CG: अनाथ कमार बच्चों को मिली नई ज़िंदगी — कलेक्टर बी.एस. उइके की संवेदनशील पहल बनी उम्मीद की मिसाल
छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। अनाथ कमार बच्चों को मिली नई ज़िंदगी: गरियाबंद जिले में मानवता और प्रशासनिक संवेदनशीलता का एक ऐसा उदाहरण सामने आया है, जिसने न केवल एक आदिवासी समुदाय के अनाथ बच्चों को जीवन का नया उद्देश्य दिया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि शासन यदि चाहे तो सामाजिक बदलाव की लहर गाँव के अंतिम छोर तक पहुँच सकती है।

विकासखंड छुरा के ग्राम पंचायत मुड़ागांव में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति — कमार समुदाय के पाँच मासूम बच्चे हाल ही में अपने माता-पिता को खो चुके थे। एक झटके में इन नन्हीं जिंदगियों से उनका संबल, सुरक्षा और पालन-पोषण का आधार छिन गया। गाँव के एक कोने में रहने वाले इन बच्चों की हालत बदतर होती जा रही थी—न कोई देखभाल करने वाला, न भोजन की उचित व्यवस्था, और न शिक्षा की कोई उम्मीद।
लेकिन कहते हैं, जब प्रशासन संवेदनशील हो, तो चमत्कार होते देर नहीं लगती। जब स्थानीय समाचार पत्र में इन अनाथ बच्चों की त्रासद स्थिति को उजागर किया गया, तो जिले के कलेक्टर बी.एस. उइके ने इसे महज़ एक खबर नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी की तरह देखा। उन्होंने त्वरित संज्ञान लेते हुए संबंधित विभागों को बच्चों की सहायता हेतु तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
72 घंटों के भीतर बदली तस्वीर
कलेक्टर के आदेश के बाद आदिवासी विकास विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त टीम ने बच्चों के घर पहुँचकर उनकी स्थिति का अवलोकन किया। विभाग ने बच्चों की तत्काल आवश्यकता को समझते हुए उन्हें कमार आवासीय विद्यालय, गरियाबंद में स्थानांतरित किया, जहाँ उनके लिए सुरक्षित आवास, पौष्टिक भोजन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पूरी व्यवस्था है।
अब मिलेगी शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान
इन बच्चों के लिए केवल भोजन और छत की व्यवस्था ही नहीं की गई है, बल्कि महिला एवं बाल विकास विभाग की स्पॉन्सरशिप योजना के अंतर्गत प्रति छात्र प्रति माह ₹4000 की आर्थिक सहायता भी स्वीकृत की गई है। यह सहायता न केवल बच्चों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होगी, बल्कि उनके आत्मबल और आत्मनिर्भरता की भावना को भी सुदृढ़ करेगी।
कलेक्टर उइके की मानवीय पहल
बी.एस. उइके पहले भी जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में सक्रिय और संवेदनशील नेतृत्व के लिए जाने जाते रहे हैं। लेकिन इस बार उनकी पहल ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रशासनिक कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के पास यदि संवेदनशील हृदय हो, तो वह सरकारी योजनाओं को केवल कागज पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर भी साकार कर सकता है।
कलेक्टर ने कहा, “इन बच्चों की आँखों में डर और असहायता का भाव था, लेकिन आज उनमें आत्मविश्वास की झलक दिखती है। हमारी जिम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा शिक्षा और सुरक्षा के अधिकार से वंचित न रहे, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या समुदाय से हो।”
समाज के लिए एक संदेश
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएँ तब ही प्रभावी होती हैं जब ज़िला स्तर पर बैठे अधिकारी उन्हें जनहित के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें। विशेष पिछड़ी जनजाति जैसे कमार समुदाय को लेकर अभी भी समाज में बहुत सी भ्रांतियाँ और उपेक्षाएँ हैं। लेकिन यह पहल बताती है कि यदि ईमानदारी से कोशिश की जाए तो इस वर्ग को भी मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों की प्रतिक्रिया
मुड़ागांव के ग्रामीणों ने इस पहल का स्वागत करते हुए कलेक्टर और प्रशासनिक अमले के प्रति आभार जताया। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अधिकारी ने बच्चों की तकलीफ को अपनी प्राथमिकता माना।
एक मिसाल, जो बनेगी प्रेरणा
गरियाबंद जिले से आई यह खबर केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह उस भारत की तस्वीर है, जहाँ शासन, संवेदना और संकल्प एक साथ चलते हैं। यह पहल अन्य जिलों और प्रदेशों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बनेगी, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहाँ विशेष पिछड़ी जनजातियों को आज भी हाशिये पर रखा जाता है।
इन पाँच बच्चों के लिए यह एक नई शुरुआत है — भय और भूख से मुक्ति की, शिक्षा और स्वाभिमान की ओर बढ़ते कदमों की। और इस बदलाव के सूत्रधार हैं — गरियाबंद के कलेक्टर बी.एस. उइके।