देखा “विनोद”खादी और खाकी ने कैसे लुटा छत्तीसगढ़?

84 हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे छत्तीसगढ़ का 36 हजार करोड़ रुपए के रमन सरकार में हुए नान घोटाला के मामले में केंद्र हुआ सक्रिय?

केंद्र के पास अटके हैं राज्य के 46 हजार करोड़:खनिज लेवी,पेंशन समेत कई योजनाओं की राशि का है इंतजार,नही मिली नक्सल मोर्चे पर हुई खर्च तक कि राशि

नई दिल्ली(गंगा प्रकाश):-वर्तमान समय मे कर्ज में डूबे छत्तीसगढ़ पर 84हजार करोड़ रुपए(लगभग) का कर्ज हैं।और भाजपा की डॉक्टर रमन सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2015 में छत्तीसगढ़ राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 36,000 करोड़ रुपए का कथित घोटाला सामने आया था जो कि आज के कर्ज के लगभग आधे के मान सकते हैं जो माननीय रमन के कार्यकाल की घोटाले की लिस्ट में सबसे बड़ा एक ही घोटाला था,नान घोटाला उजागर होने के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा यानी EOW और एंटी करप्शन ब्यूरो ने 12 फरवरी 2015 को नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के 28 ठिकानों पर एक साथ छापा मारा था।बता दें कि छत्तीसगढ़ के नान घोटाला के मामले को लेकर केंद्र सरकार फिर से सक्रिय हो गई है। बता दें कि भाजपा सरकार के समय हुए नागरिक आपूर्ति निगम-नान घोटाला के मामले में, केंद्र सरकार की एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रायपुर की विशेष अदालत में आवेदन कर सुनवाई रोकने की मांग की है। दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नान घोटाला केस की जांच में पाएं फर्जीवाड़े और फोन टैपिंग के आरोपी आईपीएस मुकेश गुप्ता का निलंबन खत्म कर दिया है। नान घोटाले के तत्कालीन महाप्रबंधक शिवशंकर भट्‌ट और दूसरे आरोपियों के खिलाफ रायपुर की विशेष अदालत में सुनवाई चल रही है। 15 सितम्बर को ईड़ी की ओर से पेश अधिवक्ता सौरभ कुमार पाण्डेय ने एक आवेदन पेश किया। इस आवेदन में कहा गया है कि इसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय में भी एक मामला चल रहा है। 19 सितम्बर को सुनवाई की तारीख तय है। जब तक सर्वोच्च न्यायालय ईडी की याचिका पर कोई फैसला नहीं करती तब तक रायपुर की अदालत में सुनवाई को रोक दिया जाए। बता दें, कि रायपुर की विशेष अदालत में इस मामले की सुनवाई 24 सितम्बर को होनी है। उसी में स्पष्ट होगा कि अदालत ने इस आवेदन पर क्या फैसला किया है।

2019 में कर दिया गया था मुकेश गुप्ता को निलंबित

बता दें कि16 सितम्बर को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अपर सचिव संजीव कुमार ने निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता को बड़ी राहत देने वाला आदेश जारी किया। गृह मंत्रालय ने मुकेश गुप्ता का निलंबन रद्द कर दिया है। इसी आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने मुकेश गुप्ता के खिलाफ दर्ज सभी मामलों और अनुशासनात्मक कार्रवाई पर स्थगन दिया हुआ है। वहीं दूसरी ओर मुकेश गुप्ता 30 सितम्बर को सेवानिवृत्त भी हो रहे हैं। ऐसे में उनके निलंबन समाप्ति के आदेश से महकमे की बेचैनी को बढ़ा दिया है। सरकार ने फरवरी 2019 में मुकेश गुप्ता को निलंबित किया था। उसके बाद उन पर एक के बाद एक करके तीन एफआईआर हुई।

आखिर क्या है नान घोटाला ?

बता दें ,कि छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन नागरिक आपूर्ति निगम के जरिए होता है। एंटी करप्शन और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने 12 फरवरी 2015 को नागरिक आपूर्ति निगम के मुख्यालय सहित अधिकारियों-कर्मचारियों के 28 ठिकानों पर एक साथ छापा मारा था। इस छापें में करोड़ों रुपए की नकदी, कथित भ्रष्टाचार से संबंधित कई दस्तावेज, डायरी, कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क समेत कई दस्तावेज मिले थे। ऐसा आरोप था, राइस मिलों से लाखों क्विंटल घटिया चावल लिया गया और इसके बदले करोड़ों रुपये की रिश्वत ली गई। चावल के भंडारण और परिवहन में भी भ्रष्टाचार किया गया। इस मामले में शुरुआत में शिवशंकर भट्‌ट सहित 27 लोगों के खिलाफ मामला चला। इसके बाद में निगम के तत्कालीन अध्यक्ष आलोक शुक्ला और एमडी अनिल टुटेजा का नाम भी आरोपियों की सूची में जुड़ गए । हालांकि तत्कालीन सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति तब दी, जब ये तय हो गया कि राजनीतिक सत्ता बदलने वाली है।

सरकार बदली तो जांच अधिकारी ही नप गये

बता दें, कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में सत्ता बदल गई। इसके बाद 17 दिसम्बर 2018 को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद के लिए गोपनीयता की शपथ ली। उसके कुछ ही दिनों बाद नान घोटाले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया। इस दौरान सामने आया कि नान घोटाले की जांच के दौरान एसीबी के मुखिया मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह ने फर्जी दस्तावेज किए हैं। अवैध रूप से अफसरों-नेताओं के फोन टेप किए गए हैं। इस आरोप के आधार पर सरकार ने मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को निलंबित कर दिया। उनके खिलाफ एफआईआर हुआ। उसके बाद से गिरफ्तारी की आशंका में दोनों अधिकारी भूमिगत हो गए। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक एसआईटी के खिलाफ कोर्ट गए और स्टे ले आए। मुकेश गुप्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से कार्रवाई पर स्टे लगवाने में कामयाब हो गए। लेकिन उनके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में केस किया है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर 36,000 करोड़ रुपये के पीडीएस घोटाले का था आरोप

कांग्रेस ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से चावल की आपूर्ति की योजना में 36,000 करोड़ रुपये के घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के इस्तीफे की मांग करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने 5 जुलाई 2015 को संवाददाताओं से कहा था कि हम छत्तीसगढ़ में 36, 000 करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश कर रहे हैं, जो अन्य सभी भाजपा घोटालों को कम करता है। हमें इस नागरिक अपूर्वी घोटाले में चार लोगों द्वारा डायरी, पेन ड्राइव और अन्य दस्तावेजों जैसे ठोस सबूत मिले हैं।” दिल्ली में।”डायरियों से न केवल मुख्यमंत्री रमन सिंह, बल्कि उनकी पत्नी, भाभी, उनके रसोइया और अन्य लोगों के लिए लाभ का पता चलता है। विवादास्पद मुद्दा यह है कि अगर मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी और उनकी भाभी के साथ डायरी हैं- कानून के नाम मौजूद हैं, फिर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है?”उन्होंने आगे कहा था कि जो लोग घोटाले में आरोपी हैं, उन्हें गवाह बना दिया गया है और चार्जशीट में कोई नाम नहीं है।”एसीबी को मिली डायरियों से मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनकी पत्नी को सीधे लाभ होने का पता चलता है। भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के प्रमुख ने स्वीकार किया है कि उनकी अपनी सीमाएं हैं और वह इस जांच को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। पैसा दिल्ली, नागपुर और दिल्ली को भी भेजा गया था। उन्होंने कहा था कि मुख्य आरोपी द्वारा बरामद 113 पृष्ठों में से केवल छह पृष्ठ इस चालान में डाले गए हैं। हम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से तत्काल इस्तीफे की मांग करते हैं क्योंकि वह और उनका परिवार सीधे घोटाले में शामिल हैं।कथित घोटालों को लेकर कुछ राज्यों के साथ-साथ केंद्र में भाजपा नेताओं पर विपक्ष के लगातार हमले होते रहे हैं। जहां महाराष्ट्र की महिला एवं बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे पर 206 करोड़ रुपये के चिक्की घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया गया था वहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ललित मोदी के आव्रजन मुद्दे में उनकी भूमिका को लेकर घिरी हुई थी।

पूर्व सीएम रमन सिंह के दामाद पर 50 करोड़ के घोटाले का आरोप

 छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद के खिलाफ 50 करोड़ की कथित अनियमितता के मामले में केस दर्ज किया गया था रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता पर आरोप था कि सरकारी डीकेएस अस्पताल के अधीक्षक पद पर रहते वे 50 करोड़ की वित्तीय अनियमितता में लिप्त रहे हैं। गुप्ता के खिलाफ ठगी और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था।पूरे मामले पर  पुनीत गुप्ता के खिलाफ ठगी और धोखाधड़ी का मामला डीकेएस अस्पताल के अधीक्षक कमल किशोर सहारे की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जांच समिति का गठन किया गया था। उन्होंने राज्य सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसे बाद में हमें सौंप दिया गया था। इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई थी वहीं, सहारे ने अपनी शिकायत में कहा था कि पुनीत गुप्ता ने अपने कार्यकाल में 50 करोड़ की कथित वित्तीय अनियमितता की है।इस शिकायत में कहा गया था कि पूर्व अधीक्षक पुनीत गुप्ता ने अपने कार्यकाल के दौरान पद और पहुंच का गलत फायदा उठाते हुए सरकारी धन का दुरुपयोग किया और इस वजह से सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। पुनीत गुप्ता पर आरोप था कि उनके कार्यकाल में कई ऐसी मशीनें खरीदी गई हैं, जिससे मरीजों का सीधा कोई लेना-देना नहीं है।पुनीत गुप्ता पर आरोप था कि उनके कार्यकाल के दौरान, अस्पताल परिसर में किराए पर दिए गए दुकान में भी अनियमितता पाई गई है। एक दुकान का किराया महज 5 हजार रुपए महीना है। इसके अलावा मेडिकल स्टोर के लिए ऐसी शर्तें रखी गई जिससे स्थानीय लोग बाहर हो गए। बता दें कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ भी जांच की मांग उठती रही है।पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी ने साल 2017 में पनामा पेपर लीक मामले में कथित तौर पर रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह के विदेशी बैंक खातों से जुड़े मामले में कार्रवाई करने की मांग की थी। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजित जोगी अगस्ता वेस्टलैंडहेलीकॉप्टर घोटाला मामले में रमन सिंह के खिलाफ जांच की मांग कर चुके थे लेकिन….।

भाजपा की रमन सरकार में 1 हजार करोड़ का निशक्तजन स्त्रोत संस्थान घोटाला

मामला निशक्तजन स्त्रोत संस्थान से जुड़ा हुआ है और यह घोटाला रमन सिंह के शासन काल में हुआ है। इस संस्थान के हर जिले में कार्यालय और हर कार्यालय में 18-20 से ज्यादा कर्मचारियों की तैनाती कर लाखों रुपये का वेतन निकाला गया, जबकि कार्यालय कहीं हैं ही नहीं।छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुए लगभग एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले की आंच पार्टी पर आने लगी थी। इस मुद्दे को लेकर जहां कांग्रेस हमलावर थी, वहीं बीजेपी  बैकफुट पर दिख रही थी यह मामला निशक्तजन स्त्रोत संस्थान से जुड़ा हुआ है। इस संस्थान के हर जिले में कार्यालय और हर कार्यालय में 18-20 से ज्यादा कर्मचारियों की तैनाती कर लाखों रुपये का वेतन निकाला गया था जबकि कार्यालय कहीं हैं ही नहीं। इस मामले पर बीजेपी नेता केदार गुप्ता का कहना था कि जिन अधिकारियों ने गड़बड़ी की है, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। इससे रमन सिंह सरकार का कोई लेना-देना नहीं है।यह खुलासा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के जरिए हुआ था। इस घोटाले के खुलासे की कहानी भी रोचक है। रायपुर निवासी कुंदन सिंह समाज कल्याण विभाग के राज्य निशक्त जन स्त्रोत संस्थान में संविदा कर्मचारी थे। उन्होंने अपने आपको स्थायी करने के लिए समाज कल्याण विभाग को आवेदन दिया। तब उन्हें यह जानकारी दी गई कि वह समाज कल्याण विभाग के नहीं, बल्कि पीआरआरसी के स्थायी कर्मचारी हैं और उनका नियमित रूप से वहीं से वेतन जारी हो रहा है। यह पता चलने पर कुंदन ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी ली। तब उन्हें पता चला कि रायपुर में मुख्यालय और सभी जिलों में जिला कार्यालय हैं, जिनमें 18 से 20 कर्मचारी तैनात हैं।

सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने के थे आदेश

बाद में यह खुलासा हुआ कि अधिकारियों ने सांठगांठ कर कर्मचारियों की नियुक्ति कर करोड़ों का घोटाला किया है। कुंदन सिंह के अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने बताया कि उनकी ओर से दायर की गई जनहित याचिका की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट गए। बुधवार को न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा और न्यायमूर्ति पार्थ प्रतीम साहू की खंडपीठ ने सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज कर सभी दस्तावेजों को जब्त करने व स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच के आदेश दिए थे।

सात आईएएस अफसरों की संलिप्तता का शक

सूत्रों के अनुसार, इस मामले में 12 अधिकारियों के नाम सामने आए हैं, जिनमें सात आईएएस हैं। पीठ ने सुनवाई के बाद 24 अक्टूबर, 2019 को फैसला सुरक्षित रखा था। यह घोटाला जिस समय हुआ, उस समय समाज कल्याण मंत्री रेणुका सिंह थीं, ज्ञात हो कि पीआरआरसी की स्थापना निशक्त लोगों के लिए उपकरण बनाने और उपलब्ध कराने के नाम पर की गई थी, मगर इस संस्थान ने फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन का भुगतान कर बड़ा घोटाला किया।

15 साल रमन सरकार का नारा रहा कि खाओ और खाने दो। जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए कहते थे कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। भ्रष्टाचार, घोटाले और कमीशनखोरी के रमन सिंह सरकार के 15 साल कभी नहीं भूलेगा छत्तीसगढ़। एनजीओ के माध्यम से प्रदेश के लाखों करोड़ रुपये सरकार ने बर्बाद कर दिए। अभी ऐसे कई मामले निकलेंगे।

राज्य सरकार पर है 84 हजार करोड़ का कर्ज, यह कुल बजट का है करीब 87 प्रतिशत

 प्रदेश सरकार पर कर्ज का भार 84 हजार करोड़ से अधिक हो गया है। यह राज्य के कुल बजट का करीब 87 प्रतिशत है। तीन वर्ष पहले जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी,तब राज्य का कुल कर्जभार 41 हजार करोड़ रुपए था।वर्तमान में कर्ज के बदले में सरकार को हर माह करीब 400 करोड़ रुपये ब्याज देना पड़ रहा है। भाजपा अब इसे लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रही है।

साढ़े तीन वर्ष में 51 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज

प्रदेश सरकार ने बीते साढ़े तीन वर्षों में 51 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज लिया है। वह इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मामले में कई बार कह चुके हैं कि केंद्र सरकार राज्य के हिस्से का पैसा समय पर नहीं देती, इस वजह से प्रदेश के किसानों व गरीबों के हित और राज्य के विकास के लिए कर्ज लेना पड़ता है। इधर, चालू वित्तीय वर्ष के शुरुआती तीन माह में राज्य सरकार ने रिजर्व बैंक के माध्यम से अभी तक कोई कर्ज नहीं लिया है।

बढ़ रहा है ब्याज का भार

कर्ज के साथ राज्य पर ब्याज भार भी बढ़ रहा है। इस वक्त राज्य सरकार हर माह 400 करोड़ रुपये से ज्यादा ब्याज का भुगतान कर रही है। 2020 में यह राशि करीब 360 करोड़ रुपये थी। आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2018 से मार्च 19 तक सरकार ने 1771.94 करोड़ रुपये ब्याज जमा किया। वहीं, अप्रैल 19 से मार्च 20 तक 4970.34 करोड़, अप्रैल 20 से मार्च 21 तक 5633.11 करोड़ और अप्रैल 21 से जनवरी 22 तक 3659.54 करोड़ रुपये ब्याज जमा कर चुकी है।

भाजपा शासित राज्यों की तुलना में कर्जभार हैं कम

इधर, कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि प्रदेश सरकार का कर्जभार भाजपा शासित राज्यों की तुलना में कम है। मार्च में हुए विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूसरे राज्यों के कर्जभार की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि उत्तर प्रदेश का कर्जभार 92 प्रतिशत है। गुजरात 146, मध्य प्रदेश 125, हरियाणा 180 और कर्नाटक का कर्जभार 126 प्रतिशत है।वंही कांग्रेस का यहा भी कहना हैं कि हमारी सरकार गांव, गरीब और किसान के कल्याण और राज्य के विकास के लिए कर्ज ले रही है। इसका सुपपरिणाम भी दिख रहा है। राज्य में खेती का रकबा बढ़ा है। करीब साढ़े चार लाख किसान खेती को ओर लौटे हैं। वहीं, भाजपा ने प्रदेश में अपने 15 वर्ष के कार्यकाल में 41 हजार करोड़ का कर्ज लिया था। इसके बावजूद किसान कर्ज में दबे हुए थे। हमारी सरकार में किसान कर्ज मुक्त हुए हैं। भाजपा के नेता केवल अफवाह फैलाते हैं। आज भी भाजपा शासित राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ की वित्तीय स्थिति बेहतर है।

17 लाख से अधिक किसानों का 84 सौ करोड़ का कर्ज माफ

दिसंबर 2019 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में सदन में पूछे गए सवाल के जवाब में जानकारी हुए बताया था कि सरकार ने राज्य के साढ़े 17 लाख से अधिक किसानों का 84 करोड़ रुपए का कर्जा माफ कर दिया गया हैं। यह जानकारी मुख्यमंत्री ने विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक के द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में लिखित रूप में दी थी।नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने जानना चाहा कि राज्य में जनवरी 2019 से 1 नवम्बर 2019 तक कुल कितने किसानों की कितनी राशि का ऋण माफ किया गया है? इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने बताया था कि प्रदेश में 17 लाख 56 हजार 966 किसानों के 8 हजार 374 करोड़ 12 लाख के ऋण माफ किए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया था कि एक नवम्बर 2018 तक की स्थिति में व्यवसायिक बैंकों से 2 लाख 17 हजार 583 किसानों द्वारा 3 हजार 54 करोड़ का ऋण लिया गया था। व्यवायिक बैंकों से 2 लाख 2 हजार किसानों का 1568 करोड़ का ऋण माफ किया गया।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा सदस्य अजय चंद्राकर के एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि सरकार ने किसानों की नान परफॉमिंग खातों के वन टाइम सैटेलमेंट का फैसला लिया है। उन्होंने बताया था कि व्यवसायिक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के ऐसे किसानों की संख्या एक लाख 16 हजार 324 और उनकी कुल राशि 1077 करोड़ है। 31 अक्टूबर की स्थिति में 79109 किसानों की 626 करोड़ की राशि का सैटेलमेंट कर दिया गया है एवं 37 हजार 215 किसानों का 451 करोड़ का सैटेलमेंट बकाया है।

केंद्र के पास अटके हैं छत्तीसगढ़  राज्य के 46 हजार करोड़:खनिज लेवी,पेंशन समेत कई योजनाओं की राशि का है इंतजार,नही मिली नक्सल मोर्चे पर हुई खर्च तक कि राशि

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 29 अगस्त 2022 को बालोद के लिए रवाना होने से पहले हेलिपैड पर मीडिया से बातचीत की थी  इस दौरान उन्होंने कई मसलों पर बात  भी की मुख्यमंत्री ने केंद्र से पैसे ना मिलने पर भाजपा की चुप्पी पर सवाल उठाए थे सीएम भूपेश बघेल ने कहा था कि छत्तीसगढ़ की भलाई के नाम पर भाजपा नेता मौन क्यों है। केंद्र सरकार के पास राज्य का 1389 करोड़ बचा हुआ है आखिर उसे दिलाने में वह अपनी भूमिका क्यों नहीं निभाते उनकी चुप्पी समझ से परे है?बता दे कि केन्द्र सरकार के पास छत्तीसगढ़ के 46 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया है। इन पैसों की मांग के लिए राज्य सरकार की ओर से कई बार केन्द्र सरकार को चिट्‌ठी भेजी जा चुकी है लेकिन अभी तक यह राशि जारी नहीं की गई है।मीडिया ने पड़ताल की तो पता चला कि विभिन्न मदों तथा टैक्स से मिलने वाली राशि का बड़ा हिस्सा जिस पर राज्य सरकार का हक है, उसे केन्द्र सरकार ने दबा रखा है। इसमें कोयला व अन्य खनिजों से मिलने वाली लेवी की ही 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि है।इसके अलावा पुरानी पेंशन योजना के 17 हजार करोड़ रुपए हैं। केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स में राज्य को 13 हजार करोड़ रुपए से कम मिले हैं। इसी तरह मनरेगा तथा 14 वें वित्त के 300-300 करोड़ रुपए भी केंद्र स्तर पर ही रूके पड़े हैं।

10 से अधिक बार लिखे जा चुके हैं पत्र

11 हजार 828 करोड़ रुपए नक्सल मोर्चे के नहीं मिले

13 हजार करोड़ रुपए टैक्स में कम मिले

*बिन पैसा.. सब सून*

-कर्मचारियों के महंगाई भत्ते और एचआरए देने में बाधा।

-भवन निर्माण तथा अन्य सुविधाएं विकसित करने में बाधा।

-धान खरीदी के लिए कर्ज लेना पड़ता है

-मृूलभूत सुविधाओं के विकास पर असर

-केन्द्र सरकार के पास अटके हैं राज्य के ये पैसे

-खनिजों की एडिशनल लेवी के 4170 करोड़

-पुरानी पेंशन योजना की 17240 करोड़

-15 वें वित्त में टैक्स वसूली में छग को 13089 करोड़ कम मिले

-मनरेगा के 332 करोड़ रुपए

14 वें वित्त की 2018-19 एवं 2019-20 के 300 करोड़

-11,828 करोड़ नक्सल मोर्चे पर खर्च हुए, वे भी नहीं मिले

यह सब मांगे भी केन्द्र के पास हैं लंबित

-पंचायतोें की योजनाओं की राशि 60-40 की बजाय 50-50 की जाए।

-धान से बायो-एथेनाल बनाने के नियम को शिथिल किया जाए।

-आधिक्य अनाज घोषित करने का अधिकार राज्य को मिले।

-कम पेड़ों वाले आकांक्षी जिलों में 5 मेगावॉट तक सोलर संयंत्र की स्थापना की अनुमति।

-वन संरक्षण अधिनियम-1980 के तहत स्कूलों को 5 हेक्टेयर जमीन दी जाए।

-राज्य को 40 हेक्टेयर तक वन भूमि व्यपवर्तन की अनुमति दी जाए।

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