“डीएपी खाद के लिए तरसे किसान, नेताओं के दावे हवा-हवाई – लाइन में लगे किसान बोले, ऊंट के मुंह में जीरा!”
छुरा/पाण्डुका (गंगा प्रकाश)। “डीएपी खाद के लिए तरसे किसान,खेती-किसानी के सीजन में जहां किसानों को डीएपी खाद की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वहीं पाण्डुका और आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में खाद की भारी किल्लत से किसान बेहाल हैं। स्थिति यह है कि सुबह से लाइन में खड़े रहने के बाद भी सैकड़ों किसान खाली हाथ लौटने को मजबूर हैं। उधर, नेताओं द्वारा पर्याप्त खाद होने के दावे ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर नजर आ रहे हैं।

दो सौ बोरी खाद पर तीन सौ किसान – फिर कैसे हो वितरण?
मामला पाण्डुका सेवा सहकारी समिति का है, जहां सोमवार को किसानों की भीड़ सुबह से ही जुट गई थी। जानकारी के अनुसार, यहां सिर्फ 200 बोरी डीएपी खाद उपलब्ध थी, जबकि 300 से अधिक किसान अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। खाद की मांग और आपूर्ति का यह अंतर ही बेतरतीबी की जड़ है। किसानों का कहना है कि उन्हें प्रति एकड़ दो से तीन बोरी खाद चाहिए, लेकिन उन्हें सिर्फ एक बोरी ही मिल रही है – वह भी घंटों की लाइन और अफसरों की ‘कृपा’ के बाद।
इनवॉइस देर से, वितरण और लेट
कंप्यूटर ऑपरेटर कुलेश्वर निर्मलकर ने जानकारी दी कि वह सुबह 10 बजे ऑफिस पहुंचा, लेकिन खाद वितरण में देरी इस कारण हुई क्योंकि इनवॉइस नंबर (Invoice No. 12.32) गरियाबंद से दोपहर साढ़े 12 बजे के बाद आया। इसका असर यह हुआ कि खाद वितरण देर से शुरू हुआ और अफरा-तफरी का माहौल बन गया।
पुराने क्रेडिट कार्ड वाले भी वंचित
बताया गया कि 12 से 15 दिन पहले जिन किसानों ने डीएपी खाद के लिए क्रेडिट कार्ड जमा किए थे, उनमें से भी कई किसानों को अब तक खाद नहीं मिल सका। सोमवार को जिन किसानों ने कार्ड जमा किए, उन्हें कहा गया कि अगली बार खाद दिया जाएगा। लेकिन कब? इसका जवाब किसी के पास नहीं।
“ऊंट के मुंह में जीरा” – किसान बोले, मजबूरी में खरीद रहे प्राइवेट से महंगी खाद
सरकारी गोदामों की बदहाली के बीच प्राइवेट कृषि केंद्रों पर डीएपी खाद ₹1900 प्रति बोरी में बेचा जा रहा है। किसानों का आरोप है कि वहां स्टॉक तेज़ी से भर और बिक रहा है, लेकिन प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं कर रहा। इससे संदेह गहराता है कि सरकारी खाद को ही ब्लैक मार्केट में बेचा जा रहा है।
“किसानों के लिए 40%, व्यापारियों के लिए 60% खाद!”
ग्रामीणों का आरोप है कि खाद वितरण में भारी गड़बड़ी है। जहां किसानों को केवल 40% खाद मिल रहा है, वहीं व्यापारी वर्ग को 60% हिस्सेदारी मिल रही है। यही वजह है कि सरकारी गोदामों में किसानों को खाद नहीं मिल पा रहा।
जिलाधिकारी से संपर्क नहीं
जब इस मुद्दे पर खाद विभाग के डीएमओ अमित चंद्राकर से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उनका नंबर दूसरे नंबर पर फॉरवर्ड बताया गया। इससे स्पष्ट होता है कि जिम्मेदार अधिकारी मीडिया या किसानों की बात सुनने से बच रहे हैं।
किसानों की मांगें:
- खाद की तत्काल आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
- ब्लैक मार्केटिंग पर सख्त कार्यवाही हो।
- सभी पंजीकृत किसानों को उनके हिस्से का खाद पारदर्शिता से दिया जाए।
- कृषि विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय हो।
जहां एक ओर सरकार कृषि को प्राथमिकता देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर किसान खाद जैसी बुनियादी सुविधा के लिए भी दर-दर भटक रहे हैं। यदि समय रहते इस संकट का समाधान नहीं निकाला गया, तो फसल उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा – जिसका असर केवल किसानों पर नहीं, पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।