CG: शासन के आदेशों को ठेंगा: विभागीय मिलीभगत से शिक्षिका अब तक कार्यमुक्त नहीं, प्रधान पाठक का आश्वासन भी निकला झूठा

 

फिंगेश्वर/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)।शासन के आदेशों को ठेंगा:छत्तीसगढ़ शासन द्वारा शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने और शिक्षकों की तैनाती में पारदर्शिता लाने के लिए युक्तियुक्तकरण (Rationalization) की प्रक्रिया लागू की गई थी। इस व्यवस्था के तहत सभी शिक्षकों को उनके मूल पदस्थापना विद्यालय में भेजने के निर्देश जारी किए गए हैं। परंतु फिंगेश्वर विकासखंड के अंतर्गत आने वाले शासकीय प्राथमिक शाला टेढ़ाहीपारा कौन्दकेरा में पदस्थ शिक्षिका श्रीमती दुर्गा साहू को अब तक कार्यमुक्त नहीं किया गया है, जबकि उनका मूल विद्यालय प्राथमिक शाला रोहिना है।

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इस पूरे मामले में विभागीय स्तर पर मिलीभगत की गंभीर आशंका सामने आ रही है, जहाँ एक ओर प्रधान पाठक निजी सुविधा के लिए शिक्षकों को रोके हुए हैं, वहीं दूसरी ओर विकासखंड शिक्षा अधिकारी की निष्क्रियता या मौन सहमति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

प्रधान पाठक का असत्य आश्वासन

दो दिन पूर्व, जब हमारे संवाददाता ने शासकीय प्राथमिक शाला टेढ़ाहीपारा की प्रधान पाठक श्रीमती अंतेश्वरी निराला से मोबाइल पर संपर्क कर श्रीमती दुर्गा साहू के कार्यमुक्त न होने के संबंध में पूछा, तो उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा:

“शिक्षक की कमी के चलते मैंने सहयोग के लिए उन्हें रोका था। लेकिन अब कार्यमुक्त कर दूंगी। कृपया समाचार मत बनाइए, कल दिवस तक कार्यमुक्त कर उनके मूल पदस्थापना में भेज दूंगी।”

हालांकि यह कथन मात्र एक अस्थायी आश्वासन साबित हुआ। समाचार रोकने का आग्रह यह संकेत देता है कि संबंधित प्रधान पाठक स्वयं जानते हैं कि वे शासन के आदेश की अवहेलना कर रही हैं। इसके बावजूद श्रीमती दुर्गा साहू को आज तक कार्यमुक्त नहीं किया गया है।

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रोहिना के प्रधान पाठक ने जताई चिंता

इस विषय में प्राथमिक शाला रोहिना के प्रधान पाठक श्री उमेन्दी ध्रुव ने कहा,

“युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया शासन द्वारा शिक्षकों के संतुलन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए लाई गई है। शिक्षकों का मूल शाला में पदस्थ रहना अनिवार्य है, और अगर उन्हें मनमाने ढंग से रोका जाता है, तो इससे विद्यालय में पढ़ाई बाधित होती है।”

श्री ध्रुव का बयान यह दर्शाता है कि रोहिना जैसे ग्रामीण विद्यालयों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है और जब मूल शिक्षक वहां तैनात नहीं किए जाते तो छात्रों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है।

विकासखंड शिक्षा अधिकारी की भूमिका संदिग्ध

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि विकासखंड शिक्षा अधिकारी रामेंद्र जोशी ने यह स्वीकार किया कि सभी विद्यालयों को युक्तियुक्तकरण के तहत शिक्षकों को मूल शाला में भेजने हेतु पत्र जारी कर दिया गया है। उन्होंने कहा:

“आपके माध्यम से जानकारी मिल रही है कि श्रीमती दुर्गा साहू को कार्यमुक्त नहीं किया गया है। हम इस संबंध में जांच कर उन्हें शीघ्र उनके मूल पदस्थापना में भेजेंगे।”

परंतु प्रश्न यह उठता है कि यदि पत्र पहले ही जारी हो चुके हैं, तो फील्ड स्तर पर इसका पालन क्यों नहीं हुआ? क्या विभाग को ऐसी लापरवाहियों की जानकारी नहीं होती? या फिर यह सब जानबूझकर और मौन स्वीकृति के साथ किया जा रहा है?

सूत्र बताते हैं कि शिक्षकों को लंबे समय तक किसी एक शाला में बनाए रखने के पीछे अक्सर निजी हित, सुविधा शुल्क और राजनीतिक या प्रशासनिक पहुंच का खेल चलता है। यदि यही स्थिति रही तो शासन की मंशा, जो शिक्षा में सुधार की है, वह केवल कागजों में सिमटकर रह जाएगी।

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शिक्षा व्यवस्था की गिरती साख

शिक्षा एक संवेदनशील विषय है, और जब शिक्षक ही आदेशों का पालन न करें और अधिकारी आंख मूंदे बैठे रहें, तो बच्चों के भविष्य के साथ यह अन्याय है। ऐसे मामलों में यदि सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो अन्य विद्यालयों में भी शिक्षक आदेशों को नजरअंदाज करने लगेंगे।

विभागीय अधिकारियों की ओर से मिलीभगत या उदासीनता यदि सामने आई तो यह केवल एक शिक्षिका की पोस्टिंग का मामला नहीं रहेगा, बल्कि शासन की पूरी युक्तियुक्तकरण व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा करेगा।

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट है कि शिक्षिका श्रीमती दुर्गा साहू को अनियमित रूप से टेढ़ाहीपारा शाला में रोका गया है, जिसमें स्थानीय प्रधान पाठक की स्वीकृति और विभागीय चुप्पी दोनों शामिल हैं। शासन को इस मामले का संज्ञान लेकर न केवल दोषियों पर कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया को गम्भीरता से लागू किया जाए।

यदि शासन और विभाग आंख मूंदे रहे तो यह मामला शिक्षा में अनुशासनहीनता की मिसाल बन जाएगा।

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