छुरा (गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) को लेकर लगातार बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं। छुरा जनपद पंचायत क्षेत्र में जो खुलासा हुआ है, उसने पूरे जिले की राजनीति और प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। मामला ग्राम पंचायत सोरिद का है, जहां कांग्रेस नेता और किराना व्यवसायी चित्रसेन डड़सेना ने खुद आगे आकर बताया कि उनकी पत्नी हिरा बाई डड़सेना, जो कि प्राथमिक विद्यालय सोरिद में प्रधान पाठक (हेडमास्टर) हैं, सरकारी सेवा में होने के बावजूद पीएम आवास योजना का लाभ उन्हें दिया गया और मकान भी बनकर तैयार हो गया।

पत्नी सरकारी सेवा में हैं, फिर भी नाम जुड़ गया – चित्रसेन का खुलासा
चित्रसेन डड़सेना ने मीडिया और ग्रामीणों के सामने साफ कहा –”साल 2024 में मेरे नाम पर पीएम आवास स्वीकृत हुआ। मैंने साफ तौर पर ग्राम पंचायत और जनपद पंचायत के कर्मचारियों को बताया था कि मेरी पत्नी सरकारी सेवा में हैं। इसके बावजूद सूची में नाम जुड़ गया और पूरा आवास बन गया। योजना की राशि भी मिल गई। बाद में जनपद पंचायत ने मेरे पत्नी का नाम को विलोपित कर माता-पिता जोगबाई और मिलाप डड़सेना का नाम दर्ज कर दिया। यह कैसे हुआ? आखिर किसके दबाव में अधिकारी-कर्मचारी ने यह खेल किया?
उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको पक्का मकान देने का सपना दिखाया था, लेकिन भ्रष्ट अफसरों, पंचायत प्रतिनिधियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से इस योजना का मजाक बनाकर रख दिया गया है।
शिकायतें जनदर्शन में पड़ी धूल फांक रही हैं
पीएम आवास घोटाले की शिकायतें ग्रामीणों ने कलेक्टर जनदर्शन में पिछले 10 महीने से अधिक समय से लगातार दर्ज कराई हैं। लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। शिकायत सीधे जनपद पंचायत सीईओ सतीश चन्द्रवंशी तक पहुंची, मगर उन्होंने भी गंभीरता दिखाने के बजाय मामले को पेंडिंग फाइलों में डाल दिया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि गरियाबंद कलेक्टर और जिला सीईओ इस पूरे खेल से पूरी तरह वाकिफ हैं। इसके बावजूद कार्रवाई न होना इस बात का सबूत है कि जिले के प्रशासनिक अमले पर प्रभारी सीईओ सतीश चन्द्रवंशी का दबदबा हावी है। चन्द्रवंशी मूल रूप से कवर्धा विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं और उनके रसूख की वजह से ही स्थानीय अधिकारी मौन साधे बैठे हैं।
सैय्या भय कोतवाल तो काहे का डर
जनता में यह कहावत अब खुलेआम गूंज रही है कि जब सैय्या ही कोतवाल बन बैठे तो डर किस बात का?। यही वजह है कि पीएम आवास जैसी महत्वाकांक्षी योजना में करोड़ों की गड़बड़ी उजागर होने के बाद भी न किसी अधिकारी को निलंबित किया गया और न ही किसी जनप्रतिनिधि की जवाबदेही तय की गई।
भरुवामुडा, हिराबतर, रसेला और रुवाड के मामले
यह खेल सिर्फ सोरिद पंचायत तक सीमित नहीं है।
- भरुवामुडा (आश्रित ग्राम हिराबतर) : यहां के बैशाखू राम पिता फिरतू राम ने पीएम आवास की राशि सीधे दान कर दी। सवाल उठता है – गरीबों के लिए आई राशि आखिर किन हालात में दान हो गई?
- रुवाड पंचायत : यहां तो हद हो गई। बिना मकान बनाए ही पीएम आवास की पूरी राशि निकाल ली गई। यह काम भी अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था।
- रसेला पंचायत: छुरा नगर निवासी बसंत सेन के नाम से ग्राम पंचायत रसेला में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना स्वीकृत हुई और 95 हजार की राशि जारी, पर मकान निर्माण नहीं। हितग्राही ने राशि ग्राम समिति को दान करने की बात कबूल की।
इन घोटालों का पर्दाफाश ग्रामीणों और जागरूक लोगों ने किया, लेकिन प्रशासन की ओर से आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
प्रभारी सीईओ का घिसा-पिटा जवाब
जनपद पंचायत के प्रभारी सीईओ सतीश चन्द्रवंशी से जब भी सवाल पूछा जाता है, उनका जवाब हर बार एक ही होता है – जांच करवाएंगे, कार्रवाई करेंगे।
लेकिन आठ महीने गुजर जाने के बाद भी जांच का कोई अता-पता नहीं है। न रिपोर्ट आई और न कार्रवाई हुई। नतीजा यह है कि ग्रामीणों का भरोसा प्रशासन से पूरी तरह उठता जा रहा है।
गरीबों का हक मार रहे रसूखदार
ग्रामीणों का कहना है कि यह पूरा खेल सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं बल्कि गरीबों के हक पर डाका है। जिन लोगों को आज भी टूटी झोपड़ियों और कच्चे घरों में रहना पड़ रहा है, वे आवास योजना की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन सूची में नाम जोड़ दिए जा रहे हैं उन लोगों के, जो सरकारी कर्मचारी हैं, या फिर वे लोग जिनके पास पहले से पक्का मकान है।
बड़ा सवाल – जिम्मेदार कौन?
1. जब जनपद पंचायत ने खुद मान लिया कि सरकारी सेवा में होने के बावजूद आवास दिया गया, तो जिम्मेदार कर्मचारियों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
2. बिना मकान बने राशि का आहरण कैसे हुआ? इसकी मंजूरी किसने दी?
3. कलेक्टर और जिला सीईओ तमाम शिकायतों के बावजूद खामोश क्यों हैं?
4. क्या प्रधानमंत्री की योजनाओं को पलीता लगाने वालों को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है?