(आज गीता जयंती विशेष)

 – गीता जयंती प्रत्‍येक वर्ष मार्गशीर्ष मास के शुक्‍लपक्ष की एकादशी यानि आज के ही दिन मनायी जाती है , इसे मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं। दुनियाँ के किसी भी धर्म-संप्रदाय के ग्रंथों का जयंती नहीं मनाया जाता सिर्फ गीता जयंती ही मनायी जाती है। क्योंकि अन्य ग्रंथ इंसानों के द्वारा लिखे या संकलित किये गये हैं जबकि गीता का जन्म स्वयं भगवान के श्रीमुख से हुआ है। गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। भगवद्गीता में कई विद्यायें बतायी गयी हैं। इनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या , साम्य विद्या , ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। साम्य विद्या राग-द्वेष से मुक्ति दिलाती है। ईश्वर विद्या से व्यक्ति अहंकार से बचता है। ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल , धर्म , संप्रदाय या जाति विशेष के लिये नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिये हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिये इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है। गीता का संदेश युगों पहले भी प्रासंगिक था , आज भी है और निरंतर भविष्य में भी प्रासंगिक बना रहेगा। गीता के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि गीता सर्वशास्त्रमयी , परम रहस्यमयी ग्रंथ के साथ साथ योग , ज्ञान , भक्ति की त्रिवेणी है। यह मनुष्य को जीवन के गहन सत्य से ज्ञान कराते हुये जीवन जीने का श्रेष्ठ मार्ग दिखलाती है। निराशा से, हताशा से और शंकाओं के अंधियारों से भरे मन को ज्ञान सूर्य से प्रकाशित करती है , इसका सान्निध्य मानव जीवन को नये समाधान प्रस्तुत करता है। हर धर्म का एक ग्रंथ होता है उसी तरह से हिंदू सनातन धर्म में गीता को पवित्र धर्मग्रंथ का स्थान दिया गया है। गीता भगवान कृष्ण के द्वारा महाभारत के युद्ध के समय किसी धर्म विशेष के लिये नहीं अपितु मनुष्य मात्र के लिये दिया गया उपदेश है जो हमें धैर्य , दु:ख , लोभ , अज्ञानता से बाहर निकलने के लिये प्रेरित करता है। गीता त्रियोग रजोगुण संपन्न ब्रह्मा से भक्ति योग, सतोगुण संपन्न विष्णु से कर्म योग और तमोगुण संपन्न शंकर से ज्ञान योग का ऐसा प्रकाश है, जिसकी आभा हर एक जीवात्मा को प्रकाशमान करती है। यह वेदों और उपनिषदों का सार, इहलोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला, कर्म – ज्ञान और भक्ति- तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य के परम श्रेय के साधन का उपदेश करने वाला अद्भुत ग्रंथ है। गीता धार्मिक ग्रंथ के साथ साथ दर्शनशास्त्र का भी बेहतरीन उदाहरण है। इसमें जीवन में आने वाली हर समस्या का हल दिया गया है यानि गीता का पाठ समस्त समस्याओं का समाधान भी कर देता है। गीता हम सभी को सही तरीके से जीवन जीने की कला सिखाती है। धर्म के विभिन्न मार्गों का समन्वय और निष्काम कर्म – ये गीता की दो प्रमुख विशेषतायें हैं। कई अर्थों में गीता भारत और भारतीयता का जीवंत प्रकाश स्तम्भ है जिसमें भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों सन्निहित हैं। गीता हमारे मंगलमय जीवन का पवित्र ग्रंथ और ज्ञान का अद्भुत भंडार है। गीता भगवान की श्वाँस और भक्तों का विश्वास है। यह केवल ग्रंथ नहीं बल्कि कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। गीता एक ओर जहाँ मरना सिखाती है वहीं दूसरी ओर जीवन को धन्य भी बनाती है। जीवन उत्थान के लिये हर व्यक्ति को इसका स्वाध्याय करना ही चाहिये। गीता एक दिव्य ग्रंथ है जो हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। भगवद्‍गीता के पठन-पाठन श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिये नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिये है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। आज हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान , दुख , मोह , क्रोध , काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी।महाभारत ग्रंथ में गीता के कुल 18 अध्याय है। इसमें कुल 700 श्लोक हैं जिसमें 574 भगवान उवाच , 84 कृष्ण उवाच , 41 संजय उवाच और एक धृतराष्ट्र उवाच है। इनमें से 06 अध्याय में कर्मयोग , 06 अध्याय में ज्ञानयोग और अंतिम 06 अध्यायों में भक्तियोग के उपदेश दिये गये हैं। श्रीमद्भागवत गीता में 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं। गीता में वर्णित हर श्लोक में जीवन जीने की अद्भुत कला के साथ साथ हर परिस्थिति से धैर्यपूर्वक निपटने की कला भी बतायी गयी है। इसके हर अध्याय में अलग अलग संख्या में श्लोक है और हर अध्याय का उद्देश्य भी अलग है , मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के मोह में फंसे मतिभ्रम को दूर कर उसे कर्तव्य मार्ग पर युद्ध करने के लिये प्रेरित करते है। गीता का सार यही है कि हमें हर हाल में अपने धर्म के अनुसार फल की इच्छा किये बिना कर्म करना चाहिये। सभी कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करने पर ही हमारा जीवन सफल होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुये कहा कि जो कुछ हो रहा है वह सब नियंता के द्वारा ही हो रहा होता है। इसलिये नियंता को कभी भी अस्‍वीकार नहीं करना चाहिये। योगेश्‍वर श्रीकृष्‍ण गीता में अर्जुन को बताते हैं कि वे ही ब्रह्मा बनकर सृष्टि का निर्माण करते हैं और रूद्र बनकर सृष्टि का संहार करते हैं। वे कहते हैं कि यह सृष्टि यूंँ ही बनाते और बिगाड़ते रहेंगे ताकि आत्‍माओं को मौका मिल सके। वह इस जन्‍म और मृत्‍यु से पार पाकर मोक्ष पाकर ईश्‍वर के साथ रह सकें। उन्‍होंने बताया कि आत्‍मा को परमात्‍मा के साथ हमेशा रहने के लिये इस जीवनरूपी परीक्षा को देना ही होगा।भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में अर्थात गाकर उपदेश दिया इसलिये इसे गीता कहते हैं। चूकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा। भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करता है , साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है। ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गुदा के विकार से बचता है जबकि ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है। गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि अभिग्रह (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिये गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है।

गीता सार पर पर चिंतन

क्यों व्यर्थ चिंता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हें मार सकता है ? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है। जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाये थे ? जो तुमने खो दिया। जो लिया यहीं से लिया , जो दिया, यहीं पर दिया। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा।मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया , मन से मिटा  , फिर सब तुम्हारा है , तुम सबके हो। तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है।

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