गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। शरीर और मन — दोनों का स्वास्थ्य ही वास्तविक सुख की परिभाषा है। इसी संदेश के साथ गरियाबंद जिले में शनिवार को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और तकनीकी समझ बढ़ाने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन जिला स्वास्थ्य विभाग, यूनिसेफ़ छत्तीसगढ़ और मीडिया कलेक्टिव फॉर चाइल्ड राइट्स (MCCR) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया, जिसमें जिले के लगभग 250 से अधिक स्वास्थ्यकर्मी, मितानिन प्रशिक्षक, एएनएम, एमपीडब्ल्यू और सुपरवाइजर शामिल हुए।

मानसिक स्वास्थ्य — स्वास्थ्य सेवा की नई दिशा
कार्यशाला का उद्देश्य स्पष्ट था — मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य के समान प्राथमिकता दिलाना। कार्यक्रम के पहले सत्र में विशेषज्ञों ने बताया कि अक्सर ग्रामीण और शहरी समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया जाता है, जबकि यह व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता, कार्यक्षमता और पारिवारिक संबंधों को सीधे प्रभावित करता है।
मुख्य वक्ताओं ने कहा कि अब समय आ गया है जब हम “मन की बीमारी” को “कमी” नहीं बल्कि “स्थिति” के रूप में समझें और उपचार की दिशा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँ।
तीन चरणों में हुई गहन चर्चा
कार्यशाला तीन चरणों में संपन्न हुई —
- पहला चरण: मानसिक स्वास्थ्य की बुनियादी समझ, मानसिक रोगों की पहचान के संकेत, और समाज में इसके प्रति दृष्टिकोण को बदलने पर केंद्रित रहा।
- दूसरा चरण: रेफरल सेवाओं की उपलब्धता और Tele-MANAS (टेली-मानस) प्रणाली के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। Tele-MANAS के जरिए कोई भी व्यक्ति नि:शुल्क मानसिक स्वास्थ्य सलाह प्राप्त कर सकता है — यह पहल केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही है, जिसका मकसद हर व्यक्ति तक मानसिक स्वास्थ्य सहायता पहुँचाना है।
- तीसरा चरण: आत्महत्या रोकथाम, किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य, और परिवार एवं समुदाय की भूमिका पर खुली चर्चा हुई।
स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका पर विशेष बल
सत्रों के दौरान विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि स्वास्थ्यकर्मी अक्सर समाज के पहले संपर्क बिंदु होते हैं। यदि वे मानसिक स्वास्थ्य के शुरुआती संकेत पहचान लें, तो कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
डॉ. डी. श्याम कुमार, राज्य समन्वयक (एमसीसीआर), ने कहा —एक संवेदनशील स्वास्थ्यकर्मी न केवल इलाज करता है, बल्कि विश्वास और उम्मीद भी जगाता है। आत्महत्या रोकथाम की सबसे पहली दीवार यही संवेदनशीलता है।

विशेष सत्र — किशोर मानसिक स्वास्थ्य
किशोरों में बढ़ते तनाव, सोशल मीडिया का प्रभाव, पारिवारिक दबाव और परीक्षा का तनाव — इन सभी मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा हुई। राज्य परामर्शदाता सुश्री निधि दुबे ने कहा,— आज का किशोर सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि अपनी पहचान की खोज में है। हमें उसे सुनना सीखना होगा — यही मानसिक स्वास्थ्य का पहला कदम है।
आयोजन की अगुवाई और सहयोग
इस कार्यशाला का संचालन सीएमएचओ डॉ. नवरत्न के मार्गदर्शन में किया गया।सफल संचालन में डॉ. श्री जांगड़े, डीपीएम गणपत नायक, यूनिसेफ़ के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. गजेंद्र सिंह, और राज्य समन्वयक डॉ. डी. श्याम कुमार की सक्रिय भूमिका रही।
सभी विशेषज्ञों ने एक स्वर में कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को अब “साइलेंट इश्यू” नहीं रहने देना चाहिए। इसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा से जोड़ा जाना आवश्यक है ताकि हर नागरिक तक इसका लाभ पहुँचे।
उम्मीद की नई किरण
कार्यक्रम के समापन पर जिला स्वास्थ्य विभाग, यूनिसेफ़ और एमसीसीआर ने संयुक्त रूप से आशा व्यक्त की कि इस तरह की कार्यशालाएँ ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों को सशक्त बनाएंगी।
अब ये प्रशिक्षित कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व से अवगत कराएँगे और ज़रूरतमंदों तक टेली-मानस जैसी सेवाएँ पहुँचाएँगे।
“स्वस्थ मन — स्वस्थ समाज” के इस नारे के साथ कार्यशाला समाप्त हुई, लेकिन इस एक दिन की पहल ने जिले में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक दीर्घकालिक बदलाव की दिशा तय कर दी है।




