जिला सहकारी समिति कर्मचारी संघ ने चेताया शासन को — मांगे नहीं मानी तो अनिश्चितकालीन आंदोलन से ठप पड़ जाएगी धान खरीदी
गरियाबंद/फिंगेश्वर/मैनपुर/देवभोग/छुरा (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी की तैयारियों के बीच अब एक नया संकट सिर उठाने लगा है। किसान तो पहले से समर्थन मूल्य, परिवहन में देरी और भुगतान में उलझे हैं, लेकिन अब सहकारी समितियों के कर्मचारी भी सरकार के खिलाफ मैदान में उतर आए हैं।
गरियाबंद जिले की जिला सहकारी समिति कर्मचारी संघ ने ऐलान किया है कि यदि चार सूत्रीय लंबित मांगों को पूरा नहीं किया गया, तो इस वर्ष धान खरीदी का बहिष्कार करते हुए अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा।
आंदोलन की रूपरेखा तय, शासन को भेजा अंतिम अल्टीमेटम
संघ के जिलाध्यक्ष प्रमोद कुमार यादव (बारूला) ने बताया कि यह आंदोलन छत्तीसगढ़ सहकारी समिति कर्मचारी महासंघ रायपुर एवं समर्थन मूल्य धान खरीदी ऑपरेटर संघ के संयुक्त आह्वान पर किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि प्रांतीय स्तर पर पहले ही शासन को 15 अक्टूबर को पत्र भेजा जा चुका है, जिसमें स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि अगर कैबिनेट की बैठक में चार सूत्रीय मांगों पर मुहर नहीं लगी, तो 12 नवंबर से पूरे प्रदेश में धान खरीदी बहिष्कार आंदोलन शुरू होगा।
आंदोलन की चार चरणों की रूपरेखा भी तय कर दी गई है —
- 24 अक्टूबर को जिला मुख्यालय गरियाबंद में विशाल ज्ञापन रैली हुई, जिसमें विभिन्न मंत्रीयों के नाम का ज्ञापन जिलाधीश को सौंपा गया।
- 28 अक्टूबर को रायपुर में एक दिवसीय प्रदेश स्तरीय “महाहुंकार ज्ञापन रैली” विभिन्न मंत्रियों को ज्ञापन सौंपकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
- 3 नवंबर से 11 नवंबर तक संभागीय स्तर पर अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन चलेगा।
- 12 नवंबर से यदि मांगे पूरी नहीं हुईं तो आंदोलन को राज्यव्यापी धान खरीदी बहिष्कार के रूप में रूपांतरित किया जाएगा।
ये हैं कर्मचारियों की चार सूत्रीय मांगे
- खाद्य विभाग से जुड़ी दो प्रमुख मांगें: — धान खरीदी वर्ष 2023-24 और 2024-25 में खरीदी के बाद जो “सुखत” (सूखने के कारण वजन में कमी) हुई है, उसकी पूरी राशि समितियों को भुगतान की जाए।
- धान खरीदी नीति 2024-25 की धारा 11.3.3 में आउटसोर्सिंग से ऑपरेटर नियुक्ति को रद्द करते हुए संविदा कर्मियों को नियमित किया जाए।
- सहकारिता विभाग से जुड़ी दो मांगें:— प्रदेश की 2058 सहकारी समितियों को प्रति वर्ष ₹3-3 लाख प्रबंधकीय अनुदान मिले ताकि कर्मचारियों को नियमित वेतनमान दिया जा सके।
- जिला सहकारी समिति कर्मचारी संघ रिपोर्ट के आधार पर 2018 के सेवा नियमों में संशोधन करते हुए भविष्य निधि, महंगाई भत्ता, ईएसआईसी सुविधा दी जाए तथा लंबे समय से सेवा दे रहे दैनिक व संविदा कर्मचारियों को भर्ती में प्राथमिकता और बोनस अंक दिए जाएं।
धान नहीं खरीदा जाएगा — कर्मचारियों की चेतावनी
संघ के सचिव अमृत लाल साहू (राजिम) और कोषाध्यक्ष दिनेश कुमार चंद्राकर (बासीन) ने कहा कि अगर शासन ने गंभीरता नहीं दिखाई, तो इस बार “धान खरीदी” की शुरुआत ही नहीं होगी।
हम समितियों में किसानों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन जब खुद कर्मचारियों को महीनों तक वेतन नहीं मिलता, तो यह अन्याय नहीं तो और क्या है?— अमृत लाल साहु साहू ने कहा।
क्या कहती है पृष्ठभूमि
दरअसल, छत्तीसगढ़ की लगभग 2058 सहकारी समितियाँ और 2739 धान उपार्जन केंद्र प्रतिवर्ष समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की रीढ़ हैं। इन समितियों के माध्यम से न केवल किसानों से धान खरीदा जाता है, बल्कि उसके परिवहन, भंडारण और भुगतान तक की प्रक्रिया यहीं से होती है।
लेकिन, समितियों का कहना है कि मार्कफेड द्वारा समय पर भुगतान नहीं होने, परिवहन में विलंब और “सुखत राशि” की कटौती के कारण कर्मचारियों का महीनों तक वेतन रुक जाता है।
हमसे काम तो सरकार करवाती है, लेकिन मेहनताना समय पर नहीं देती। यह कैसा न्याय है? — गरियाबंद के एक ब्लॉक अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा।
पिछले वर्ष भी उठा था सवाल, पर वादा अधूरा रह गया
पिछले साल नवंबर 2024 में जब इसी तरह की असंतोष की स्थिति बनी थी, तब मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कोर कमेटी बैठक हुई थी।
उस बैठक में मुख्य सचिव और खाद्य विभाग के अपर मुख्य सचिव ने वादा किया था कि एक माह के भीतर सुखत राशि देने का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा जाएगा।
वास्तव में पत्र तो जारी हुआ (दिनांक 12 दिसंबर 2024, क्रमांक 4-9/224/29-1) लेकिन आज तक एक रुपए का भुगतान नहीं हुआ।अब कर्मचारियों का कहना है — हम वादे नहीं, फैसले चाहते हैं।
किसान भी सहानुभूति में — हमारा नुकसान भी इन्हीं की देरी से होता है
छुरा ब्लॉक के किसान कहते हैं —कंप्यूटर ऑपरेटर या समिति कर्मचारी अगर हड़ताल पर चले गए, तो किसान भी मुश्किल में पड़ जाएगा। लेकिन सच यह भी है कि उनकी हालत बहुत खराब है। सरकार को इनकी मांगें पूरी करनी चाहिए।
प्रशासनिक हलचल तेज
जिला प्रशासन को आंदोलन की सूचना भेज दी गई है। प्रतिलिपि खाद्य अधिकारी, सहायक पंजीयक सहकारी संस्थाएं, विपणन अधिकारी, और केंद्रीय बैंक शाखाओं को भी दी गई है। संघ ने सभी प्राधिकृत समितियों, शाखा प्रबंधकों और कर्मचारियों को आंदोलन में भागीदारी का निर्देश दिया है।
बिन सहकार, नहीं उदार” का नारा फिर से गूंजा
संघ के बैनर पर वही पुराना नारा लिखा था — बिन सहकार नहीं उदार जो कभी सहकारिता आंदोलन की आत्मा माना जाता था। गरियाबंद, फिंगेश्वर, छुरा और देवभोग से लेकर राजिम तक समितियों के कर्मचारी अब उसी नारे को लेकर सड़क पर उतरने की तैयारी में हैं।
अब क्या करेगा शासन?
राज्य सरकार के सामने यह संकट दोहरा है — एक तरफ नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ होने वाली है, दूसरी ओर समितियों के कर्मचारी अपने हक के लिए तालाबंदी की तैयारी में हैं।
अगर यह आंदोलन लंबा खिंचता है, तो इसका असर धान खरीदी व्यवस्था, किसानों के भुगतान, और मार्कफेड के परिवहन अनुबंधों तक पड़ सकता है।
उम्मीद की किरण
जिलाध्यक्ष प्रमोद यादव ने कहा — हमारा उद्देश्य टकराव नहीं है। हम बस चाहते हैं कि शासन हमारे मुद्दों को कैबिनेट में रखे और एक ठोस फैसला ले। यदि ऐसा होता है तो आंदोलन टल सकता है, अन्यथा अबकी बार गरियाबंद से आवाज उठेगी और पूरे प्रदेश में गूंजेगी।
