छुरा (गंगा प्रकाश)। पीएम आवास योजना (pmay) में गड़बड़ी और फर्जीवाड़े का एक सनसनीखेज मामला जनपद पंचायत छुरा के ग्राम पंचायत भरुवामुड़ा के आश्रित ग्राम हिराबतर से सामने आया है। यहां के बिसाहू राम गोंड नामक गरीब हितग्राही के नाम पर आवास की रकम पहले ही वर्ष 2017 में स्वीकृत होकर तीन किश्तों में 1 लाख 30 हजार रुपए भुगतान दिखाया जा चुका है और वेबसाइट पर आवास “पूर्ण” दर्ज है। लेकिन हकीकत यह है कि आवास अधूरा है और बिसाहू राम आज भी गरीबी में जी रहा है।
जब यह मामला उजागर हुआ और “पीएम आवास चोरी” की खबर सुर्खियों में आई, तो आनन-फानन में एक अज्ञात व्यक्ति ने बिसाहू राम के बैंक खाते में 40 हजार रुपए जमा करा दिए। इतना ही नहीं, जनपद पंचायत के अधिकारी-कर्मचारी मौके पर पहुंचकर उससे कागजों में अंगूठा लगवाकर यह लिखवा लाए कि “आवास वर्ष 2025-26 में स्वीकृत हुआ है और अभी सिर्फ पहली किश्त मिली है।” सवाल यह उठता है कि जब 2017 में ही आवास स्वीकृत हो गया और वेबसाइट पर पूर्ण दिख रहा है, तो 2025-26 में उसी व्यक्ति को दोबारा आवास कैसे स्वीकृत हो सकता है?
गरीब का हक़ बना भ्रष्टाचार का शिकार
बिसाहू राम गोंड, जो कि निरक्षर और बेहद गरीब है, उसका घर 2017 में योजना के तहत स्वीकृत किया गया। उस समय कुल 1.30 लाख की राशि तीन किश्तों में भुगतान बताई गई। लेकिन घर अधूरा ही रह गया और वेबसाइट पर इसे “पूर्ण” दर्ज कर भ्रष्टाचार का खेल खेला गया।
गांव के लोगों का कहना है कि बिसाहू राम जैसे कई हितग्राही हैं जिन्हें योजना का असली लाभ नहीं मिल सका। कागज़ों में सबकुछ पूरा दिखा दिया गया और अधिकारी-कर्मचारी योजना की रकम का गबन करते रहे।

अपराध छुपाने का नया तरीका – खाते में 40 हजार जमा
जैसे ही खबरें आईं कि बिसाहू राम का आवास चोरी हो गया है, जनपद पंचायत छुरा के प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी हरकत में आ गए। बताया जाता है कि उन्होंने तकनीकी सहायक पवन ध्रुव, पंचायत सचिव सुबल सिंह और आवास मित्र को गांव भेजा। वहां निरक्षर बिसाहू राम से बयान लिखवाकर अंगूठा लगवाया गया। बयान में यह दर्शाया गया कि “आवास वर्ष 2025-26 में स्वीकृत है, मुझे 40 हजार की पहली किश्त मिली है, निर्माण कार्य 16 सितंबर से प्रारंभ करूंगा।”
यानी पूरे फर्जीवाड़े को “नई मंजूरी” का रूप देकर ढकने की कोशिश की गई। जबकि पीएम आवास वेबसाइट में वर्ष 2025-26 में हिराबतर गांव के 42 हितग्राहियों की सूची में बिसाहू राम का नाम ही नहीं है।
बड़ा सवाल: 40 हजार किसने डाला?
- सबसे अहम सवाल यही है कि बिसाहू राम के खाते में अचानक 40 हजार किसने और क्यों डाले?
- क्या यह रकम जनपद पंचायत आवास शाखा से भेजी गई?
- या फिर किसी अधिकारी/कर्मचारी ने अपना अपराध छुपाने के लिए निजी तौर पर राशि जमा कराई?
आवास मित्र राधे सेन और पंचायत सचिव सुबल सिंह का कहना है कि उन्हें नहीं पता पैसे किसने डाले। उन्होंने सिर्फ सीईओ के कहने पर बयान लिखकर बिसाहू राम से अंगूठा लगवाया और दस्तावेज सीईओ को सौंप दिया।
वेबसाइट से खुली पोल
पीएम आवास योजना की आधिकारिक वेबसाइट सब कुछ साफ कर रही है।
- वर्ष 2017 में बिसाहू राम गोंड का आवास स्वीकृत और भुगतान पूरा दर्ज है।
- वर्ष 2025-26 में हिराबतर गांव के 42 नाम सूचीबद्ध हैं लेकिन इनमें बिसाहू राम गोंड का नाम शामिल नहीं है।
यानी जनपद पंचायत सीईओ जिस “नई स्वीकृति” का हवाला देकर बचाव कर रहे हैं, वह फर्जी है।
प्रशासनिक जिम्मेदारी पर सवाल
जनपद पंचायत छुरा के प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी की भूमिका पर सबसे बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।
- क्या उन्होंने कलेक्टर की टीएल बैठक में बचने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार करवाए?
- क्या उनके संरक्षण में यह पूरा खेल चल रहा है?
- क्या यह सिर्फ बिसाहू राम का मामला है या ऐसे कई और “गायब आवास” भी छुपे हुए हैं?
सीईओ से जब मीडिया ने इस पर सवाल किया तो उन्होंने जवाब टालते हुए कहा कि “जानकारी बाद में देंगे।”
गांव वालों की आवाज़
हिराबतर गांव के ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। गांव के कई हितग्राहियों के आवास अधूरे हैं लेकिन वेबसाइट में पूरा दिखा दिया गया है। एक ग्रामीण ने बताया—
“सरकारी कागज में तो हम सब पक्के घर वाले हो गए हैं, लेकिन असलियत में आज भी टपरे और झोपड़ी में रह रहे हैं।”
पीएम आवास योजना का असली मकसद और हकीकत
प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों और बेघरों को छत देने के उद्देश्य से शुरू हुई थी। सरकार का दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों को पक्का घर दिया गया। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। योजनाओं की राशि अधिकारियों-कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में फंस जाती है।
बिसाहू राम का मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे गरीबों का हक़ छीनकर फर्जीवाड़ा कर योजना की छवि को धूमिल किया जा रहा है।