रायपुर (गंगा प्रकाश)। सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। पुराणों में सभी कार्तिक माह को आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा संचय के लिये उचित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और भगवान शंकर की आराधना की जानी चाहिये। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि शास्त्रों में बारहों महीनों में कार्तिक महीने को आध्यात्मिक एवं उर्जा संचय के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वैसे तो साल भर में बारह पूर्णिमा होती है लेकिन अधिकमास या मलमास को भी जोंड़ दिया जाये तो कुल मिलाकर 13 पूर्णमायें हो जाती हैं लेकिन इनमें कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। कार्तिक महीने का यह सबसे अन्तिम दिन और कार्तिक पूर्णिमा आज है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान , दान के साथ साथ दीपदान का पुण्य अन्य दिनों के अपेक्षा कई गुना अधिक प्राप्त होता है। स्वयं नारायण ने भी कहा है कि महिनों में , मैं कार्तिक माह हूंँ। कार्तिक मास परम पावन होता है। इस महीने में किये गये पुण्य कर्मों का अनन्त गुणा फल मिलने की मान्यता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखना बेहद शुभ माना जाता है , धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि स्वयं विष्णुजी ने ब्रह्माजी को , ब्रह्माजी ने नारद मुनि को और नारदजी ने महाराज पृथु को कार्तिक मास का महत्व बताया। इस माह की त्रयोदशी , चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों में अति पुष्करिणी कहा है। मान्‍यता है कि इस दिन स्‍वर्ग से देवतागण भी आकर गंगा में स्‍नान करते हैं , इसलिये इस दिन गंगा स्‍नान जरूर करें। अगर आपके लिये यह कर पाना संभव ना हो तो घर पर ही स्‍नान के जल में गंगाजल मिलाकर नहा लें। स्कन्द पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी माह के पूर्ण फल का भागी हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत और पूजन करके बछड़ा दान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं वहीं दीपदान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी , सरोवर या कुंड में स्नान और दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान और दान दस यज्ञों के समान माना गया है। यदि आपके घर के पास नदी नहीं है तो आप किसी मंदिर में जाकर दीपदान करें , इससे आपकी परेशानियां दूर होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। मान्यता है कि इस दिन गाय , हाथी , घोड़ा , रथ और घी का दान करने से संपत्ति बढ़ती है और भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों दूर होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वालों को इस दिन हवन जरूर करना चाहिये और किसी जरुरतमंद को भोजन कराना चाहिये। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में या तुलसी के पास दीप जलाने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार देवता अपनी दिवाली कार्तिक पूर्णिमा की रात को ही मनाते हैं , इसलिये यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिवा , सम्भूति , प्रीति , संतति , अनुसुइया समेत क्षमा नामक छह तपस्विनी कृतिकाओं का पूजन करने का विशेष महत्व है , शाम को चंद्रमा निकलने पर इनका पूजन करना चाहिये। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हें कार्तिक की माता माना गया है , इनकी पूजा करने वालों के घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती।

आज देव दीपावली

इस दिन महादेव ने त्रिपुरासूर नामक राक्षस का संहार किया था जिससे देवगण बहुत प्रसन्न हुये। इस दिन भगवान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेकों नामों में से एक है। इसलिये इस पूर्णिमा का एक नाम त्रिपुरी पूर्णिमा भी है। त्रिपुरासुर के वध होने की खुशी में सभी देवता स्वर्गलोक से उतरकर काँशी में दीपावली मनाते हैं। तभी से इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा कांँशी में गंगा नदी के घाटों पर दीपदान कर दीपावली मनायी जाती है। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने धर्म , वेदों की रक्षा के लिये मत्स्यावतार धारण किया था। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु इस मास में मत्स्य रूप में जल में विराजमान रहते हैं और आज ही के दिन मत्स्य स्वरूप को छोंड़कर वापस बैकुंठ चले जाते हैं। इसी दिन देवी तुलसी भी बैकुंठधाम गयी थी। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सोनपुर में गंगा गंडकी के संगम पर गज और ग्राह का युद्ध हुआ था। गज की करुणामयी पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने ग्राह का संहार कर भक्त की रक्षा की थी। इस वजह से देवताओं ने स्वर्ग में दीपक जलाये थे। तभी से देवताओं की दीपावली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीपदान किया जाता है। दीपदान करने से सभी प्रकार की मनोकामनायें पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली परेशानियाँ भी दूर होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस दिन गौ , अश्व और घी आदि के दान से संपत्ति में बढ़ोतरी होती है। इस दिन सत्यनारायणजी की कथा , विष्णुपुराण , विष्णु सहस्रनाम , कनकधारा का पठन , श्रवण करने वाले जातकों को मोक्ष प्राप्त होता है। इस दिन सरसों का तेल , तिल , काले वस्त्र किसी जरूरतमंद को दान करना चाहिये , ऐसा करने से आपको पुण्य फल प्राप्त होगा। ऐसा करने से आप कई क्षेत्रों में सफलता अर्जित करेंगे , साथ ही सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा की शाम को तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाकर तुलसी माता का स्मरण करते हुये पौधे के चारो तरफ परिक्रमा करने से भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और आर्थिक समस्यायें दूर होती हैं।

देव दीपावली की पहली कथा

देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है। मान्यता है कि एक बार विश्वामित्रजी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती देते हुये अपने तप के बल से त्रिशंकू को सशरीर स्वर्ग भेज दिया। यह देखकर देवता अचंभित रह गये , क्योंकि विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी। इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे , जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा। उनको यह हार स्वीकार नहीं थी तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी , इससे देवता और भी भयभीत हो गये। उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिये उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी। अंतत: देवता सफल हुये और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गये , और उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी। इससे सभी देवता प्रसन्न हुये और उस दिन उन्होंने दिवाली मनायी जिसे देव दीपावली कहा गया।

गुरूनानक जयंती आज

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के पहले गुरु यानि गुरु नानकदेव का जन्म हुआ था। इस वजह से भी सिख धर्म के अनुयायी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पर्व प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव के रूप मनाते हैं। इस अवसर पर गुरुद्वारों में अरदास की जाती है और बहुत बड़े स्तर पर जगह-जगह पर लंगर किया जाता है।

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