CG: गढ़िहादेव स्थल पर कब्जे का खेल: राजा-महाराजाओं के समय से पूजित देवस्थान आज अतिक्रमण की गिरफ्त में, आस्था का मार्ग बंद, प्रशासन मौन
छुरा (गंगा प्रकाश)। गढ़िहादेव स्थल पर कब्जे का खेल: गरियाबंद जिले के छुरा नगर से महज कुछ किलोमीटर दूर तिलैदादार मार्ग पर स्थित ऐतिहासिक गढ़िहादेव स्थल आज अपनी पहचान और अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। राजा-महाराजाओं के जमाने से पूजे जाने वाला यह स्थल वन परिक्षेत्र पांडुका के तिलैदादार बिट कक्ष क्रमांक पी-101 में आता है, परंतु पिछले दस वर्षों से यहां अतिक्रमण का खेल जारी है।
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, ग्राम खरखरा पंडरीपानी के कुछ प्रभावशाली लोगों ने इस वनभूमि पर कब्जा कर कच्चे-पक्के मकानों और झोपड़ियों , खेतीबाड़ी की लंबी कतारें खड़ी कर दी हैं। शुरू में कुछ लोगों ने झोपड़ियां बनाई, फिर धीरे-धीरे पक्के मकान, दुकाने, और अन्य निर्माण खड़े हो गए। आज स्थिति यह है कि गढ़िहादेव स्थल तक जाने का मुख्य मार्ग पूरी तरह बंद हो गया है।

छुरा नगर ग्राम समिति ने खोला मोर्चा
सोमवार को छुरा नगर की ग्राम समिति के सदस्यों का सब्र जवाब दे गया। दर्जनों लोग गढ़िहादेव मार्ग पर पहुंचे और छोटे-बड़े झाड़ियों की कटाई कर रास्ता साफ करने लगे। ग्रामीणों ने कहा – “गढ़िहादेव हमारे कुलदेवता हैं। पीढ़ियों से यहां पूजा होती आ रही है। अगर रास्ता ही बंद कर दोगे तो पूजा कैसे होगी?”
मौके पर गरमा-गरम बहस
जब छुरा समिति के लोग झाड़ियां काट रहे थे, तभी खरखरा ग्राम समिति के पदाधिकारी भी मौके पर पहुंचे। दोनों पक्षों के बीच कुछ देर के लिए माहौल गरमा गया। छुरा समिति ने स्पष्ट कहा कि यह आस्था का मामला है और रास्ता किसी भी हाल में रोका नहीं जा सकता।
चर्चा के बाद खरखरा ग्राम समिति ने दो दिन का समय मांगा। उनका कहना था कि वे अपने ग्रामसभा में प्रस्ताव रखेंगे और फिर अतिक्रमण हटाने के लिए पूरा सहयोग करेंगे। मौके पर मौजूद लोगों ने भी इस सहमति को स्वीकार कर लिया, ताकि कोई अप्रिय स्थिति न बने।
बीजगार्ग पदाधिकारी भी रहे मौजूद, प्रशासन गायब
घटना के दौरान बीजगार्ग के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे, लेकिन वन विभाग और स्थानीय प्रशासन का एक भी जिम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। यही वजह है कि ग्रामीणों के भीतर नाराजगी साफ नजर आई।
‘दस साल से कब्जा, कोई रोकने वाला नहीं!’
ग्रामीणों का आरोप है कि पिछले दस वर्षों से कब्जा बढ़ता गया लेकिन प्रशासन ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई। आज वहां सैकड़ों परिवार बस चुके हैं। लाखों का कारोबार, संपत्ति खरीद-बिक्री, बिजली कनेक्शन, सब कुछ हो रहा है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि –
- यदि भूमि वन विभाग की है तो बसाहट कैसे हो गई?
- यदि पट्टा दिया गया है तो किस प्रक्रिया से और किसके आदेश पर?
- अगर नहीं दिया गया तो फिर वन विभाग की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी रही?
गढ़िहादेव का ऐतिहासिक महत्व
गढ़िहादेव स्थल को राजा-महाराजाओं के समय से ग्राम देवता का दर्जा प्राप्त है। यहां हर साल पूजा-पाठ, गोठान, दान-पुण्य और अनेक पारंपरिक कर्मकांड होते आए हैं। बुजुर्गों का कहना है कि यह आस्था का ऐसा केन्द्र है, जहां बिना पूजा किये कोई भी बड़ा आयोजन सम्पन्न नहीं माना जाता।
‘आस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं’ – ग्रामीणों की चेतावनी
छुरा नगर समिति ने चेतावनी दी है कि यदि दो दिन के भीतर रास्ता बहाल नहीं किया गया तो ग्रामसभा बुलाकर बड़ा आंदोलन किया जाएगा। उनका कहना है कि- “हम वनभूमि को अतिक्रमण मुक्त कराकर ही रहेंगे। अगर आज चुप रहे तो कल हमारे बच्चों को अपने देवता के दर्शन भी नसीब नहीं होंगे।”
प्रशासन की चुप्पी पर गंभीर सवाल
सवाल यह है कि क्या वन विभाग को इस अतिक्रमण की खबर नहीं थी? यदि थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या गांवों में भूमिहीन लोगों के नाम पर हो रहे कब्जे में राजनीतिक संरक्षण भी शामिल है? या फिर इसमें बड़ी जमीन दलाली का खेल चल रहा है?
ग्रामीणों की मांग
- गढ़िहादेव स्थल तक आवागमन का मार्ग तत्काल बहाल किया जाए।
- अतिक्रमण की भौतिक सत्यापन रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
- यदि कब्जाधारियों को पट्टा जारी हुआ है तो उसकी प्रति दिखाई जाए।
- वनभूमि को अतिक्रमण मुक्त करने की तिथि घोषित की जाए।
फिलहाल…
दो दिन के भीतर ग्रामसभा की बैठक और कब्जा हटाने पर सहमति बनी है। अब देखना होगा कि क्या खरखरा ग्राम समिति अपने वादे पर कायम रहती है, या यह मामला भी प्रशासन की फाइलों में दबकर रह जाएगा।