CJI BR Gavai Farewell Speech : भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा आयोजित विदाई समारोह में अपनी धार्मिक आस्था और धर्मनिरपेक्षता पर भावुक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
बौद्ध धर्म का पालन और धर्मनिरपेक्षता
जस्टिस गवई ने अपने भाषण में कहा कि,”मैं बौद्ध धर्म का पालन करता हूँ, लेकिन मुझे धार्मिक पढ़ाई या धर्म से जुड़ी गहरी जानकारी ज़्यादा नहीं है। मैं वास्तव में धर्मनिरपेक्ष हूँ और मैं हिंदू धर्म, सिख धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सबमें विश्वास रखता हूँ।”
उन्होंने कहा कि उन्होंने यह दृष्टिकोण अपने पिता से सीखा, जो सच्चे धर्मनिरपेक्ष और डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रबुद्ध अनुयायी थे। उन्होंने बचपन की यादें साझा करते हुए बताया कि उनके पिता उन्हें राजनीतिक समारोहों में ले जाते थे और उनके दोस्त जब प्रसिद्ध दरगाह या गुरुद्वारे जाने को कहते थे, तो वे जाते थे। इस तरह उन्हें सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाया गया।
संविधान और अंबेडकर को दिया श्रेय
सीजेआई गवई ने अपने इस पद तक पहुंचने का श्रेय डॉ. अंबेडकर और भारत के संविधान को दिया। उन्होंने कहा,
“वरना, मुझे नहीं लगता कि जमीन पर बैठकर म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ने वाला कोई लड़का कभी ऐसा सपना देख सकता है।”
उन्होंने बताया कि उन्होंने हमेशा संविधान के चार मूलभूत सिद्धांतों— न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (fraternity) — के अनुसार जीने का प्रयास किया है।
न्यायपालिका की सामूहिक शक्ति पर जोर
जस्टिस गवई ने इस बात पर जोर दिया कि सर्वोच्च न्यायालय को कभी भी सीजेआई-केंद्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सभी न्यायाधीशों का न्यायालय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा लिए गए निर्णय सामूहिक रूप से पूर्ण न्यायालय की सहमति से लिए गए हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का कार्य सभी हितधारकों— न्यायाधीशों, बार, रजिस्ट्री और कर्मचारियों — के एक साथ मिलकर काम करने पर निर्भर करता है।



