हादसों की एनएच के पास नहीं ट्रामा की सुविधा

घायल कोरबा की बजाए जा रहे बिलासपुर

भागवत दीवान

कोरबा(गंगा प्रकाश)। बीते चार महीनों के दौरान कटघोरा से अंबिकापुर के बीच अलग-अलग सड़क हादसे में एक दर्जन लोगों की जान चली गई। इसमें से ज्यादातर की मौत सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि समय पर इलाज नहीं मिल सका। इस हाइवे में हादसे के बाद घायलों को या तो मोरगा अस्पताल लाया जाता है या फिर पोड़ीउपरोड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र। यहां ट्रामा सेंटर की सुविधा नहीं है। ऐसे में घायल को शहर के अस्पताल के बजाय बिलासपुर ले जाया जा रहा है।

मोरगा अस्पताल और पोड़ीउपरोड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र दोनों ही अस्पतालों में सिर्फ प्राथमिकी इलाज ही मिल पा रहा है।थाना क्षेत्र में घायल होने के बाद मरीज व परिजन कोरबा शहर आने की बजाए बिलासपुर जा रहे हैं। दरअसल कोरबा से कम दूरी बिलासपुर पड़ती है। साथ ही सिम्स, अपोलो समेत अन्य बड़े अस्पताल में बेहतर इलाज मिलने की वजह से लोग कोरबा नहीं आते। हालांकि बिलासपुर पहुंचने में भी कम से कम एक घंटे का समय लग जाता है।पोड़ीउपरोड़ा और पाली में प्रस्तावित मिनी ट्रामा सेंटर अब तक कागजोंं में है। इधर इन अस्पतालों से गुजरने वाले हाइवे पर हर रोज हो रहे हादसे के बाद यात्रियों को इमरजेंसी इलाज की जरुरत पड़ रही है, सुविधा नहीं होने की वजह से लोगों की जान रेफर में जा रही है।हादसे के बाद मरीजों के सिर पर गंभीर चोट लगने की वजह से जान जा रही है, लेकिन ब्रेन में चोट लगने के बाद सबसे पहले सिटी स्कैन की जरुरत पड़ती है। डॉक्टर तब तक इसकी दवाई नहीं दे सकते जब तक उन्हें जांच रिपोर्ट नहीं मिल पाती। इसलिए ऐसे मरीजों को आनन-फानन में कोरबा भेज दिया जाता है। कोरबा पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लग जाता है यही देरी मरीजों की मौत की वजह बन रही है। यही स्थिति पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की है। हाइवे से लगे इन दोनों ही प्रमुख चिकित्सालयों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। स्थिति ये है कि जरा भी गंभीर मरीज अस्पताल पहुंचते हैं। उनकी प्राथमिकी इलाज के बाद जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। सड़क हादसे में घायल, भालू के हमले से घायल समेत सभी तरह के गंभीर केस का इलाज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में नहीं हो पा रहा है।

खुद के वाहन का सहारा

हाइवे होने की वजह से सड़क हादसे के शिकार जिले व प्रदेश के बाहर लोग भी होते हैं। जिन्हें अस्पताल की जानकारी नहीं होती। नजदीकी अस्पताल पहुंचने के बाद जिला अस्पताल की जानकारी तक उनके पास नहीं होती। कई बार ये स्थिति सामने आई है जब एंबुलेंस नहीं होने पर खुद के वाहन से जाना पड़ता है। गंभीर स्थिति में मरीज को लाने के बाद भी एक जगह इलाज नहीं मिल पाता।

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