Brekings: राखड़ में धँसी जिंदगी: फ्लाई ऐश के जहरीले दलदल में तड़पती गौमाता, पूँजी के आगे सिस्टम की चुप्पी क्यों?
रायगढ़/पुसौर (गंगा प्रकाश)। राखड़ में धँसी जिंदगी: कोड़ातराई-पुसौर मार्ग पर मंगलवार को जो दृश्य दिखा, वह विकास के नाम पर बिछाए गए मौत के जाल का ताज़ा नमूना था। राखड़ (फ्लाई ऐश) के अनियमित और अवैध निपटान से बने दलदल में एक गौमाता घंटों फँसी रही। मूसलधार बारिश में राखड़ का यह ढेर काले कीचड़ में बदल चुका था, जिसमें बेजुबान जानवर का शरीर धीरे-धीरे धँसता जा रहा था। लेकिन सबसे शर्मनाक दृश्य वह था, जब सैकड़ों वाहन उस रास्ते से गुजरते रहे – अफसर, ठेकेदार, राजनीतिक कार्यकर्ता, तथाकथित सामाजिक नेता – मगर किसी ने भी रुककर उसे बचाने की कोशिश नहीं की।

यह घटना अकेली नहीं है। यह फ्लाई ऐश के जहर और पूँजी के गठजोड़ से पैदा हुए ‘सिस्टम के सड़ांध’ की बड़ी कहानी है। कोड़ातराई से पुसौर तक और रायगढ़ जिले के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में फ्लाई ऐश का निपटान, शासन-प्रशासन और उद्योगपतियों के बीच एक ऐसा समझौता बन गया है, जिसमें कागज़ों पर तो पर्यावरण प्रबंधन की बातें लिखी रहती हैं लेकिन जमीनी हकीकत राख के सिवा कुछ नहीं छोड़ती। NOC और पर्यावरण स्वीकृतियों का खेल सिर्फ सरकारी फाइलों तक सिमटकर रह गया है।
स्थानीय युवाओं ने दिखाई इंसानियत
जब यह खबर गांव में फैली, तब कोड़ातराई के युवाओं ने मौके पर पहुँचकर तीन घंटे तक लगातार मशक्कत कर गौमाता को दलदल से बाहर निकाला। उनकी जी-जान लगाकर की गई कोशिश के बाद भी गाय की हालत बेहद गंभीर थी, क्योंकि राख के कीचड़ ने उसकी आँखों, नाक और थन तक को जकड़ लिया था।
- युवाओं का सवाल था – यह काम आखिर प्रशासन का क्यों नहीं?
- गौशालाओं के नाम पर करोड़ों खर्च करने वाला सिस्टम इन रास्तों पर दम तोड़ती गायों को क्यों नहीं देखता?
‘विकास’ के नाम पर मौत का निपटान
नियमों के अनुसार, फ्लाई ऐश को वैज्ञानिक तरीके से उपयोग में लाकर या निर्धारित स्थलों पर पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप दबाया जाना चाहिए। लेकिन यहाँ उद्योगपति और ट्रांसपोर्टर खुलेआम नियमों को कुचल रहे हैं।
- राख को रेत-मिट्टी से ढँककर गायब दिखा दिया जाता है।
- खेतों, सड़कों के किनारे, नदी-नालों तक में ट्रॉली से राख फेंक दी जाती है।
- प्रशासनिक निरीक्षण महीनों से नदारद है।
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के मौसम में यह राख बंधी कीचड़ में बदलकर खतरनाक दलदल बन जाती है। इससे मवेशी ही नहीं, राहगीरों और छोटे बच्चों तक के लिए जानलेवा खतरा बना हुआ है।
‘लिफाफा तंत्र’ की हकीकत
यह पूरा खेल लालच, शोषण और ‘लिफाफा तंत्र’ का नतीजा है। पर्यावरण विभाग से लेकर स्थानीय प्रशासन तक सबकुछ जानते हुए भी चुप है।
क्यों?
क्योंकि इन राख के ट्रकों के पीछे एक पूरा मुनाफे का तंत्र है, जिसमें कमीशन से लेकर ठेकेदारी और अधिकारियों की सहमति तक शामिल है।
एक ग्रामीण नेता ने कहा, “जब तक सिस्टम का पेट भरा जा रहा है, तब तक कोई सवाल नहीं पूछा जाता। लेकिन ये राख एक दिन हम सबकी साँसों को भी राख कर देगी।”
प्रशासन की चुप्पी खतरनाक
सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या प्रशासन इंतजार कर रहा है कि इस राख के दलदल में कोई इंसान भी मरे?
यदि इस दलदल में कोई बच्चा या बाइक सवार फँस जाए, तो क्या जिम्मेदार विभाग और अधिकारी तब भी लापरवाह बने रहेंगे? या फिर यह दलदल किसी VIP के खेत या बंगले तक नहीं पहुँचा, इसलिए सब मौन हैं?
सिस्टम के सड़ने की कहानी
यह खबर सिर्फ एक गाय के तड़पने की नहीं है, बल्कि एक सड़े हुए सिस्टम का पर्दाफाश है। जब पर्यावरण नष्ट हो रहा हो, खेत बंजर बन रहे हों, जानवर मर रहे हों और जिम्मेदार लोग चुप बैठे हों, तब यह समझ लेना चाहिए कि यह सिर्फ राखड़ नहीं, ज़िंदगी का भी अंतिम संस्कार है।
अब वक्त है कि –
- ✅ फ्लाई ऐश डंपिंग पर कठोर निगरानी हो
- ✅ प्रत्येक वाहन, ट्रॉली और ठेकेदार का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाए
- ✅ NOC और पर्यावरण क्लीयरेंस की खुली समीक्षा हो
- ✅ जानवरों की मौत को संज्ञान में लेकर FIR दर्ज की जाए
वरना, यह जहरीली राख ज़मीन और हवा ही नहीं, हमारी मानवता तक को निगल जाएगी।