Brekings: कमार जनजाति से छल या सुधार? छुरा में प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना के निरीक्षण के पीछे उठते सवाल
धरमपुर और बिरोडार में शासन की ज़मीनी सच्चाई पर मचा घमासान

छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। कमार जनजाति से छल या सुधार?छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड में प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना को लेकर दो विपरीत तस्वीरें सामने आ रही हैं। एक तरफ़ कलेक्टर बी.एस. उइके द्वारा धरमपुर और बिरोडार गांव में निरीक्षण कर हितग्राहियों से सीधे संवाद किए जाने की बात कही जा रही है, तो दूसरी तरफ़ हाल ही में मीडिया में आई एक ग्राउंड रिपोर्ट ने इस योजना की ज़मीनी सच्चाई पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह योजना विशेष रूप से विशेष पिछड़ी जनजातियों (PVTG) के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही है, जिसमें गरियाबंद जिले की कमार जनजाति को प्राथमिकता दी गई है। इस योजना के तहत प्रत्येक पात्र हितग्राही को दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है ताकि वे स्वयं का पक्का आवास बना सकें। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में ये घर कमार परिवारों की ज़िंदगी में सम्मान और सुरक्षा का आशियाना बन पा रहे हैं?
कलेक्टर पहुंचे गांव, की हितग्राहियों से चर्चा
जिला प्रशासन के अनुसार, कलेक्टर श्री उइके ने शनिवार को ग्राम पंचायत खरखरा के आश्रित ग्राम धरमपुर और ग्राम पंचायत देवरी के आश्रित ग्राम बिरोडार का दौरा किया। उन्होंने प्रधानमंत्री जनमन योजना के अंतर्गत बन चुके और निर्माणाधीन मकानों का निरीक्षण किया और हितग्राहियों से संवाद कर निर्माण की गुणवत्ता, सुविधा और संतुष्टि के बारे में जानकारी ली।
कलेक्टर ने हितग्राहियों से पूछा कि—
- “आपका मकान कैसा बना है?”
- “क्या आप संतुष्ट हैं?”
- “कोई दिक्कत तो नहीं आई?”
गांव के कुछ लोगों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि अब उन्हें कच्चे घर की जगह पक्का छत नसीब हुआ है और वे शासन के आभारी हैं। इस दौरान तीनज बाई कमार, देवलाल कमार, फुलसिंह कमार आदि से चर्चा भी हुई।
लेकिन दूसरी तस्वीर में उजागर हुए शोषण के तथ्य
इसी बीच मीडिया में आई एक विस्तृत रिपोर्ट ने धरमपुर गांव की एक अलग ही तस्वीर पेश की। रिपोर्ट में आरोप लगाए गए कि कमार जनजाति के भोले-भाले लोगों से योजना के लाभ दिलाने के नाम पर जियो ट्रैकिंग, चाय-पानी, और दौड़-भाग जैसे बहानों से ₹200 से लेकर ₹3,000 तक की अवैध वसूली की गई।
कुछ हितग्राही यह तक नहीं जानते थे कि उन्हें कितनी राशि मिली है, किस्तें कब-कब आईं, या मकान निर्माण में कितना खर्च हुआ। इसके चलते कई घर अधूरे रह गए हैं—कहीं खिड़कियाँ नहीं हैं, कहीं दरवाज़े नहीं, तो कहीं छत आधी अधूरी। आरोपों के घेरे में स्थानीय ठेकेदार और आवास सहायक हैं, जिन पर “ठेका पद्धति” के ज़रिए पैसे हड़पने के आरोप हैं।
प्रशासन की सफाई: भ्रम की स्थिति न बनाएं
मीडिया में छपी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए जनपद पंचायत छुरा के सीईओ सतीश चंद्रवंशी ने स्पष्ट किया:
“कलेक्टर महोदय स्वयं निरीक्षण पर गए थे। उन्होंने घर-घर जाकर हितग्राहियों से संवाद किया। मकान की गुणवत्ता के बारे में पूछा। कुछ मकान पूरे हो चुके हैं, कुछ निर्माणाधीन हैं। जिनका मकान अभी नहीं बना है, उन्हें भी प्रेरित किया गया।”
उन्होंने कहा कि शासन की मंशा है कि हर पात्र व्यक्ति को आवास मिले, और प्रशासन इस दिशा में गंभीरता से कार्य कर रहा है।
अब सवाल उठता है: क्या दोनों तस्वीरें एक साथ सच हैं?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि—
- क्या कलेक्टर के निरीक्षण से पहले गांव को ‘सजाया-संवारा’ गया?
- क्या जिन घरों की गुणवत्ता खराब है, उन्हें छिपाया गया?
- क्या प्रशासन को ठेकेदारी प्रणाली के जरिए हो रहे भ्रष्टाचार की पूरी जानकारी है?
अगर कलेक्टर के दौरे के बाद भी कई हितग्राहियों को योजना की मूल जानकारी नहीं है, तो यह पारदर्शिता और सूचना के अभाव की ओर इशारा करता है।
राजनीतिक और सामाजिक हलचल
इस खबर के सामने आने के बाद जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों में भी हलचल है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रशासन को सिर्फ आंकड़ों पर नहीं, हकीकत पर ध्यान देना चाहिए। वहीं कुछ जनप्रतिनिधि इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं।
सच्चाई की परतें अभी खुलनी बाकी हैं
प्रधानमंत्री जनमन योजना एक महत्वाकांक्षी और ज़रूरी पहल है, लेकिन यदि इसके क्रियान्वयन में गड़बड़ी हो रही है, तो यह योजना अपने मूल उद्देश्य से भटक सकती है। कमार जनजाति जैसे अति पिछड़े समुदाय के लिए यह योजना आशा की किरण है—उसे शोषण का ज़रिया न बनने देना ही प्रशासन और समाज की ज़िम्मेदारी है।