छुरा (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद शायद यह पहला अवसर है जब शिक्षा विभाग की इतनी बड़ी लापरवाही सामने आई है। कक्षा 8वीं और कक्षा 5वीं की वार्षिक बोर्ड परीक्षा।अप्रैल माह में सम्पन्न हो गई, पूरक परीक्षा भी हो चुकी है, मासिक परीक्षाएँ खत्म हो गईं और अब तिमाही परीक्षा की तैयारी चल रही है। इसके बावजूद आज तक बच्चों को उनकी अंकसूची (मार्कशीट) तक नसीब नहीं हुई है।
यह हालात केवल एक-दो स्कूलों की नहीं, बल्कि पूरे जिले के सैकड़ों स्कूलों और हजारों बच्चों की है। स्थिति यह है कि विद्यार्थियों का स्थायी प्रवेश कक्षा 9वीं और 6वीं में अब तक नहीं हो पाया है। शिक्षा विभाग की इस लापरवाही ने बच्चों के भविष्य पर गहरी चोट पहुंचाई है।

अंकसूची के बिना अस्थाई दाखिले
स्कूलों के शिक्षकों ने मजबूरी में प्राप्तांक रजिस्टर की फोटोकॉपी (फर्द) देकर बच्चों को अस्थाई दाखिला दिलवाया है। यानी बच्चे नाममात्र के विद्यार्थी बने हुए हैं। स्थायी प्रवेश के अभाव में भविष्य में उनकी पढ़ाई और परीक्षा में भागीदारी पर संकट मंडरा रहा है।
पालकों का कहना है कि अगर आने वाले महीनों में भी अंकसूची नहीं मिली तो बच्चों के आगे की पढ़ाई में बड़ी दिक्कत आएगी।
जिम्मेदार अधिकारी बने मूकदर्शक
इस गंभीर मामले में जब जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) जगजीत सिंह से मोबाइल और व्हाट्सएप के जरिए संपर्क किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। संदेश भेजने पर भी कोई जवाब नहीं दिया।
वहीं ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) किशुन मतावले ने कहा – हमने बच्चों की सारी जानकारी जिला कार्यालय को भेज दी है। अंकसूची जिला स्तर से स्कूलों तक नहीं पहुंचाई जा रही है।
यानी, अधिकारी साफ तौर पर जिम्मेदारी टालते दिख रहे हैं।
शिक्षकों को मिला हैरतअंगेज जवाब
छुरा क्षेत्र के शिक्षकों ने जब अंकसूची की समस्या को लेकर DEO से बात की तो उन्होंने उल्टा जवाब दिया। दुर्ग जिले में तो एक भी बच्चे को अंकसूची नहीं मिली है, गरियाबंद जिले की स्थिति बेहतर है।
अधिकारी का यह बयान सवाल खड़ा करता है कि क्या किसी दूसरे जिले की अव्यवस्था को ढाल बनाकर बच्चों का भविष्य दांव पर लगाया जाएगा?
आधा जिला प्रभावित
गरियाबंद जिले के कई संकुल और उनके अंतर्गत आने वाले विद्यालय अंकसूची से वंचित हैं।
इनमें प्रमुख रूप से – खड़मा, कोरासी, मडेली, पीपरछेड़ी, जरगांव, छुरा-, सिवनी, पाटसिवनी, कनसिंघी, चरौदा, सोरिद, कोसमी, पांडुका, साजापाली, नवापारा और छुरा संकुल शामिल हैं।
इन संकुलों के तहत आने वाले प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के हजारों बच्चे आज भी अपनी मेहनत का परिणाम देखने को तरस रहे हैं।
पालक और बच्चे परेशान
गांव-गांव में बच्चे और उनके पालक चिंता में हैं। बच्चों को यह भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर उनका वार्षिक परीक्षा परिणाम कहां अटका पड़ा है। एक पालक ने गुस्से में कहा – हमारे बच्चे मेहनत करके परीक्षा देते हैं, लेकिन सरकार और शिक्षा विभाग इतना भी नहीं कर पा रहा कि समय पर अंकसूची दे दे। अगर यही हाल रहा तो बच्चों का भविष्य अंधेरे में चला जाएगा।
शिक्षा का मज़ाक बना विभाग
यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि गरियाबंद जिले का शिक्षा विभाग पूरी तरह से सुस्त और लापरवाह हो चुका है। बच्चों के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
आज की तारीख में जब सरकार डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लास की बातें करती है, वहीं बच्चे अपनी अंकसूची पाने के लिए भटक रहे हैं। यह न केवल विभागीय गलती है बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर गहरा सवाल है।
आंदोलन की चेतावनी
शिक्षक, पालक और सामाजिक संगठन अब शिक्षा विभाग के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं। अगर जल्द ही अंकसूची स्कूलों में नहीं पहुँचती, तो आने वाले दिनों में यह मुद्दा जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन का रूप ले सकता है।
गरियाबंद जिला शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही ने हजारों बच्चों को भविष्य की अनिश्चितता और मानसिक दबाव की स्थिति में ला खड़ा किया है। यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि देश के भावी कर्णधारों के सपनों से खिलवाड़ है।
अब देखना होगा कि शासन-प्रशासन कब जागता है और बच्चों को उनका हक – वार्षिक परीक्षा की अंकसूची – कब तक उपलब्ध कराता है।