CG: जेल की सलाखों के पीछे मां की ममता का करुण सत्य : गरियाबंद जिला जेल निरीक्षण में सामने आई दो मासूमों की दयनीय कहानी
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। जेल की सलाखों के पीछे मां की ममता का करुण सत्य : सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदेशों के अनुरूप देशभर की जेलों में निरूद्ध बंदियों की उम्र का सत्यापन कराया जा रहा है, ताकि किसी भी नाबालिग को वयस्क जेल में रहने की त्रुटि न हो। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला जेल में हुए हालिया निरीक्षण में ऐसी ही एक मार्मिक और आंखें खोल देने वाली कहानी सामने आई है, जिसने जेल प्रशासन, समाजसेवी संस्थाओं और महिला एवं बाल विकास विभाग को भी झकझोर दिया।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन एवं जिला बाल संरक्षण अधिकारी अनिल द्विवेदी के समन्वय में जेल निरीक्षण समिति का गठन कर निरीक्षण किया गया। समिति में श्रीमती पूर्णिमा तिवारी (सदस्य, किशोर न्याय बोर्ड), श्रीमती ताकेश्वरी साहू (सदस्य, बाल कल्याण समिति), शरदचंद निषाद (विधिक सह परिविक्षा अधिकारी) और अधिवक्ता हेमराज दाऊ शामिल थे। निरीक्षण के दौरान जिला जेल के सहायक जेल अधीक्षक समेत अन्य कर्मचारी उपस्थित रहे।
समिति ने जिला जेल की पांच बैरकों का निरीक्षण कर प्रत्येक बंदी से उनकी वास्तविक उम्र, स्वास्थ्य, पारिवारिक स्थिति और वर्तमान हालात की जानकारी ली। निरीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कहीं कोई नाबालिग व्यक्ति गलती से वयस्क कैदियों के साथ जेल में निरूद्ध तो नहीं है। साथ ही बंदियों के परिवार, विशेषकर बच्चों की सुरक्षा, देखभाल और शिक्षा की स्थिति भी जांचना था।
“मैडम, मेरे दो छोटे बच्चे हैं… कोई देखने वाला नहीं”
इसी दौरान जब समिति की सदस्य श्रीमती पूर्णिमा तिवारी और श्रीमती ताकेश्वरी साहू महिला बैरक में पहुंचीं, तो एक महिला बंदी फफक पड़ी। उसकी आंखों से बहते आंसुओं के बीच उसके शब्द थे – “मैडम, मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, घर में उन्हें संभालने वाला कोई नहीं है। रात में नींद नहीं आती, सोचती हूं क्या खा रहे होंगे, किसके पास सो रहे होंगे…”
यह सुनकर समिति के सदस्य भी भावुक हो गए। बंदी ने बताया कि उसका पति वर्षों पहले छोड़कर चला गया था। हत्या के एक पुराने मामले में वह पिछले कई महीनों से जेल में है। उसके दोनों बच्चे, जिनकी उम्र लगभग 5 और 8 वर्ष है, गांव के पड़ोसी के भरोसे किसी तरह दिन काट रहे हैं। लेकिन अब वह भी उनका ध्यान नहीं रख पा रहा। मां के जेल में रहने और पिता के न होने से दोनों मासूम बेसहारा हो चुके हैं।
समिति ने दिए तत्काल संरक्षण के निर्देश
निरीक्षण के बाद समिति ने तय किया कि दोनों बच्चों को तत्काल चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट (CCI) या योग्य संरक्षण गृह में सुरक्षित रखा जाएगा, जहां उन्हें भोजन, शिक्षा और देखभाल मिलेगी। जिला बाल संरक्षण अधिकारी अनिल द्विवेदी ने कहा कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अगले 48 घंटों में आवश्यक कार्यवाही की जाएगी, ताकि बच्चों को सुरक्षित वातावरण मिल सके।
श्रीमती ताकेश्वरी साहू ने कहा, – “यह बहुत ही मार्मिक स्थिति है। जेल में निरूद्ध मां की मानसिक अवस्था और बाहर बच्चों की दुर्दशा, दोनों ही व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं। ऐसे मामलों में बच्चों के संरक्षण की तत्काल व्यवस्था करना हमारा नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य है।”
हर तीन महीने में होता है निरीक्षण
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत प्रत्येक तीन माह में जिला जेलों का निरीक्षण करना अनिवार्य है, जिसमें अधिवक्ताओं, समाजसेवियों, किशोर न्याय बोर्ड एवं बाल कल्याण समिति के सदस्य शामिल रहते हैं। निरीक्षण का उद्देश्य न केवल नाबालिगों की पहचान करना है बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि जेलों में रह रहे बंदियों के छोटे-छोटे बच्चों का भविष्य अंधेरे में न चला जाए।
“सिर्फ अपराध नहीं, परिवार भी भुगतता है सजा”
इस निरीक्षण ने फिर साबित कर दिया कि जेल की सलाखों के पीछे केवल आरोपी या दोषी नहीं होता, उसका परिवार, उसके मासूम बच्चे भी जीवन की सजा भुगतते हैं। जेल सुधार और बंदियों के बच्चों के संरक्षण की यह बहस आज भी अधूरी है। गरियाबंद जिला जेल में हुए इस खुलासे के बाद एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या हमारे समाज में गरीब, बेसहारा और महिला बंदियों के बच्चों के लिए पर्याप्त व्यवस्था है?
समिति ने आश्वासन दिया है कि दोनों बच्चों के भरण-पोषण, शिक्षा, चिकित्सा एवं देखभाल के संबंध में जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट जिला कलेक्टर एवं महिला एवं बाल विकास विभाग को प्रस्तुत की जाएगी, ताकि किसी भी बंदी के बच्चों को भविष्य में बेसहारा न होना पड़े।