20 मिनट पर ग्राम सुरसाबांधा की 23 वर्षीय वंदना साहू, जिन्हें पहली बार प्रसव पीड़ा हुई थी, को उनके परिजन कोपरा स्वास्थ्य केंद्र लाए। उस वक्त अस्पताल में ड्यूटी पर अकेली RHO पूनम सिन्हा थीं। उन्होंने बिना किसी देर के प्रसव की तैयारी की और पूरी सतर्कता और धैर्य के साथ वंदना का इलाज शुरू किया।
करीब डेढ़ घंटे की निगरानी और प्रक्रिया के बाद वंदना ने रात 2 बजकर 46 मिनट पर एक 3.700 किलोग्राम वजनी स्वस्थ शिशु को जन्म दिया। खास बात यह थी कि यह वंदना का पहला प्रसव था और सामान्य प्रसव की संभावनाएं कम मानी जा रही थीं, परंतु पूनम की कुशलता ने सर्जरी की नौबत नहीं आने दी।
दूसरा मामला: मां बनीं यज्ञा तारक
पहले प्रसव के महज 15 मिनट बाद ही ग्राम तर्रा से 27 वर्षीय यज्ञा तारक (पति ओंकार तारक) को प्रसव पीड़ा के साथ लाया गया। यज्ञा का यह दूसरा प्रसव था। थकी हुई लेकिन हिम्मत से लबरेज़ पूनम ने फिर कमान संभाली। उन्होंने अपनी मेडिकल ट्रेनिंग, अनुभव और सेवा भावना का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए सुबह 3 बजकर 58 मिनट पर यज्ञा का भी 2.700 किलोग्राम वजनी स्वस्थ शिशु के साथ सामान्य प्रसव सफलतापूर्वक पूरा किया।
अकेले डटीं रहीं, अस्पताल का स्टाफ मौजूद नहीं
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान RHO पूनम सिन्हा अस्पताल में अकेली थीं। कोई अतिरिक्त नर्स, डॉक्टर या हेल्पिंग स्टाफ नहीं था। उन्होंने ही तैयारी की, प्रसव की निगरानी की, दवाइयां दीं, नवजातों की शुरुआती जांच की और माताओं को आराम की स्थिति में पहुंचाया। यह काम न केवल चिकित्सा दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी अत्यधिक थकाऊ।
सेवा की प्रतिमूर्ति: पहले भी संभाले हैं कई जटिल केस
श्रीमती पूनम सिन्हा की यह पहली उपलब्धि नहीं है। वे पहले भी कई हाई-रिस्क डिलीवरी मामलों को सफलतापूर्वक सामान्य प्रसव में बदल चुकी हैं। कोपरा स्वास्थ्य केंद्र का रिकॉर्ड बताता है कि यहां जटिल माने जाने वाले केस भी ऑपरेशन के बजाय नार्मल डिलीवरी में तब्दील किए जाते रहे हैं। यह सफलता सिर्फ तकनीकी कुशलता का नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनशीलता और निष्ठा का भी प्रमाण है।
गांव-गांव में सराहना, स्वास्थ्य विभाग भी नतमस्तक
घटना के बाद यह खबर तेजी से आस-पास के गांवों में फैल गई। ग्रामीणों ने अस्पताल पहुंचकर पूनम सिन्हा को बधाई दी, कई माताओं ने उनके हाथ छूकर आशीर्वाद मांगा। स्वास्थ्य विभाग के स्थानीय अधिकारियों ने भी पूनम की हौसलाअफज़ाई की है और इस कार्य को “उत्कृष्ट सेवा प्रदर्शन” की श्रेणी में सराहा है।
क्या कहती हैं पूनम सिन्हा?
हमारेू मीडिया कर्मी ने पूनम सिन्हा से बात की, तो उन्होंने बड़ी सादगी से कहा:
“यह मेरी ड्यूटी थी। मैं खुश हूं कि दोनों माताएं और बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं। हमारे जैसे इलाकों में मेडिकल सुविधाएं सीमित होती हैं, ऐसे में हमें हर हाल में तत्पर रहना होता है। ये दो जिंदगियां मेरे लिए पुरस्कार हैं।”
असली हीरो अस्पतालों में होते हैं
जब सोशल मीडिया और टी.वी. पर ‘हीरो’ और ‘स्टार’ बनने की होड़ लगी है, तब कोपरा जैसे एक सुदूर स्वास्थ्य केंद्र में, किसी कैमरे से दूर, एक महिला चुपचाप दो जिंदगियों को इस दुनिया में लाकर, असली नायिका बन जाती है। पूनम सिन्हा जैसी स्वास्थ्य कर्मियों की वजह से ही ग्रामीण भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था अपनी जड़ों पर खड़ी है।