नागपंचमी विशेष: भोलेनाथ की भक्ति में डूबे नन्हे कदम, गरियाबंद की धरती पर बही आस्था और संस्कारों की निर्मल धारा
कांवड़ यात्रा में बालभक्तों का अनुकरणीय उत्साह, शिक्षा के साथ संस्कार की मिसाल बनी शिशु वाटिका विद्यालय की पहल

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। नागपंचमी विशेष : छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में आज नागपंचमी के पावन अवसर पर अध्यात्म, आस्था और भारतीय संस्कृति का अनुपम संगम देखने को मिला। भोलेनाथ की भक्ति में लीन नन्हे बालभक्तों ने अपने मासूम कंधों पर कांवड़ उठाकर ऐसा समर्पण दर्शाया कि हर देखने वाला भाव-विभोर हो गया। यह अवसर बना शिशु वाटिका विद्यालय द्वारा आयोजित विशेष बाल कांवड़ यात्रा, जिसने न सिर्फ धार्मिक उत्सव को जीवंत किया, बल्कि सनातन संस्कृति के मूल्यों को बालमन में सींचने का अनुकरणीय प्रयास भी किया।
भोले की भक्ति में लीन बालमन, गूंजे “बोल बम” के जयकारे
प्रातःकालीन बेला में जब सूर्य की प्रथम किरणें धरती पर पड़ीं, तभी नगर के प्रतिष्ठित शिशु वाटिका विद्यालय के आंगन से भोलेनाथ की भक्ति का अलौकिक रथ चल पड़ा। पारंपरिक वेशभूषा में सजे बच्चों ने अपने नन्हे कंधों पर कांवड़ उठाई और “बोल बम” के जयकारों से नगर को गुंजायमान करते हुए स्कूल परिसर से तहसील कार्यालय स्थित शिव मंदिर तक कांवड़ यात्रा निकाली।
रास्ते में शिव-पार्वती की झांकी, भक्ति गीतों और वैदिक धुनों के साथ यह यात्रा न केवल धार्मिक अनुभूति से परिपूर्ण रही, बल्कि नागरिकों में भी श्रद्धा और गौरव का भाव भर गई।
न केवल आस्था, बल्कि संस्कृति की शिक्षा भी
इस पूरी यात्रा की अगुवाई विद्यालय की शिक्षिकाओं (दीदी) और बाल संस्कार समिति के सदस्यों ने की। विद्यालय की शिक्षिका ने बताया: – “बच्चों को केवल पढ़ाई नहीं, बल्कि भारतीय मूल्यों और परंपराओं की शिक्षा देना भी हमारी जिम्मेदारी है। ऐसी यात्राएं बालमन में श्रद्धा, अनुशासन और कर्तव्यबोध का बीज बोती हैं।”
भोलेनाथ को जलाभिषेक, शिव स्तुति से गूंजा मंदिर परिसर
तहसील कार्यालय परिसर स्थित भोलेनाथ मंदिर पहुंचकर बच्चों ने विधिवत पूजन-अर्चन किया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव को जलाभिषेक अर्पित किया गया। बालभक्तों ने हाथ जोड़कर भोलेनाथ से देश-दुनिया की सुख-शांति और अपने उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इस क्षण ने जैसे समय को थाम लिया हो—इतनी भक्ति, इतना भाव और इतनी मासूम श्रद्धा विरले ही देखने को मिलती है।
बाल संस्कार समिति की गरिमामयी उपस्थिति
इस कार्यक्रम में भूतेश्वर नाथ बाल संस्कार समिति के अध्यक्ष लोकनाथ साहू, उपाध्यक्ष श्रीमती ताकेश्वरी (तनु) साहू, विद्यालय के आचार्यगण, शिक्षिकाएं, आया दीदी, अभिभावकगण एवं गणमान्य नागरिक भी शामिल रहे।
लोकनाथ साहू ने अपने प्रेरणास्पद वक्तव्य में कहा: – “संस्कार बचपन में ही दिए जाएं, तो समाज का भविष्य सुरक्षित होता है। शिवभक्ति बच्चों को सेवा, श्रद्धा और अनुशासन सिखाती है, जो उनके समूचे जीवन की नींव बनती है।”
उपाध्यक्ष तनु साहू ने कहा: – “यह आयोजन कोई कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मानुशासन, संयम और सेवा की जीवंत पाठशाला है। नन्हे बच्चों के मन में जब शिव की छवि बस जाती है, तो वही छवि आगे चलकर समाज को दिशा देती है।”
जब शिक्षा और संस्कार साथ चलें, तभी बनती है सच्ची पीढ़ी
इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि शिक्षा के साथ संस्कार जोड़े जाएं, तो आने वाली पीढ़ी न केवल ज्ञानी बल्कि संवेदनशील और संस्कृति-संपन्न बनती है। विद्यालय द्वारा प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ, लेकिन नगरवासियों के हृदय में यह आयोजन एक अमिट छाप छोड़ गया।
बालमन में जब भक्ति बसती है, तब भविष्य खिल उठता है
गरियाबंद की इस अनोखी बाल कांवड़ यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची भक्ति न उम्र देखती है, न अवस्था। अगर प्रयास ईमानदार हो, तो नन्हे कदम भी संस्कृति की सबसे ऊंची सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। नागपंचमी के इस पावन दिन, भोलेनाथ की यह झलक आने वाले वर्षों की आस्था और आशा की नई रेखाएं खींच गई।