संस्कारवान बालक ही अपने माता पिता का सम्मान कर सकता है- पं त्रिभुवन महराज

विकास कुमार ध्रुव

छुरा (गंगा प्रकाश)- श्राद्ध पर्व में पितरों के तर्पण के निमित्त कथा तर्पण के अंतर्गत नगर के मानस मंदिर में 16 सितंबर से चल रहे श्रीमद भागवत महापुराण कथा ज्ञान सत्संग उत्सव के चौथे दिवस व्यास पीठ से ब्रम्हलीन पवन दीवान के कृपापात्र शिष्य पं त्रिभुवन महराज ने अजामिल की कथा सुनाते हुए कहा कि अजामिल ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में परिवर्तन लाया। मनुष्य को मन में बदलाव लाना चाहिए यह जरूरी है।कथा श्रवण के पश्चात मन में वैराग्य और बदलाव आना चाहिए।सांसारिक रस का स्वाद लेने से अच्छा है हरि कथा का रस लेना। मनुष्य जीवन पाकर अपने कर्म को सुधार लीजिए। इसके लिए सत्संग कीजिए।सत्संग जीवन को सुधारता है। इसी प्रकार नरसिंह अवतार में जय विजय की कथा सुनाते हुए कहा कि जय और विजय लोभ और मोह का स्वरूप है। लाभ से लोभ बढ़ता है लोभ से पाप बढ़ता है जिसके नाश के लिए भगवान अवतार लेते हैं ।जय विजय को श्राप के कारण हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रुप में जन्म लिया। असमय भोग का परिणाम वृत्ति पर पढ़ता है। इसी कारण हिरण्याक्ष धन का संचय करने वाला बना। वह कभी धन का सदुपयोग नहीं किया।हिरण्यकशिपु ने अपने धन का केवल और केवल दुरुपयोग किया। मद्यपान, व्यसन, घमंड, अहंकार किया। संसार में चार प्रकार के पुत्र होते है शत्रुपुत्र, अनुबंधीपुत्र, उदासीपुत्र और सेवक पुत्र। संस्कारवान बालक ही अपने माता पिता का सम्मान कर सकता है।वही सेवक पुत्र है।माता पिता भी अपने संतान विशेष कर पुत्रियों को संस्कार दे। अपने धन का उपयोग समाज के कल्याण, मंदिर देवालय के जीर्णोद्धार में, भंडारा में करें।संभव हो तो पंचामृत का पान प्रतिदिन अवश्य करें। नरसिंह अवतार की कथा सुनाते कहा कि कयाधु ने मानसिक पूजा किया क्योंकि हिरण्यकशिपु ने भगवान की पूजा करने से मना कर दिया था। कयाधु ने नारायण के अपमान को सह नहीं पाई और अपने पति को भगवान के प्रताप को समझाने का उपाय निकाला।अपने पति के मुख से 108 बार नारायण कहलवाया। इसके लिए उन्होंने संसार की सबसे मीठी वस्तु प्रशंसा का प्रयोग किया।किसी की पत्नी नास्तिक हो तो उसे आस्तिक बनाना पति का धर्म है और पति नास्तिक हो तो पत्नी का धर्म है उसे आस्तिक बनाए और धर्म में प्रवृत्त करे।इस अवसर पर परीक्षित के रुप में प्रहलाद पटेल, रेखचंद देवांगन सपत्नीक कथा श्रवण किये साथ ही बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *