गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ पुलिस को नक्सल उन्मूलन अभियान में एक और बड़ी कामयाबी मिली है। गरियाबंद जिले में सक्रिय प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के तीन सक्रिय और एक-एक लाख रुपये के ईनामी माओवादी — नागेश उर्फ रामा कवासी, जैनी उर्फ देवे मडकम और मनीला उर्फ सुंदरी कवासी ने हथियार सहित पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। तीनों माओवादी लंबे समय से डीजीएन डिवीजन और सीनापाली एरिया कमेटी के तहत सक्रिय थे और कई बड़ी नक्सली घटनाओं में शामिल रहे हैं।

यह आत्मसमर्पण राज्य शासन की आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति तथा गरियाबंद पुलिस की निरंतर अपील और दबावपूर्ण कार्रवाई का परिणाम बताया जा रहा है। तीनों ने स्वीकार किया कि अब नक्सली संगठन केवल “लूट, वसूली और निर्दोष ग्रामीणों के शोषण” का अड्डा बन चुका है।

आत्मसमर्पित माओवादियों का विस्तृत परिचय

(1) नागेश उर्फ रामा कवासी

ग्राम तर्रेम, थाना तर्रेम, जिला बीजापुर निवासी नागेश को वर्ष 2022 में पामेड एरिया कमेटी-डीव्हीसी (पांडू) माओवादी ने संगठन में भर्ती कराया था। इसके बाद 6 माह तक उसे रायुम जंगल में प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के बाद इंद्रावती क्षेत्र में कार्य करने भेजा गया। बाद में उसे डीव्हीसी डमरू का गार्ड नियुक्त किया गया।

नागेश कई बड़ी मुठभेड़ों में शामिल रहा — जिनमें धमतरी के एकावरी गांव में हुई मुठभेड़, जिसमें माओवादी सिंधु घायल हुई थी, तथा 11 सितंबर 2025 को ग्राम मेटाल मुठभेड़, जिसमें तीन बड़े माओवादी समेत 10 नक्सली मारे गए थे, शामिल हैं।

(2) जैनी उर्फ देवे मडकम

ग्राम इतगुड़ेम, जिला बीजापुर की रहने वाली जैनी ने 16 वर्ष की उम्र में माओवादी संगठन का दामन थामा। वर्ष 2017 में डीव्हीसी मनीला द्वारा संगठन में शामिल कराए जाने के बाद उसे ओडिशा स्टेट कमेटी सदस्य पांडू उर्फ प्रमोद के गार्ड के रूप में नियुक्त किया गया।

वह कई भीषण नक्सली वारदातों में शामिल रही —

  • 2019 में ओडिशा के नुलुगुम्पा क्षेत्र में मुठभेड़, जिसमें दो महिला माओवादी पदमा और कमला मारी गईं।
  • सुराडीह मुठभेड़, जिसमें एक पुलिस जवान घायल हुआ।
  • धमतरी के एकावरी गांव की मुठभेड़, जिसमें नीतू वेड्दा मारी गई।
  • मई 2025 के मोतीपानी मुठभेड़, जिसमें डीव्हीसी योगेश मारा गया।
  • सितंबर 2025 का मेटाल मुठभेड़, जिसमें दस माओवादी ढेर हुए।

जैनी करीब 8 साल से गरियाबंद-ओडिशा बॉर्डर पर नक्सली गतिविधियों में सक्रिय थी और प्रमोद उर्फ पांडू की सबसे विश्वसनीय सहयोगी मानी जाती थी।

(3) मनीला उर्फ सुंदरी कवासी

ग्राम जैगूर, थाना भैरमगढ़, जिला बीजापुर की रहने वाली मनीला ने वर्ष 2020 में माओवादी संगठन में कदम रखा। वह पहले बाल संगठन और चेतना नाट्य मंच से जुड़ी थी। बाद में डीव्हीसी सोनू और कमांडर रमेश माटवाडा द्वारा उसे गरियाबंद लाया गया।

मनीला ने सीसी चलपति उर्फ जयराम के गार्ड के रूप में कार्य किया और बाद में सीनापाली एरिया कमेटी में नियुक्त हुई। वह भी कई बड़ी मुठभेड़ों में शामिल रही —

  • जुलाई 2022 को दडईपानी में ओडिशा पुलिस से मुठभेड़,
  • जनवरी 2025 को कांडसर मुठभेड़, जिसमें एक नक्सली रोशन मारा गया,
  • मई 2025 को मोतीपानी मुठभेड़, जिसमें डीव्हीसी योगेश मारा गया,
  • और सितंबर 2025 का मेटाल एनकाउंटर, जिसमें 10 माओवादी मारे गए।

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 माओवाद की “खोखली विचारधारा” से टूटे तीनों माओवादी

आत्मसमर्पण के दौरान तीनों माओवादियों ने कहा कि संगठन अब विचारधारा नहीं, बल्कि अत्याचार का प्रतीक बन गया है। – “माओवादी निर्दोष ग्रामीणों की हत्या करते हैं, राशन लूटते हैं, ठेकेदारों से वसूली करते हैं और युवाओं को जबरन जंगल भेजते हैं। बड़े माओवादी छोटे कैडरों का शोषण करते हैं।”

तीनों ने स्वीकार किया कि शासन की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति, जिसमें इनाम राशि, आवास, स्वास्थ्य सुविधा और रोजगार जैसी गारंटी है, से प्रेरित होकर उन्होंने मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया।

उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने कई आत्मसमर्पित साथियों जैसे आयतु, संजय, मल्लेश, मुरली, लक्ष्मी, मैना, क्रांति, दीपक, मंजुला, राजीव, ललिता आदि के खुशहाल जीवन को देखकर यह कदम उठाया।

गरियाबंद पुलिस का संयुक्त अभियान — नक्सल मोर्चे पर मजबूत पकड़

इस आत्मसमर्पण में गरियाबंद पुलिस की E-30 टीम, STF, CoBRA-207 और CRPF का संयुक्त योगदान रहा।

गरियाबंद पुलिस अधीक्षक ने कहा कि यह नक्सल उन्मूलन की दिशा में एक ऐतिहासिक सफलता है और इससे जंगलों में छिपे अन्य माओवादियों को भी प्रेरणा मिलेगी।

पुलिस ने जिले में सक्रिय अन्य माओवादियों से भी अपील की है कि वे हिंसा का मार्ग छोड़कर मुख्यधारा में लौटें।  “आत्मसमर्पण किसी भी थाना, चौकी या कैम्प में किया जा सकता है।

इच्छुक माओवादी नक्सल सेल गरियाबंद (मो. 94792-27805) से सीधे संपर्क कर सकते हैं।”

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 नक्सलवाद को गहरा झटका

विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार हो रहे आत्मसमर्पणों से नक्सल संगठन की जमीनी पकड़ कमजोर हुई है। गरियाबंद-ओडिशा सीमा पर यह आत्मसमर्पण डीजीएन डिवीजन और सीनापाली एरिया कमेटी दोनों को बड़ा झटका माना जा रहा है।

राज्य सरकार की पुनर्वास नीति, पुलिस की लगातार दबिश और स्थानीय ग्रामीणों के बदलते रुख ने नक्सलियों को मुख्यधारा की ओर लौटने को प्रेरित किया है।

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