गरियाबंद (गंगा प्रकाश)।पैराशूट की तर्ज पर बैठी अधीक्षिका का नया कारनामा! जिले के कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में बच्चों के लिए शासन से भेजा गया राशन खुलेआम बाजार में बेचने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। विद्यालय की अधीक्षिका पर यह गंभीर आरोप है कि वह छात्राओं के पोषण हेतु उपलब्ध कराए गए पीडीएस चावल को निजी संस्थानों में खपाने का खेल लंबे समय से खेल रही हैं। ताज़ा घटना ने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है।

कैसे हुआ पर्दाफाश?
मामला तब उजागर हुआ जब गरियाबंद के फेमस लॉज के पास स्थित एक निजी दुकान में चावल उतारा जा रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, टाटा मोटर्स का छोटा हाथी (वाहन क्रमांक CG04-NJ-0878) चावल से भरा खड़ा था। इस वाहन से करीब 6 कट्टा चावल पहले ही दुकान के भीतर उतारे जा चुके थे।
जब मौके पर मौजूद संवाददाता ने पूछताछ की तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि यह चावल कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय का है, जिसे विद्यालय की छात्राओं के भोजन के लिए शासन द्वारा भेजा गया था।
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गड़बड़ी पकड़ी गई तो क्या हुआ?
जैसे ही इस हेराफेरी की भनक विद्यालय की अधीक्षिका तक पहुँची, वाहन चालक ने आनन-फानन में शेष चावल वापस विद्यालय ले जाकर अपनी गाड़ी खाली कर दी। लेकिन तब तक यह गड़बड़ी स्थानीय लोगों और मीडिया की नज़रों में आ चुकी थी।
प्रशासन क्या कहता है?
इस मामले पर जब अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीएम) हितेश्वरी बांधे से बात की गई, तो उन्होंने साफ कहा – “आपके माध्यम से यह मामला संज्ञान में आया है। जांच के बाद दोषियों पर आवश्यक अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।”
वहीं, जिले की खाद्य अधिकारी रितु मौर्य से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
लोगों का गुस्सा –
घटना से स्थानीय लोग बेहद आक्रोशित हैं। उनका कहना है – “यह सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि इंसानियत के खिलाफ अपराध है। बच्चों के पोषण और शिक्षा के नाम पर जो राशन शासन भेजता है, उसी पर डाका डाला जा रहा है। यह बच्चों के हक की सीधी चोरी है।”
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“पैराशूट” अधीक्षिका पर पहले भी लगे हैं सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि अधीक्षिका की नियुक्ति पैराशूट पद्धति से हुई थी, यानी बिना किसी ठोस प्रक्रिया के सीधे ऊँचे स्तर से तैनाती कर दी गई। तभी से विद्यालय की व्यवस्थाओं पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। छात्राओं को मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता पर भी कई बार संदेह जताया गया, लेकिन इस बार मामला सीधे राशन की खुलेआम बिक्री तक पहुँच गया है।
प्रशासन के सामने चुनौती
अब जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि – इस प्रकरण की पारदर्शी जांच की जाए। दोषियों पर कड़ी अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई हो। छात्राओं के पोषण से जुड़े इस तरह के गंभीर भ्रष्टाचार को भविष्य में रोकने के ठोस उपाय किए जाएं।
यह सिर्फ एक विद्यालय या अधीक्षिका का मामला नहीं है, बल्कि गरीब बच्चियों के भविष्य और उनके हक से जुड़ा सवाल है। यदि शासन-प्रशासन ने सख्ती से कार्रवाई नहीं की, तो यह हेराफेरी बच्चों के पोषण पर डाका डालने का एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा।