दो साल तक मुआवजा नहीं दिया, अब कुर्सी-टेबल से लेकर सरकारी सामान तक जब्ती की तैयारी
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)।
छत्तीसगढ़ में सरकारी महकमे की मनमानी और न्यायालय के आदेशों की अवहेलना का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जल संसाधन विभाग, गरियाबंद के अधिकारियों की लापरवाही अब विभाग के लिए गले की फांस बन गई है। माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर के स्पष्ट और बाध्यकारी आदेश के बावजूद निर्धारित मुआवजा राशि जमा नहीं करने पर अब जल संसाधन विभाग के कार्यालय की संपत्ति कुर्क किए जाने का आदेश जारी हो चुका है। भू-अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन प्राधिकरण (न्यायालय), रायपुर ने इसे न्यायिक आदेशों की खुली अवहेलना मानते हुए सख्त रुख अपनाया है।
दो साल पहले आया था हाईकोर्ट का आदेश
पूरा मामला एफ.ए.एन. क्रमांक 272/2018 (श्रीमती दुर्गा देवी स्मृति सेवा समिति बनाम छत्तीसगढ़ शासन एवं अन्य) से जुड़ा है। इस प्रकरण में माननीय हाईकोर्ट ने 7 नवंबर 2023 को स्पष्ट आदेश पारित करते हुए तय मापदंडों के अनुसार मुआवजा राशि भुगतान करने के निर्देश दिए थे। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया था कि भुगतान में देरी होने पर ब्याज की देनदारी शासन पर बढ़ेगी।
इसके बावजूद जल संसाधन विभाग के अफसरों ने आदेश को गंभीरता से नहीं लिया। दो वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो मुआवजा राशि का भुगतान किया गया और न ही उसे प्राधिकरण में जमा किया गया।
आवेदन पर आवेदन, लेकिन फाइल आगे नहीं बढ़ी
याचिकाकर्ता की ओर से लगातार विभागीय अधिकारियों को आवेदन और स्मरण पत्र दिए जाते रहे। हाईकोर्ट के आदेश की प्रति भी समय रहते विभाग को उपलब्ध कराई गई, लेकिन अफसरशाही की सुस्ती और टालमटोल के चलते फाइलें आगे नहीं बढ़ सकीं। अंततः परेशान होकर याचिकाकर्ता ने भू-अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन न्यायालय, रायपुर में दोबारा गुहार लगाई।
चेतावनी के बाद भी नहीं सुधरे अफसर
प्राधिकरण ने पहले ही कार्यपालन अभियंता, जल संसाधन विभाग, गरियाबंद को मुआवजा राशि जमा करने के निर्देश दिए थे। साथ ही सख्त चेतावनी भी दी गई थी कि आदेश का पालन नहीं होने पर कुर्की वारंट जारी किया जाएगा। बावजूद इसके, न तो तय तिथि पर कार्यपालन अभियंता न्यायालय में उपस्थित हुए और न ही मुआवजा राशि जमा की गई।
अतिरिक्त समय देने की विभागीय मांग को भी प्राधिकरण ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी दो वर्षों से है, तो अब समय मांगना न्याय के साथ मजाक है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
प्राधिकरण ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना से प्रतिदिन ब्याज की राशि बढ़ रही है, जिससे शासन पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ रहा है। यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि न्यायिक आदेशों का खुला अपमान भी है।
अब कुर्की तय, संपत्ति की सूची तलब
कई अवसर दिए जाने के बाद भी आदेशों का पालन न होने पर प्राधिकरण ने अंतिम कार्रवाई का रास्ता अपनाया है। आदेश में आवेदक को निर्देशित किया गया है कि जल संसाधन विभाग, गरियाबंद कार्यालय से संबंधित चल-अचल संपत्तियों का विवरण प्रस्तुत किया जाए। जैसे ही संपत्तियों की सूची न्यायालय के समक्ष आएगी, वैसे ही विधिवत कुर्की वारंट जारी कर दिया जाएगा।
17 दिसंबर 2025 को अगली तारीख
मामले में कुर्की वारंट की तामिली रिपोर्ट के लिए 17 दिसंबर 2025 की तिथि निर्धारित की गई है। यदि तब तक भी मुआवजा राशि जमा नहीं की गई, तो विभागीय कार्यालय में तालाबंदी और संपत्ति जब्ती जैसी कार्रवाई से इनकार नहीं किया जा सकता।
बड़ा सवाल
सवाल यह उठता है कि जब माननीय हाईकोर्ट के आदेशों की खुलेआम अनदेखी हो रही है, तो आम नागरिक न्याय की उम्मीद किससे करे? जल संसाधन विभाग के इस रवैये ने प्रशासनिक कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना होगा कि कुर्की की कार्रवाई से पहले विभाग जागता है या फिर अदालत की सख्ती एक मिसाल बनकर सामने आती है।
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