Brekings: बिरीमडेगा में राशन घोटाले की गूंज: प्रशासन की चुप्पी चौंकाने वाली, क्या अफसर भी ‘लूट’ में हिस्सेदार हैं?

 

जशपुर (गंगा प्रकाश)। बिरीमडेगा में राशन घोटाले की गूंज: पत्थलगांव विकासखंड के आदिवासी बहुल गांव बिरीमडेगा में राशन वितरण को लेकर उठे जनसवाल अब गांव की सीमाएं लांघते हुए जिला प्रशासन तक पहुंच गए हैं। गांव के गरीब, वंचित और जरूरतमंद लोगों ने आरोप लगाया है कि शासकीय उचित मूल्य की दुकान क्रमांक 562008081 में जून, जुलाई और अगस्त का राशन उनके नाम से ई-PoS मशीन पर वितरण दिखाया गया, लेकिन उन्हें वास्तव में सिर्फ एक माह का राशन दिया गया।

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यह मामला केवल राशन वितरण की गड़बड़ी का नहीं, बल्कि एक सुनियोजित घोटाले, प्रशासनिक चुप्पी और शायद मिलीभगत का भी है, जिसे अब जन आंदोलन का रूप दिया जा रहा है। इस पूरे मामले में खाद्य विभाग और जिला प्रशासन दोनों कठघरे में खड़े हैं।

फिंगर स्कैन तीन बार, राशन सिर्फ एक बार — कहां गया बाकी चावल?

ग्रामीणों का कहना है कि राशन दुकान के विक्रेता राजेश्वर यादव ने जून, जुलाई और अगस्त माह में ई-PoS मशीन से उनका फिंगरप्रिंट स्कैन कर लिया और वितरण रिपोर्ट में यह दर्ज भी कर लिया गया कि राशन दिया गया है। लेकिन जमीन पर वास्तविकता यह है कि लोगों को सिर्फ एक महीने का राशन मिला।

यह मामला तब सामने आया जब कुछ सतर्क ग्रामीणों ने ऑनलाइन राशन वितरण डेटा की जानकारी निकाली और पाया कि उनके नाम से तीनों महीनों का राशन उठाया जा चुका है। जब उन्होंने खाद्य विभाग और कलेक्टर कार्यालय को आवेदन दिया, तो तब जाकर चावल लूट की यह परतें खुलनी शुरू हुईं।

खाद्य अधिकारी की चुप्पी या भागीदारी?

यह सवाल अब हर ग्रामीण की जुबान पर है –

  • खाद्य अधिकारी जशपुर ने क्या कभी इस दुकान का निरीक्षण किया?
  • अगर विभागीय रिकॉर्ड में तीन माह का वितरण दर्ज है, तो क्या यह सरकारी स्तर पर फर्जीवाड़े की पुष्टि नहीं करता?
  • अगर निरीक्षण नहीं किया गया, तो क्या यह घोर लापरवाही नहीं है?

ग्रामीणों का आरोप है कि खाद्य निरीक्षक की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा राशन घोटाला संभव ही नहीं है। कुछ ग्रामीणों ने यहां तक कहा है कि “राशन दुकानदार अकेले नहीं खा सकता, थाली में और भी चम्मच हैं।”

कलेक्टर साहब खामोश क्यों?

जब ग्रामीणों ने पूरे तथ्यों के साथ कलेक्टर जशपुर को ज्ञापन सौंपा, तब भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। न तो दुकान को सील किया गया, न ही विक्रेता के खिलाफ FIR दर्ज हुई, और न ही पीड़ितों के बयान दर्ज किए गए।

यह चुप्पी अब जनता को संदेह में डाल रही है —

  •  क्या जिला प्रशासन किसी राजनीतिक दबाव में है?
  • क्या अफसर खुद भी इस ‘घोटाले के खेल’ के मूक हिस्सेदार बन चुके हैं?

जनता की चेतावनी: अब आंदोलन होगा

अब गांव-गांव से आवाज़ उठ रही है –

“हम भूखे रह सकते हैं, लेकिन अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे!”

ग्रामीणों ने ऐलान किया है कि अगर एक सप्ताह के भीतर दोषियों को बर्खास्त कर जेल नहीं भेजा गया, तो वे:

  • ✅ जिला मुख्यालय पर धरना देंगे।
  • ✅ ग्रामसभाओं में प्रस्ताव पारित कर विरोध दर्ज कराएंगे।
  • ✅ राशन दुकान के सामने लोक अदालत लगाएंगे।
  • ✅ जरूरत पड़ी तो जनहित याचिका दायर करेंगे।

‘चावल उत्सव’ बन गया ‘चावल लूट उत्सव’?

राज्य सरकार की ओर से गरीबों के लिए ‘चावल उत्सव’ जैसी योजनाओं की घोषणा की गई थी। लेकिन जमीनी हकीकत में बिरीमडेगा जैसे गांवों में यह ‘चावल लूट उत्सव’ बनकर रह गई है।

जब शासन का स्पष्ट आदेश है कि जून से अगस्त तक का चावल एकमुश्त दिया जाए, तो खाद्य विभाग और कलेक्टर की जिम्मेदारी थी कि वे इस पर निगरानी रखें। लेकिन यहां तो अधिकारी चाय पीने और फाइल सरकाने में ही व्यस्त नजर आते हैं।

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अब सवाल प्रशासन से है – जवाब दीजिए!

  • कलेक्टर साहब, आप कब जागेंगे?
  • खाद्य अधिकारी, आपने अब तक कितनी दुकानों का औचक निरीक्षण किया?
  • क्या बिरीमडेगा की दुकान पर हुए घोटाले के बाद भी आप दोषियों को बचा रहे हैं?
  • या फिर आप भी इस खेल के ‘शेयरहोल्डर’ हैं?

अंतिम चेतावनी: अब सवाल रुकेगा नहीं, जवाब देना पड़ेगा

बिरीमडेगा की इस घटना ने प्रदेशभर के ग्रामीणों को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ एक गांव की बात नहीं है – यह हर उस गरीब की बात है जिसे सरकारी अनाज तक ईमानदारी से नहीं मिल रहा।

अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि राशन कहां गया —

  • सवाल यह है कि अफसर क्यों चुप हैं?
  • कलेक्टर किसके दबाव में हैं?
  • और सिस्टम कब सुधरेगा?                                                                                                                 

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