CG: कमार जनजाति से रिश्वतखोरी की खुली लूट! प्रधानमंत्री आवास योजना की पहली किस्त में काटे गए 6-6 हजार, सरपंच को PhonePe से चढ़ावा
छुरा (गंगा प्रकाश)।कमार जनजाति से रिश्वतखोरी की खुली लूट!गरियाबंद ज़िले के छुरा विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत रसेला के आश्रित आदिवासी ग्राम कारीमाटी में एक ऐसा मामला सामने आया है, जो प्रधानमंत्री आवास योजना की साख पर सवाल खड़ा करता है। कुमार जनजाति के गरीब हितग्राहियों से चॉइस सेंटर संचालक और पूर्व सरपंच की मिलीभगत से ₹6,000 प्रति आवास की रिश्वत ली गई। मामला सामने आते ही प्रशासन में हड़कंप मच गया है, पर अब तक न कोई कार्यवाही हुई, न जवाबदेही तय हुई।

योजना का मकसद गरीबों को छत, पर बन गई भ्रष्टाचार की दलाली
प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (PMAY-G) का उद्देश्य है कि देश के हर गरीब, खासकर अनुसूचित जाति, जनजाति और विशेष पिछड़ी जनजातियों को पक्का मकान मिल सके। लेकिन छुरा ब्लॉक में इस योजना को कुछ पंचायत कर्मियों, जनप्रतिनिधियों और दलालों ने कमीशनखोरी का ज़रिया बना दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, आवास मित्र, रोजगार सहायक, पंचायत सचिव और सरपंच की मिलीभगत से यह घूसखोरी सालभर से चल रही थी। कई पंचायतों में ₹5,000 से ₹10,000 तक प्रति आवास की वसूली की जाती रही है।
करीमाटी का खुलासा: चॉइस सेंटर संचालक ने घर जाकर काटे पैसे
करीमाटी गांव की पांच आदिवासी महिलाएं — ईश्वरी बाई, सुमित्रा बाई, शांति बाई, सोनिया बाई और कुंती बाई, जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ₹40,000 की पहली किश्त मिली थी, उनके घर खुद रसेला के चॉइस सेंटर संचालक महेश्वर निषाद पहुंचे।
ग्रामीणों ने बताया कि महेश्वर निषाद ने प्रत्येक लाभार्थी को ₹34,000 ही दिए और ₹6,000 की राशि काटकर खुद रख ली। उन्होंने यह भी बताया कि महेश्वर ने बाकायदा ₹30,000 की राशि पूर्व सरपंच के फोन पे खाते में ट्रांसफर की। यह ट्रांजैक्शन 12 जुलाई 2024 को हुआ था।
सालभर चुप्पी, फिर मीडिया दबाव में लौटाए पैसे
करीब 10 महीने तक यह मामला दबा रहा। पर जब इसकी जानकारी मीडिया तक पहुंची, और रिपोर्टिंग टीम ने गांव जाकर पड़ताल की, तब जाकर हकीकत सामने आई। आदिवासी महिलाओं ने कैमरे के सामने स्वीकार किया कि उनसे पैसे लिए गए थे। लेकिन मीडिया दबाव में कुछ दिन पहले ही महेश्वर निषाद ने अपनी जेब से पैसे लौटाए। यह काम इसलिए किया गया ताकि मामला ‘बिगड़े नहीं’ और ‘कार्रवाई न हो’।
बैंक प्रबंधक ने पल्ला झाड़ा, सरपंच अब भी गायब
इस मामले पर जब ग्रामीण बैंक शाखा रसेला के शाखा प्रबंधक प्रदीप से प्रतिक्रिया ली गई, तो उन्होंने कहा:
“मैं अभी स्टेटमेंट देने की स्थिति में नहीं हूं। महेश्वर निषाद से जो लेन-देन हुआ, उसकी जानकारी मुझे आज ही मिली है। मैंने यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी को भेज दी है, और सोमवार को शाखा जाकर ही कुछ कह पाऊंगा।”
यानी बैंक के माध्यम से पैसा ट्रांसफर होने के बावजूद प्रबंधक को कोई पूर्व जानकारी नहीं थी — यह दर्शाता है कि बैंकिंग निगरानी प्रणाली भी ढीली है।
वहीं, पूर्व सरपंच, जिनके खाते में पैसे भेजे गए थे, उनसे संपर्क की कई कोशिशें की गईं, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
महेश्वर निषाद की सफाई, लेकिन स्वीकारोक्ति भी
चॉइस सेंटर संचालक महेश्वर निषाद ने अपने बचाव में कहा:
“मेरे द्वारा जो राशि काटी गई थी, उसे मैंने हितग्राहियों को लौटा दिया है। सरपंच को PhonePe से पैसे ट्रांसफर किए गए थे, लेकिन मैंने खुद कोई पैसा नहीं रखा। मैं डरने वाला नहीं हूं। यदि यह बात मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री तक जाती है, तो मैं सच्चाई बताने तैयार हूं।”
महेश्वर का यह बयान इस घूसखोरी की पुष्टि करता है, और यह भी साबित करता है कि कैसे योजनाओं को ग्रामीण स्तर पर बिचौलियों द्वारा हाइजैक किया जा रहा है।
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प्रशासनिक प्रतिक्रिया — जांच के बाद कार्रवाई का वादा
जनपद पंचायत छुरा के सीईओ सतीश चंद्रवंशी ने कहा:
“मुझे इस मामले की जानकारी मिल गई है। मैं जांच करवा रहा हूं, हितग्राहियों से सीधे पूछताछ की जाएगी। उसके बाद ही कार्रवाई की जाएगी।”
अब सवाल यह है!
- क्या आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा केवल मंचों की बात बनकर रह गई है?
- क्या भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई केवल जांच तक ही सीमित रहेगी?
- अगर पैसा वापस करना ही समाधान है, तो क्या भविष्य में हर रिश्वतखोर को छूट मिल जाएगी?
प्रधानमंत्री आवास योजना, जो कि गरीबों के लिए सम्मान और सुरक्षा की नींव है, अब छुरा ब्लॉक में भ्रष्टाचार का शिकार बन चुकी है। जब तक सख्त कार्यवाही, एफआईआर और सस्पेंशन नहीं होता, तब तक ये घोटाले रुकने वाले नहीं हैं। जरूरत है कि राज्य सरकार, जिला प्रशासन और खुद प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले को संज्ञान में लें — वरना ‘जन-मन’ के सपने ‘घूस-धन’ में दबते रहेंगे।