Brekings: “जनशक्ति से जलशक्ति की ओर” — पूटा गांव के ग्रामीणों ने दिखाया मिसाल, सामुदायिक सहयोग से तालाब को दी नई जिंदगी

जल संरक्षण की मिसाल बना कोरबा का पूटा गांव, महिला-पुरुषों ने श्रमदान और सहयोग से तालाब का गहरीकरण, विस्तार और मेढ़ सुधार का उठाया बीड़ा

कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। “जनशक्ति से जलशक्ति की ओर” — जब प्रशासनिक बजट सीमित हो, योजनाएं अधूरी छूट जाएं, और बारिश की बूंदें बर्बादी बन जाएं — तब क्या किया जाए? कोरबा जिले के पाली जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत पूटा के ग्रामीणों ने इस सवाल का जवाब अपने श्रम, संकल्प और सामूहिक चेतना से दिया है। उन्होंने बता दिया कि यदि इरादा मजबूत हो, तो गांव की तक़दीर भी बदली जा सकती है।
पूटा गांव के करीब 950 मतदाताओं ने एकजुट होकर यह उदाहरण पेश किया है कि जल संरक्षण केवल सरकारी योजनाओं की मोहताज नहीं, बल्कि सामुदायिक सहभागिता और स्वप्रेरणा से भी संभव है। गांव के मिलनमुड़ा तालाब का गहरीकरण, विस्तार और टूटे मेढ़ की भराई का कार्य ग्रामीणों ने अपने बलबूते पर शुरू किया है — न कोई बड़ा बजट, न मशीनों की भरमार — सिर्फ श्रमदान, आपसी सहयोग और भविष्य की चिंता ने इस ऐतिहासिक कार्य की नींव रखी है।
पानी गया, संकट आया — पर हार नहीं मानी
गौरतलब है कि मिलनमुड़ा तालाब कभी गांव की निस्तारी और सिंचाई का मुख्य स्रोत हुआ करता था। सालभर इसमें पानी रहता था, जिससे ग्रामीणों की दैनिक जरूरतें पूरी होती थीं। लेकिन पिछले वर्ष आई भारी बारिश ने तालाब की मेढ़ तोड़ दी, और देखते ही देखते सारा पानी बह गया। नतीजा यह हुआ कि तालाब पूरी तरह सूख गया, और गांव पानी संकट की ओर बढ़ चला।
इस स्थिति को भांपते हुए जनपद पंचायत द्वारा मनरेगा के तहत तालाब का गहरीकरण कार्य शुरू कराया गया। परंतु अपर्याप्त बजट के चलते कार्य अधूरा रह गया और तालाब फिर से बारहमासी उपयोग लायक नहीं बन सका।
सरपंच की पहल, ग्रामीणों का संकल्प
ऐसे में गांव के सरपंच दिलाराम नेताम ने एक अहम कदम उठाया। उन्होंने गांव के लोगों की बैठक बुलाई, समस्या को सामने रखते हुए सहयोग की अपील की। सरपंच की अपील पर गांव की महिलाएं, बुजुर्ग, पुरुष और युवा सभी ने ‘साथी हाथ बढ़ाओ’ की भावना से श्रमदान का संकल्प लिया।
गांव की गलियों से लेकर खेत-खलिहानों तक यह संदेश फैल गया कि मिलनमुड़ा तालाब की जिंदगी अब ग्रामीणों के हाथ में है। लोग कुदाल, गैंती, तसला लेकर तालाब की ओर निकल पड़े। मेढ़ की मरम्मत, मिट्टी की खुदाई और गहराई का कार्य दिन-रात शुरू हुआ।
मशीनें भी आईं, पर पैसे गांव वालों ने जोड़े
तालाब का विस्तार केवल हाथों से संभव नहीं था, इसलिए ग्रामीणों ने स्वेच्छा से राशि इकट्ठा की और खुद ही मशीनें किराए पर मंगवाईं। गांव के भीतर ही संसाधनों को जुटाते हुए, इस अभियान को गति दी गई। कोई थका नहीं, कोई पीछे नहीं हटा।
सिर्फ तालाब नहीं, एक सोच गहरी हो रही है
पूटा गांव का यह प्रयास सिर्फ जल संरक्षण का तकनीकी समाधान नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन की तरह है। यह दर्शाता है कि ग्रामीण भारत अब सहायता की प्रतीक्षा में नहीं, बल्कि अपनी समस्याओं के समाधान स्वयं करने की हिम्मत और हक रखता है।
बरसात की तैयारी — अब सूखा नहीं होगा तालाब
ग्रामीणों को पूरा भरोसा है कि इस बार अगर ठीक से बारिश हुई तो तालाब भर जाएगा, और पूरे सालभर निस्तारी और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होगा। इससे सिर्फ पूटा नहीं, बल्कि आसपास के गांव भी लाभान्वित होंगे। साथ ही भूजल स्तर भी बढ़ेगा, जिससे नलकूपों और कुओं में भी पानी का स्तर सुधरेगा।
सरकारी योजनाओं के पूरक बने ग्रामीण
मनरेगा योजना से जहां सरकारी स्तर पर एक पहल हुई, वहीं ग्रामीणों ने उस अधूरे काम को पूर्णता दी, जिसे अक्सर लोग सरकारी उदासीनता कहकर छोड़ देते हैं। पूटा के ग्रामीणों ने ये साबित कर दिया कि सरकारी योजनाएं तब ही सफल होती हैं, जब जनता उन्हें अपनाए और आगे बढ़ाए।
पूटा का यह प्रयास एक “मॉडल” बन सकता है, जिसे अन्य गांवों में दोहराया जा सकता है। यह सिर्फ एक तालाब नहीं, एक सोच का गहरीकरण है। इस गांव ने बता दिया है कि अगर संकल्प हो, तो बिना सत्ता, बिना साधन और बिना सिस्टम के भी बदलाव लाया जा सकता है।
पूटा गांव के लिए यह केवल पानी का नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और जागरूकता का संग्राम है — और इस संग्राम के हर सिपाही को सलाम।