
अरविन्द तिवारी
जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश)– हिन्दूओं के सार्वभौम धर्मगुरु एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी वैदिक शास्त्रों में हिन्दू एवं हिन्दुस्तान के संबंध में वर्णित तथ्यों का उल्लेख करते हुये संकेत करते हैं कि सनातन प्रसिद्धि के अनुसार सात नदियाँ अखण्ड भारत को सीमांकित करती हैं। नारद पुराण में कथन है कि गङ्गा / यमुना / गोदावरी / सरस्वती / नर्मदा / सिन्धु तथा कावेरी आदि नदियाँ इस जल में निवास करें। पुष्कर आदि तीर्थ और गङ्गादि परम सोभाग्य शालिनी सरितायें सदा मेरे स्नानकाल में यहाँ पधारें। इनमें गङ्गा / यमुना / सरस्वती ये तीन पूर्वोत्तर भारत की नदियाँ हैं। गोदावरी दक्षिण और पश्चिम भारत की नदी है। नर्मदा मध्य और पश्चिम भारत की नदी है। सिन्धु – पश्चिमोत्तर भारत की नदी है। कावेरी दक्षिण भारत की नदी है। पश्चिमी पंजाब में स्थित सिन्धु – नदी प्राचीन काल में हमारी स्वाभाविक सीमा थी। सिन्धु नदी और करांची का सिन्धु (समुद्र) हमारी जलीय सीमा के सनातन मानबिन्दु हैं। इन पर भारत का आधिपत्य अनिवार्य है। सप्तसिन्धु को हप्तहिन्दु तद्वत् सिन्दु को हिन्दु कहने की वैदिक विधा है। वर्णमाला में श / ष / स और ह का साहचर्य है। भी सप्तसिन्धु या हप्तहिन्दु तथा हप्तहिन्द माना है। वस्तुतः विशाल पर्वत हेमकूट ही कैलास नाम से प्रसिद्ध है। वहीं कुबेर जी गुह्यकों के साथ सानन्द निवास करते हैं। कैलास से उत्तर मैनाक है। उससे भी उत्तर दिव्य तथा महान् मणिमय पर्वत हिरण्यशृङ्ग है। उसके सन्निकट विशाल / दिव्य /उज्ज्वल तथा काञ्चनमयी बालुका से सुशोभित रमणीय बिन्दुसरोवर है। वहीं भगीरथ ने भागीरथी गङ्गा का दर्शन करने के लिये बहुत वर्षों तक तप किया था। वहाँ बहुत से मणिमय यूप तथा सुवर्णमय चैत्य (महल) शोभा पाते हैं। वहीं यज्ञ करके महा यशस्वी इन्द्र ने सिद्धि प्राप्त की थी। उस स्थान पर लोकस्रष्टा प्रचण्ड तेजस्वी सनातन सर्वेश्वर की विविध प्राणियों द्वारा उपासना की जाती है। नर / नारायण /ब्रह्मा / मनु तथा सदाशिव का वह निवास स्थल है। ब्रह्मलोक से उतरकर त्रिपथ गामिनी दिव्य नदी गङ्गा सर्वप्रथम उस बिन्दुसरोवर में ही प्रतिष्ठित हुई थी। वहीं से उसकी सिन्धु आदि सप्त (सात) धारायें विभक्त हुई हैं उनके नाम इस प्रकार हैं। विस्वोकसारा – नलिनी / पावनी / सरस्वती / जम्बूनदी / सीता / गङ्गा और सिन्धु। इन सप्त धाराओं का प्रादुर्भाव सर्वेश्वर का ही अचिन्त्य / सुन्दर और दिव्य विधान है। यहाँ याज्ञिक कल्पान्त पर्यन्त यज्ञानुष्ठान के द्वारा परमेश्वर की उपासना करते हैं। इन सात धाराओं में जो सरस्वती नामवाली धारा है , वह कहीं दृश्य तथा कहीं अदृश्य है। ये सात धारायें त्रिभुवन में विख्यात हैं l इन्दु का अर्थ चन्द्र है , अतएव वाल्मीकि रामायण में सिन्धुनदी का नाम इन्दुमती आया है। सिन् का अर्थ इन्दु है। सिन् – धुः, सिन्धुः का अर्थ चन्द्रधारक है। समुद्रमन्थन से चन्द्रमा का प्रादुर्भाव तथा चन्द्रदर्शन से समुद्र का उल्लास तथा चन्द्रकला की शीतलता आदि हेतुओं से यह तथ्य सिद्ध है। सिन् का अर्थ चन्द्र होने के कारण ही सिनी का अर्थ चन्द्रकला तथा अमावास्या का नाम सिनीवाली है। उक्त रीति से सिन्धु के तुल्य इन्दु से भी इस देश का नाम हिन्दु होना स्वाभाविक है। भूतभावन शिव इन्दु और सिन्धु संज्ञक गङ्गा को शिर पर धारण करते हैं। अतः शिवाराधक आर्यों का यह देश सिन्धु या हिन्दु है। धु के तुल्य दु का अर्थ धारक है। अतः सिन्धु और हिन्दु में साम्य है। सिन् और हिन् समानार्थक है। हिंकार / प्रस्ताव आदि उद्गीथ /प्रतिहार / उपद्रव और निधन – संज्ञक सप्तविध या हिंकार / प्रस्ताव / उद्गीथ /प्रतिहार और निधन – पञ्चविध साम में हिंकाररूप प्रथम सामगत हिन् – से सिन् का साम्य है। सिन् सोम है। इन्दु – संज्ञक सोमात्मक चन्द्र की उज्जवल – स्फूर्ति सोमलता सोमयज्ञ के सम्पादन में मुख्य घटक है।