छुरा (गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिले के आदिवासी बाहुल्य छुरा क्षेत्र में आदिवासी भूमि की खरीद-फरोख्त का एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ है। ग्राम हीराबतर की एक आदिवासी कृषक महिला की भूमि, जो वर्षों से दलालों और फर्जी सौदों के जाल में फंसी हुई थी, आखिरकार न्यायालय स्तर पर निरस्त कर दी गई। इस प्रकरण के साथ ही तीन अन्य आदिवासी भूमि लेन-देन भी रद्द कर दिए गए हैं। वर्तमान तहसीलदार गैंदलाल साहू ने इसकी पुष्टि की है और खरीदारों को स्पष्ट संदेश दिया है कि वे दलालों के झांसे में न आएं।

गणेशी बाई की कहानी — एक कृषक महिला की ज़मीन पर विवाद
ग्राम हीराबतर की आदिवासी महिला गणेशी बाई पिता बिसराम ने यह भूमि अपने समय के एक सामाजिक कृषक से खरीदी थी। लंबे समय तक वह स्वयं इस भूमि पर कृषि कार्य करती रहीं।
हालांकि, गणेशी बाई के पति गैर-आदिवासी वर्ग से आते थे। कानूनी प्रावधानों के चलते, गणेशी बाई की संतानें भी गैर-आदिवासी (ओबीसी वर्ग) में मानी गईं। यही से विवाद की नींव पड़ी।
भूमि जो मूल रूप से एक आदिवासी महिला ने खरीदी और वर्षों तक उस पर खेती की, वह आगे चलकर उनके गैर-आदिवासी संतानों के नाम दर्ज हो गई।
जमीन की डोरी A से C तक और फिर योगेश अग्रवाल तक
प्रकरण में सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि भूमि एक से दूसरे और फिर तीसरे हाथों में गई।
सबसे पहले गणेशी बाई की संतान ने यह भूमि एक गैर-आदिवासी A को बेची। इसके बाद A ने यह भूमि B को बेची। फिर B ने यह भूमि C को हस्तांतरित कर दी। अंततः यह भूमि थर्ड पार्टी खरीदार योगेश कुमार अग्रवाल तक पहुंच गई।
यानी यह भूमि कुल तीन बार बेची गई, और अंततः मामला तहसील कार्यालय और न्यायालय तक पहुंच गया।
न्यायालय और तहसीलदार का हस्तक्षेप
इस पूरे विवाद की पड़ताल तब शुरू हुई जब मामला मीडिया की सुर्खियों में आया। समाचार प्रकाशित होने के बाद प्रशासन हरकत में आया और पूर्व तहसीलदार रमेश मेहता ने इस खरीद-फरोख्त के प्रमाणीकरण को निरस्त कर दिया।
अब, नए तहसीलदार गैंदलाल साहू ने न केवल इस प्रकरण को बरकरार रखा बल्कि तीन अन्य आदिवासी भूमि की खरीद-फरोख्त को भी जांच के बाद निरस्त कर दिया है।
कानूनी पहलू — क्यों है यह खरीद-फरोख्त अवैध?
1. छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, धारा 170(B): आदिवासी भूमि बिना कलेक्टर की अनुमति किसी गैर-आदिवासी को बेची नहीं जा सकती।
2. पेसा अधिनियम, 1996: आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभा की अनुमति के बिना कोई भी भूमि लेन-देन मान्य नहीं है।
3. संविधान की पांचवी अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों की भूमि और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा राज्य का संवैधानिक दायित्व है।
स्पष्ट है कि हीराबतर का यह प्रकरण इन सभी प्रावधानों की खुली अवहेलना था।
तहसीलदार की चेतावनी — खरीदार दलालों के झांसे में न आएं
तहसीलदार गैंदलाल साहू ने मीडिया को बताया: यह चारों प्रकरण न्यायालय में प्रमाणीकरण के दौरान निरस्त कर दिए गए हैं। खरीदारों को साफ चेतावनी दी जाती है कि वे दलालों के बहकावे में आकर आदिवासी भूमि न खरीदें। ऐसी हर रजिस्ट्री अंततः अवैध साबित होकर रद्द हो जाएगी।
ग्रामीणों में संतोष लेकिन सवाल बाकी
ग्राम हीराबतर सहित छुरा क्षेत्र के ग्रामीणों में प्रशासन की इस कार्रवाई को लेकर संतोष है कि उनकी जमीन बच गई।
लेकिन कई गंभीर सवाल अब भी खड़े हैं:
- क्या दलालों और राजस्व अधिकारियों की भूमिका की जांच होगी?
- क्या उन पटवारियों और रजिस्ट्रारों पर कार्रवाई होगी जिन्होंने रजिस्ट्री की अनुमति दी?
- क्या पीड़ित पक्ष को पुनः भूमि कब्जे में दिलाई जाएगी?
अधूरी जीत या नई शुरुआत?
हीराबतर प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आदिवासी भूमि की अवैध रजिस्ट्री का खेल कितना गहरा और संगठित है। चार प्रकरणों के निरस्त होने से खरीदारों और दलालों को झटका जरूर लगा है, लेकिन असली न्याय तब होगा जब जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी।
फिलहाल, प्रशासन की इस कार्रवाई ने एक मजबूत संदेश दिया है — आदिवासी भूमि पर कोई गैर-आदिवासी अवैध कब्जा नहीं कर सकता।