CG:वनौषधियों से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता केशोडार: पीव्हीटीजी वनधन केंद्र बना ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का मजबूत आधार
प्रभारी सचिव हिमशिखर गुप्ता का निरीक्षण, 90 लाख से अधिक के उत्पाद का विक्रय, आयुष विभाग से मिला महाविषगर्भ तेल का बड़ा ऑर्डर

गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। वनौषधियों से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता केशोडार छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले गरियाबंद में एक नई कहानी आकार ले रही है—एक ऐसी कहानी जिसमें जंगल की छांव, परंपरागत ज्ञान और आधुनिक पहल के मेल से आत्मनिर्भरता की राह मजबूत हो रही है। जिले के प्रभारी सचिव श्री हिमशिखर गुप्ता ने आज अपने एक दिवसीय प्रवास के दौरान वनमण्डल अंतर्गत ग्राम केशोडार स्थित पीव्हीटीजी वनधन विकास केंद्र का निरीक्षण कर इस परिवर्तनशील यात्रा को करीब से देखा और सराहा।
निरीक्षण के दौरान प्रभारी सचिव ने यहां स्थापित वन औषधि प्रसंस्करण केंद्र का अवलोकन किया, जिसमें महिला स्वसहायता समूहों द्वारा बनायी जा रही हर्बल औषधियों की गुणवत्ता, निर्माण प्रक्रिया और विपणन रणनीति की जानकारी ली। उन्होंने प्रसंस्करण यूनिट में कार्यरत महिलाओं से संवाद करते हुए उनके अनुभवों और चुनौतियों को समझने की कोशिश की। वनमंडलाधिकारी लक्ष्मण सिंह ने जानकारी दी कि इस केंद्र में भूतेश्वरनाथ हर्बल औषधालय स्वसहायता समूह के 12 सक्रिय सदस्यों सहित लगभग 40-50 ग्रामीण महिलाएं कार्यरत हैं, जिन्हें वर्ष भर सतत रोजगार मिल रहा है।
वन से जुड़ी महिलाओं की हिम्मत और हुनर की उड़ान
ग्रामीण और आदिवासी समुदायों में महिलाओं का जीवन अक्सर सीमित संसाधनों और सामाजिक चुनौतियों से घिरा होता है, लेकिन केशोडार की ये महिलाएं इन सीमाओं को लांघकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं। वनधन केंद्र में लगभग 21 प्रकार की औषधियों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें सतावरी चूर्ण, त्रिफला, अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी अर्क, और महाविषगर्भ तेल जैसे आयुर्वेदिक उत्पाद शामिल हैं।
ग्रामीण महिलाओं ने प्रभारी सचिव को बताया कि केंद्र की स्थापना से पहले उन्हें मजदूरी के लिए या तो दूसरे गाँव या शहर जाना पड़ता था। लेकिन अब उनके ही गाँव में रोजगार उपलब्ध है, जिससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ी है, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई है।
90 लाख से अधिक का व्यवसाय, अब आयुष विभाग से मिला करोड़ों का ऑर्डर
वर्ष 2024-25 में इस वनधन विकास केंद्र के माध्यम से लगभग 90 लाख 60 हजार रुपये मूल्य के हर्बल उत्पादों का विक्रय किया गया। इसमें आयुष विभाग द्वारा आर्डर किया गया 56 लाख रुपये का सतावरी चूर्ण प्रमुख उत्पाद रहा। इतना ही नहीं, वर्तमान में समूह को 56 लाख 17 हजार रुपये की लागत का महाविषगर्भ तेल निर्माण का नया ऑर्डर भी मिला है, जिसे तैयार कर आपूर्ति की जा रही है।
यह उपलब्धि दर्शाती है कि कैसे ग्रामीण महिला समूह केवल वन संग्रहण तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उत्पाद मूल्य संवर्धन, पैकेजिंग और विपणन तक की श्रृंखला को सफलतापूर्वक संभाल रहे हैं।
प्रशासनिक अधिकारियों की सराहना, आगे बढ़ने का मिला संदेश
निरीक्षण के पश्चात प्रभारी सचिव हिमशिखर गुप्ता ने महिलाओं की इस मेहनत और नवाचार की सराहना करते हुए कहा कि यह केंद्र आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में एक मजबूत कदम है। उन्होंने महिला समूहों को प्रोत्साहित किया कि वे उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को लगातार बेहतर करें तथा राज्य और देश के बाजारों में अपनी पहचान बनाएँ।
उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि प्रशासन की ओर से हर संभव सहयोग प्रदान किया जाएगा, जिससे इस प्रकार के केंद्रों को तकनीकी सहायता, वित्तीय संसाधन और विपणन सुविधा निरंतर मिलती रहे।
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इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जी.आर. मरकाम, अपर कलेक्टर नवीन भगत, उपवनमण्डलाधिकारी मनोज चंद्राकर सहित कई विभागीय अधिकारी भी उपस्थित थे। सभी ने केंद्र की गतिविधियों का अवलोकन किया और महिला समूहों के कार्यों की सराहना की।
वन, महिला और विकास: एक नई दिशा की ओर
केशोडार का पीव्हीटीजी वनधन केंद्र आज केवल एक प्रसंस्करण इकाई नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन चुका है। यह उस विचार को साकार कर रहा है जिसमें जंगल केवल जीवनयापन का माध्यम नहीं, बल्कि समृद्धि और सम्मान का आधार बनता है।
यह केंद्र बताता है कि यदि परंपरागत ज्ञान को सही मार्गदर्शन और संस्थागत समर्थन मिले, तो आदिवासी अंचल की महिलाएं भी औद्योगिक क्षमता और व्यावसायिक समझ के साथ वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकती हैं। गरियाबंद जिले के लिए यह निस्संदेह एक “वन से विकास” की मॉडल कहानी बनकर उभर रही है।