स्वामी आत्मानंद स्कूल में गुणवत्ताहीन शिक्षा, पालकों की उम्मीदों पर फिरा पानी — क्या टूटेगा भरोसा?
छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छुरा नगर स्थित स्वामी आत्मानंद शासकीय उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल कभी क्षेत्र के मध्यमवर्गीय और ग्रामीण पालकों की सबसे बड़ी उम्मीद हुआ करता था। सरकारी व्यवस्था के तहत अंग्रेज़ी माध्यम की मुफ्त शिक्षा, स्मार्ट क्लास, प्रशिक्षित शिक्षक, और आधुनिक संसाधनों के वादे ने लोगों को इस स्कूल की ओर खींचा। लेकिन अब यही स्कूल गुणवत्ताहीन शिक्षा का पर्याय बनता जा रहा है। पालकों की बढ़ती चिंता और छात्रों की गिरती शैक्षणिक गुणवत्ता ने इस प्रतिष्ठित स्कूल की साख को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।

सिफारिश से दाखिला, लेकिन शिक्षा में गिरावट
हर साल स्वामी आत्मानंद स्कूल में प्रवेश के लिए पालक सिफारिशों की लंबी कतार में खड़े मिलते हैं। कुछ नेताओं से जुड़ते हैं तो कुछ अधिकारियों से आरजू-मिन्नत करते हैं। जब बच्चे का नाम प्रवेश सूची में आता है तो मानो किसी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया हो!
लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकती। जब क्लासरूम की हकीकत सामने आती है तो पालकों को समझ आता है कि वे जिस सपने की खेती कर रहे थे, उसकी जड़ें तो खोखली हैं।
कक्षा में मोबाइल, बच्चों की किताबों में ‘राइट’ की लापरवाही
छुरा के एक पालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि— “हमारा बेटा दूसरी कक्षा में पढ़ता है। अंग्रेजी के 26 अक्षर वो सही से पहचान नहीं पाता, लेकिन उसकी कॉपी में मास्टरजी ने ‘Very Good’ लिखा है। जब पूछा कि बच्चा इतना कमजोर कैसे है, तो शिक्षक बोले — अभी सीख रहा है…।”
वहीं, एक और पालक का कहना है कि हिन्दी विषय के शिक्षक ने ‘क ख ग’ तक ठीक से न लिख पाने वाले छात्र की भी कॉपी में Right का निशान लगाया। यह न केवल अकादमिक धोखा है, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ क्रूर मज़ाक भी।
शिक्षक या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर?
शिकायतें लगातार मिल रही हैं कि कई शिक्षक क्लास के दौरान मोबाइल में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर व्यस्त रहते हैं। ऐसे में बच्चों को समय कौन देगा? नौकरी को केवल वेतन का साधन मानने वाले शिक्षक क्या वाकई भविष्य निर्माता हो सकते हैं?
गुणवत्ताहीन शिक्षा: एक व्यापक संकट
यह केवल छुरा के एक स्कूल की समस्या नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के चरमराते ढांचे का हिस्सा है। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि—
गुणवत्ताहीन शिक्षा के प्रमुख कारण:
- प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी: कई शिक्षक विषय में एमए हैं, पर उन्हें बच्चों को समझाने की स्किल नहीं।
- सीखने का प्रतिकूल वातावरण: भीड़भाड़ वाले क्लासरूम, संसाधनों का अभाव।
- पुरानी और रटने पर आधारित पढ़ाई: जिससे रचनात्मकता का विकास रुक जाता है।
- मूल्यांकन की कमजोर प्रणाली: जिससे कमजोर बच्चों की पहचान ही नहीं हो पाती।
गुणवत्ताहीन शिक्षा के गंभीर परिणाम:
- छात्रों की सीखने में रुचि घटती है, वे केवल परीक्षा पास करने पर ध्यान देते हैं।
- भविष्य में नौकरी और उच्च शिक्षा के मौके कम हो जाते हैं।
- लंबे समय में यह बाल श्रम, बेरोजगारी और आर्थिक पिछड़ेपन को जन्म देता है।
पालकों की मांग: शिक्षा नहीं, दिखावा मिल रहा है
छुरा के अनेक पालकों ने मांग की है कि—
- स्कूल में समय-समय पर शिक्षा गुणवत्ता का आकलन किया जाए।
- शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखी जाए।
- सोशल मीडिया में लिप्त शिक्षकों पर कार्यवाही हो।
- कमजोर छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं चलाई जाएं।
- स्कूल में पालक-शिक्षक संवाद बैठक अनिवार्य हो।
सरकार की जवाबदेही भी जरूरी
सरकार ने स्वामी आत्मानंद स्कूल योजना को एक ब्रांड की तरह प्रचारित किया है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दी गई, तो यह योजना भी बाकी योजनाओं की तरह सिर्फ कागज़ों में सफल रह जाएगी।
क्या करें अभिभावक?
पालकों को चाहिए कि वे—
- केवल स्कूल के नाम पर भरोसा न करें, बल्कि सीखने की प्रक्रिया पर नजर रखें।
- बच्चों से संवाद करें, उन्हें समझें कि क्लास में क्या सिखाया जा रहा है।
- विद्यालय में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करें।
आखिर में सवाल:
क्या सरकारी अंग्रेज़ी स्कूलों में केवल नाम का दिखावा हो रहा है? क्या शिक्षकों की बेरुखी और सरकारी उदासीनता से बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है? क्या पालकों की चुप्पी ही इस भ्रष्ट और लचर व्यवस्था की ताकत बन गई है?
इसका जवाब देना अब समाज और शासन दोनों की ज़िम्मेदारी है।