छुरा (गंगा प्रकाश)। एक तरफ़ शासन और सुप्रीम कोर्ट ने जर्दा गुटखा और तंबाकू मिश्रित उत्पादों की बिक्री पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाया हुआ है, वहीं दूसरी तरफ़ छुरा नगर और आसपास के ग्रामीण अंचल में यह “मौत का कारोबार” बेधड़क चल रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह अवैध धंधा बड़े किराना व्यापारियों और राजनीतिक सरंक्षण में फल-फूल रहा है। स्थानीय प्रशासन और खाद्य विभाग की चुप्पी इस पूरे प्रकरण को और संदिग्ध बना रही है।

बैन के बावजूद खुलेआम बिक रहा गुटखा
शासन द्वारा जारी आदेशों के अनुसार, जर्दा और तंबाकू मिश्रित किसी भी पान मसाला या सुगंधित तंबाकू उत्पाद की बिक्री, भंडारण और परिवहन पूरी तरह प्रतिबंधित है।
इसके बावजूद छुरा के बाजारों, दुकानों और ग्रामीण हाट-बाजारों में विमल, आशिकी, पायल और रजनीगंधा जैसे पान मसालों में तंबाकू मिलाकर खुलेआम बिक्री की जा रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कारोबार सिर्फ़ छोटे दुकानदारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे नगर के बड़े कारोबारी और किराना संघ के कुछ पदाधिकारी तक शामिल हैं।
भाजपा शासन की आड़ में “जर्दा जाल” फैला
खबर में नया मोड़ तब आया जब यह बात सामने आई कि कुछ किराना व्यापारी संघ के पदाधिकारी, जो खुद को भाजपा कार्यकर्ता बताकर सत्ता की छाया में बैठे हैं, इस धंधे के मुख्य सरगना बने हुए हैं।
जनचर्चा है कि इन व्यापारियों को राजनीतिक सुरक्षा मिली हुई है, जिससे प्रशासन की कार्यवाही अक्सर आधी-अधूरी रह जाती है।
“शासन भाजपा का, अधिकारी मौन और माफिया सक्रिय” — यही अब छुरा की सच्चाई बन गई है।
नियम-कानून का उल्लंघन, पर कार्रवाई अधूरी
फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट 2006 (FSSA) की धारा 26 और 27 के तहत तंबाकू युक्त खाद्य पदार्थों का निर्माण, बिक्री या वितरण दंडनीय अपराध है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार दोनों ने गुटखा को “फूड प्रोडक्ट नहीं, ज़हर का पैकेट” करार दिया है।
फिर भी छुरा नगर में यह गुटखा मिक्स पान मसाला खुलेआम बिक रहा है — वो भी बिना किसी भय के।
स्थानीय सूत्रों का दावा है कि खाद्य विभाग द्वारा कुछ नाममात्र की छापेमारी तो की जाती है, लेकिन कभी भी किसी बड़े व्यापारी पर ठोस कार्रवाई नहीं होती।
कई बार तो अधिकारी पहले से सूचना देकर छापा डालने का नाटक करते हैं, जिससे माफिया पहले ही अपने स्टॉक को छुपा देते हैं।
गांव से शहर तक फैला “मौत का जाल”
छुरा नगर, लोहझर, खड़मा, रसेला, मुड़ागांव और रानीपरतेवा जैसे इलाकों में गुटखा माफिया ने मजबूत सप्लाई चैन बना रखी है। रोजाना हजारों रुपये का अवैध कारोबार चलता है।
स्कूलों के पास, बस स्टैंडों और किराना दुकानों में कम उम्र के बच्चे तक विमल और आशिकी पान मसाला खरीदते देखे जा रहे हैं।
कई ग्रामीण युवाओं ने शिकायत की है कि गुटखा छोड़ना मुश्किल हो गया है, और इससे स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।
स्थानीय जनता का सवाल – प्रशासन मौन क्यों?
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर शासन सच में गंभीर है, तो छुरा में गुटखा बिक्री बंद क्यों नहीं हो रही?
क्या खाद्य अधिकारी, पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से यह मौत का धंधा चल रहा है?
एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया – “अगर कोई गुटखा नहीं बेचेगा तो दूसरे दिन उसकी दुकान पर ग्राहक नहीं आएंगे, क्योंकि पूरा बाजार इसी पर टिका है।”
खाद्य अधिकारी से संपर्क, जवाब नहीं मिला
जब इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण के लिए छुरा के संबंधित खाद्य अधिकारी से संपर्क किया गया, तो कई बार कॉल करने के बावजूद उन्होंने फोन नहीं उठाया। इसके बाद वॉट्सएप पर भी संदेश भेजा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
अधिकारी की यह चुप्पी और मौन रवैया यह संकेत देता है कि या तो विभाग जानबूझकर आंख मूंदे बैठा है, या फिर किसी दबाव में है।
अब उठ रहे गंभीर सवाल
- क्या छुरा में गुटखा माफिया को प्रशासन का संरक्षण प्राप्त है?
- खाद्य विभाग के अधिकारी आखिर क्यों चुप हैं?
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद शासन स्तर पर निगरानी क्यों नहीं?
- क्या भाजपा शासन की आड़ में चल रहा है यह “मौत का व्यापार”?
मौत के सौदागर खुलेआम, विभाग मौन
छुरा में गुटखा प्रतिबंध सिर्फ़ कागज़ पर दिखता है, ज़मीन पर नहीं।
जहां शासन “नशामुक्त समाज” की बात करता है, वहीं सत्ता के साये में यह मौत का कारोबार फल-फूल रहा है।
प्रशासन की निष्क्रियता, राजनीतिक सरंक्षण और खाद्य विभाग की मौन स्वीकृति ने अब जनता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या कानून सिर्फ गरीबों के लिए है?
या फिर “पैसे और पहुंच” वालों के लिए सब माफ़ है?