CG: गरियाबंद की बेटियाँ फिर रचने निकलीं इतिहास — 14,000 फीट की ऊँचाई पर लहराएंगी तिरंगा, हमटा पास की दुर्गम वादियों में साहस का अभियान जारी

गरियाबंद बेटियों का साहसिक अभियान

CG: गरियाबंद की बेटियाँ फिर रचने निकलीं इतिहास — 14,000 फीट की ऊँचाई पर लहराएंगी तिरंगा, हमटा पास की दुर्गम वादियों में साहस का अभियान जारी

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिले की बेटियाँ आज पूरे देश को यह जता रही हैं कि जब इरादे फौलादी हों और दिलों में तिरंगे की चमक हो, तो हिमालय की ऊँचाइयाँ भी झुक जाती हैं। जिले की चार साहसी बेटियाँ एक बार फिर पर्वतारोहण के एक और रोमांचक और चुनौतीपूर्ण सफर पर निकल चुकी हैं। इस बार इनका लक्ष्य है — हिमाचल प्रदेश के हमटा पास ट्रैक की दुर्गम चोटियों पर 14,000 फीट की ऊँचाई पर तिरंगा फहराना।

यह अभियान न केवल पर्वतारोहण का एक मिशन है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की बेटियों के आत्मबल, राष्ट्रप्रेम और अटूट हौसले का परिचायक है।

गरियाबंद बेटियों का साहसिक अभियान

नेतृत्व में अग्रणी — कनक लता सिंह

इस अभियान की सूत्रधार हैं कनक लता सिंह, 27 वर्षीय युवती, जो गरियाबंद के शिक्षक नगर आमदी की निवासी हैं। उनके पिता सत्येंद्र सिंह भी एक शिक्षक हैं और समाज सेवा से गहरे जुड़े हुए हैं। कनक लता बचपन से ही राष्ट्रप्रेम, साहसिक अभियानों और युवाओं के उत्थान की दिशा में प्रेरित रही हैं।

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पिछले वर्ष उन्होंने छत्तीसगढ़ की सबसे ऊँची चोटी गौरलाटा (केदारकंठा ट्रैक) पर 12,500 फीट की ऊँचाई पर तिरंगा फहराकर प्रदेश का नाम गौरवान्वित किया था। उनके साथ थीं गरियाबंद की ही तीन अन्य किशोरियाँ — कोमिता साहू (16), खिलेश्वरी कश्यप (17) और अम्बा तारक (18)। ये चारों बेटियाँ अब एक कदम और आगे बढ़ चुकी हैं।

इस बार और कठिन है रास्ता

हमटा पास ट्रैक, जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है, देश के सबसे चुनौतीपूर्ण ट्रैकों में गिना जाता है। बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, पत्थर और कीचड़ से भरे रास्ते, तेज हवाएँ और 14,000 फीट की ऑक्सीजन की कमी — यह ट्रैक केवल शरीर ही नहीं, मन और आत्मा की भी परीक्षा लेता है।

दल को करीब 35 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी होगी, जिसमें हर दिन 5 से 7 घंटे तक की चढ़ाई शामिल है। यह यात्रा 15 जून को मनाली बेस कैंप से आरंभ होगी और अनुमानतः 20 जून तक तिरंगा हमटा पास की चोटी पर फहराया जाएगा।

“यह यात्रा सिर्फ मेरी नहीं — हर बेटी की है” : कनक लता

अपने मिशन से पहले कनक लता सिंह ने कहा:

“यह यात्रा सिर्फ मेरी नहीं है, यह पूरे छत्तीसगढ़ की बेटियों की आवाज़ है। यह साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक है। हम यह दिखाना चाहते हैं कि बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं — चाहे वह विज्ञान हो, खेल हो, या फिर हिमालय की ऊँचाइयाँ।”

“हम हर कदम तिरंगे के सम्मान और अपने राज्य के गौरव के लिए उठा रहे हैं। यह संदेश लेकर हम निकले हैं कि अगर बेटियों को अवसर मिले, तो वे किसी भी ऊँचाई तक पहुँच सकती हैं।”

गरियाबंद बेटियों का साहसिक अभियान

समाज का समर्थन और गर्व

इस अभियान को लेकर गरियाबंद जिले में जबरदस्त उत्साह है। सामाजिक संगठनों, शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और अभिभावकों ने कनक लता और उनके दल के लिए समर्थन और शुभकामनाओं की बाढ़ ला दी है।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन ने भी इस मिशन को सराहा है। ज़िले के लोगों ने बेटियों के इस अभियान को “गरियाबंद का गौरव अभियान” का नाम दिया है।

प्रेरणा बन रही हैं कनक लता

कनक लता सिंह न केवल पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक अग्रणी नाम बन रही हैं, बल्कि वे आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन चुकी हैं। उनका सरल स्वभाव, अनुशासित जीवनशैली और देशभक्ति से ओतप्रोत व्यक्तित्व युवाओं में ऊर्जा और आत्मबल भर रहा है।

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बेटियों की उड़ान है ये — सीमा नहीं, शिखर चाहिए

गरियाबंद की इन साहसी बेटियों की यह यात्रा एक स्पष्ट संदेश देती है — “शिखर पर बेटियों का अधिकार है।” जिस समाज में बेटियाँ केवल घर की चारदीवारी तक सीमित समझी जाती थीं, वहां आज वे हिमालय की ऊँचाइयों को ललकार रही हैं।

आशा और आशीर्वाद

पूरा प्रदेश, खासकर गरियाबंद जिले के लोग इन बेटियों की सफलता और सुरक्षित वापसी की प्रार्थना कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर “#TirangaAt14000” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं, जिसमें लोग उनकी हौसला अफ़ज़ाई कर रहे हैं।

जय हिंद, जय गरियाबंद — तिरंगा ऊँचा रहे हमारा!

इस ऐतिहासिक मिशन के सफल होने पर ये बेटियाँ न केवल गरियाबंद, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की शान बन जाएँगी। और यह साबित कर देंगी कि जहाँ बेटियाँ हों, वहाँ शिखर दूर नहीं — तिरंगा और आत्मबल साथ हो, तो हर चोटी झुक सकती है।

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