छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। सात महीने से गरियाबंद अंधेरे में : राज्य के खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री का प्रभार जिस गरियाबंद जिले में है, वहीं पिछले सात माह से गरीबों को मिलने वाला केरोसिन ही सप्लाई नहीं हो रहा। ज़िले के आदिवासी अंचल छुरा विकासखंड समेत पूरे जिले के 158 गांवों के 1,10,235 लोग अब अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।
बरसात में अघोषित बिजली कटौती के बीच ग्रामीणों के घरों में उजियाले का एकमात्र सहारा रहा लालटेन, चिमनी और भपका अब बुझ चुके हैं। हालात इतने खराब हैं कि रात के अंधेरे में सर्पदंश की घटनाएं आम हो गई हैं और शवदाह संस्कार तक प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि गीली लकड़ियों में आग लगाने के लिए केरोसिन अनिवार्य होता है।

गरीबों पर दोहरी मार : कंगाली में आटा गीला

जिन गरीब परिवारों के घर अब तक चिमनी और लालटेन से ही रौशनी होती थी, वे सात महीने से सरकारी केरोसिन से वंचित हैं। सब्सिडी खत्म होने के बाद बाजार में महंगे दामों पर बिक रहा केरोसिन गरीबों की पहुंच से बाहर हो चुका है। दूसरी ओर महंगे एलपीजी सिलेंडर ने हालात और खराब कर दिए हैं। कई परिवार फिर से खाना पकाने के लिए केरोसिन की तलाश कर रहे हैं, लेकिन सरकारी सप्लाई बंद होने से काला बाज़ार ही उनका सहारा बन गया है।

राशन डीलर भी परेशान

छुरा ब्लॉक के 74 उचित मूल्य की दुकानों में पिछले सात महीने से एक बूंद केरोसिन नहीं पहुंचा। डीलर रोज़ डीएसओ ऑफिस के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन जवाब सिर्फ इतना मिलता है कि “राज्यस्तर से आपूर्ति नहीं हो रही।

सरकारी तर्क और हकीकत

2019 में सरकार ने केरोसिन पर दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी थी। इसके बाद से वितरण तंत्र लगातार कमजोर होता गया। अब हालात यह हैं कि गरियाबंद जैसे आदिवासी बहुल जिले में केरोसिन पूरी तरह गायब हो चुका है। खाद्य निरीक्षक रितु सोम का कहना है कि— राज्य स्तर से मांग अनुरूप आपूर्ति नहीं होने के कारण ही जिले में संकट बना हुआ है।

असर सिर्फ घरों तक नहीं

केरोसिन की किल्लत से सिर्फ घरेलू उपयोग प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि किसानों की सिंचाई में पंप सेट चलाने में दिक्कत,स्वास्थ्य विभाग को डेंगू- मलेरिया रोकथाम के लिए पायरेथ्रम के छिड़काव में परेशानी,व्यावसायिक गतिविधियां ठप सबसे बड़ा नुकसान यह कि गांवों में अंधेरा छा जाने से महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित हो गए हैं।

अब सवाल उठता है

जिस जिले में खाद्य मंत्री का ही सीधा प्रभार है, वहां सात महीने तक केरोसिन सप्लाई बंद कैसे हो गई?
क्या सरकार ने ग्रामीण अंधेरे को नज़रअंदाज़ कर दिया है?
क्या गरीबों का उजियारा राजनीतिक प्राथमिकताओं की भेंट चढ़ गया है?
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