ज्ञान / वैराग्य और तपस्या की देवी है मां ब्रह्मचारिणी – अरविन्द तिवारी

नई दिल्ली (गंगा प्रकाश)- नवरात्री में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की पूजा होती है। हर दिन माँ के अलग अलग मंत्रों का उच्चारण करने और अलग अलग भोग लगाने से माँ प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देती हैं। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि नवरात्रि के दूसरे दिन आज मांँ दुर्गा की नौ शक्तियों के दूसरे स्वरूप मांँ ब्रह्मचारिणी के दर्शन पूजन का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ‘चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ – ब्रह्म मतलब तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली देवी होता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान , तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। कठोर साधना और ब्रह्म में लीन रहने के कारण भी इनको ब्रह्मचारिणी कहा गया है। ब्रह्मचारिणी रूप की आराधना से उम्र लम्बी होती है। मान्यता है कि इन देवी की आराधना से विवाह में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती है। माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य , दिव्य रूप में होता है , इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमंडल लिये श्वेत वस्त्र में देवी विराजमान होती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी पूजा , तप , शक्ति , त्याग , सदाचार , संयम और वैराग्य में वृद्धि करती है और शत्रुओं का नाश करती है। ये अक्षय माला और कमंडलधारिणी , शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को वे अपनी सर्वज्ञ सम्पन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनकी शादी तय हो गई है लेकिन अभी भी शादी नहीं हुई है। उन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र , पात्र आदि भेंट किये जाते हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन मांँ को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाने से लंबी आयु का वरदान मिलता है। नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा में हरे रंग का कपड़ा पहनना शुभ माना जाता है और इस दिन लम्बी उम्र की कामना के लिये शक्कर का भोग लगाया जाता है। मां ब्रह्मचारिणी  को दूध और दही का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा चीनी , सफेद मिठाई और मिश्री का भी भोग लगाया जा सकता है। माता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है। आज के दिन माँ के “या देवी सर्वभू‍तेषु मांँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इसके अलावा ब्रह्मचारिणी: ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।” मंत्र का जप किया जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मांँ ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये बहुत कठिन तपस्या की , इसीलिये इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। मांँ ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताये और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर जीवन निर्वाह किया। इसके बाद मांँ ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं , टूटे हुये बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इससे भी जब भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुये तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं , पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। मांँ ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई। इस तपस्या को देख सभी देवता , ऋषि , सिद्धगण , मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। मांँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिये।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *