
नई दिल्ली (गंगा प्रकाश)— हिंदू धर्म में सभी व्रतों में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इंदिरा एकादशी के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मोक्ष देने वाली इंदिरा एकादशी कहते हैं , जो आज है। इंदिरा एकादशी को श्राद्ध एकादशी के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इंदिरा एकादशी को पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी माना गया है।इंदिरा एकादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु का पूजन शालिग्राम के रूप में करने से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। व्रत के समापन पर व्रत का पुण्य अपने पितरों को अर्पित कर देना चाहिये। कहते हैं जिन पितरों को किन्हीं कारणों से यमराज का दंड भोगना पड़ता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह यमलोक की यात्रा पूरी कर स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं। इंदिरा एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलायें। ऐसा करने से परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ आप इस भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें। इससे सभी नकारात्मक ऊर्जायें खत्म हो जाती हैं और खुशियों का मार्ग खुल जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि आप किसी वजह से पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान ना कर पाये हों, तो इंदिरा एकादशी का व्रत व पूजन जरूर करें क्योंकि इंदिरा एकादशी का व्रत पूर्वजों को श्राद्ध के समान फल देता है तथा इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। कहते हैं कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण ने इंदिरा एकादशी के बारे में विस्तार से बताया था। उन्होंने कहा कि वैसे तो सभी एकादशी का महत्व है किंतु पितरों की दृष्टि से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व है। यह एकादशी पितरों को अधोगति से मुक्त देने वाली तथा सभी पापों को नष्ट करने वाली है। राजा इंद्रसेन ने भी अपने पिता को मोक्ष दिलाने के लिये पितृपक्ष में पड़ने वाली एकादशी का व्रत रखा था और तभी से राजा के नाम पर ही इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी पड़ गया। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है और पूजा के समय इंदिरा एकादशी व्रत की कथा श्रवण करते हैं। वैसे तो सभी को एकादशी का व्रत रखना चाहिये लेकिन जिनके माता-पिता का निधन हो चुका है , उन्हें पितृपक्ष में पढ़ने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिये। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत सभी घरों में करना चाहिये। जो भी व्यक्ति इंदिरा एकादशी का व्रत रखता है और उस व्रत पुण्य को अपने पितरों को समर्पित कर देता है , तो इससे उसके पितरों को लाभ होता है। सात पीढ़ियों तक के जो पितर यमलोक में यमराज का दंड भोग रहे होते हैं , उनको इंदिरा एकादशी व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। ऐसा करने से आपके पितर नरक लोक के कष्ट से मुक्त होकर जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और उनको श्रीहरि विष्णु के चरणों में स्थान मिलता है। इससे प्रसन्न होकर पितर सुख , समृद्धि , वंश वृद्धि , उन्नति आदि का आशीष देते हैं और मृत्यु के बाद व्रती भी बैकुंठ में निवास करता है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
सतयुग में महिष्मति नाम की नगरी में परम विष्णु भक्त और धर्मपरायण राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुख चैन से रहती थी। एक दिन नारद जी इंद्रसेन के दरबार में जाते हैं। नारद जी कहते हैं मैं तुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गये और पिता के मोक्ष का उपाय पूछने लगे। तब नारद ने कहा कि राजन तुम कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो , इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जायेगी। नारद जी की ये बात सुनकर राजा ने उनसे व्रत का विधान पूछा और व्रत करने का संकल्प लिया। राजा ने पितृपक्ष की एकादशी पर विधि-पूर्वक व्रत किया , पितरों के निमित्त मौन रह कर ब्राह्मण भोज और गौ दान किया। इस प्रकार राजा इंद्रसेन के व्रत और पूजन करने से उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिलने के साथ साथ बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई। उस दिन से इस व्रत का नाम इंदिरी एकादशी पड़ गया।