रायपुर (गंगा प्रकाश)- हिन्दू धर्म में सबसे शुभ और पुण्यदायी और सभी व्रतों में श्रेष्ठ देवउठनी एकादशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष यानि आज मनायी जाती है। इसे हरिप्रबोधिनी , देवोत्थान , देवप्रबोधिनी और ठिठुअन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये जाज्वल्य नगरी जिला मुख्यालय के मंदाकिनी तिवारी ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस मनोरथ का फल त्रिलोक में भी ना मिल सके , वो देवोत्थान एकादशी का व्रत कर प्राप्त किया जा सकता है। देवोत्थान एकादशी से पूर्णिमा तक भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का विवाहोत्सव का पर्व मनाया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही चतुर्मास समाप्त हो रहे हैं और शुभ व मांगलिक कार्य शुरू होंगे। शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन ही सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने बाद योग निद्रा से जागते हैं और पुन: सृष्टि का कार्यभार सम्हालते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी विवाह का धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है। यह व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने के साथ साथ सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। इस एकादशी का फल अमोघ पुण्यफलदायी बताया गया है। इस दिन वैष्णवों के साथ साथ स्मार्त श्रद्धालु भी बड़ी आस्था के साथ व्रत रखते हैं , इस दिन उपवास रखना बेहद शुभ माना जाता है वहीं निर्जल या जलीय पदार्थों पर उपवास रखना विशेष फलदायी है , एकादशी व्रत को व्रतराज की उपाधि दी गई है क्योंकि यह सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ है और इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है। पूरे वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं। लेकिन अगर किसी वर्ष मलमास है तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। कहा जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी के दिन से श्रीहरि क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं। चतुर्मास में उनके विश्राम करने तक कोई भी शुभ कार्य नही किये जाते हैं। चातुर्मास के समापन कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवउठनी-उत्सव होता है , इस एकादशी को ही देवउठनी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु को जगाने का आह्वान कर भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती है।
तुलसी विवाह का है विधान
देवउठनी एकादशी के दिन श्रद्धालुओं द्वारा घरों में चाँवल आटे से चौक बनाया जाता है। तुलसी माता चौरा के चारो ओर गन्ने का मंडप बनाकर विधि विधान से पूजन किया जाता है। इस दिन तुलसी माता को महंदी , मौली धागा , फूल , चंदन , सिंदूर , सुहाग के सामान की वस्तुयें , अक्षत , मिष्ठान और पूजन सामग्री आदि भेंट की जाती हैं। तुलसी और शालिग्राम का धूमधाम से विवाह कराया जाता है। आज के दिन तुलसी , शालिग्रामजी की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह का आयोजन करने पर एक कन्यादान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। भगवान शालिग्राम ओर माता तुलसी के विवाह के पीछे की एक कहानी प्रचलित है। दरअसल शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी। शंखचूड़ को परास्त करने के लिये वृंदा के सतीत्व को भंग करना जरूरी था। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और उसके बाद भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया। इस छल के लिये वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप में परिवर्तित होने का शाप दे दिया। उसके बाद भगवान विष्णु शिला रूप में तब्दील हो गये और उन्हें शालिग्राम कहा जाने लगा। फिर वृंदा ने तुलसी के रूप में अगला जन्म लिया था , भगवान विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि बिना तुलसी दल के उनकी पूजा कभी संपूर्ण नहीं होगी। भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है , उसी तरह भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है। यह भी मान्यता है कि वृँदा के सती होने के बाद उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ था। इसके बाद तुलसी पौधे के साथ शालिग्राम के विवाह रचाने की परंपरा शुरु हुई।
इन उपायों से होता है लाभ
देवउठनी एकादशी के शुभ दिन पर भगवान श्रीहरि विष्णु का दूध और केसर से अभिषेक करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर कामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। जो लोग आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं वे इस दिन पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें और शाम के समय पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलायें। ऐसा करने से हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है। इसी तरह से धन की कमी को दूर करने के लिये देवउठनी एकादशी पर श्रीहरि विष्णु को पैसे अर्पित कर उन्हें अपने पर्स में रख लें। ऐसा करने से व्यक्ति को धन लाभ होता है , साथ ही कभी भी धन की कमी नहीं आती है। देवउठनी एकादशी के शुभ दिन व्यक्ति को भगवान विष्णु को तुलसी पत्र के साथ सफेद रंग की चीज का भोग लगायें। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
पंच तीर्थ महास्नान की शुरुआत
देवउठनी एकादशी से पंच तीर्थ महास्नान पर्व भी शुरू होगा जो कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा। यह पर्व उन लोगों के लिये बेहद खास होता है जो पूरे कार्तिक महीने में सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं। मान्यता है कि इन पांच दिनों में व्रत रखने से धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष की प्राप्ति होती है।पद्मपुराण के अनुसार देवउठनी एकादशी का व्रत करने से और विधि-विधान से पूजा करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और एक सौ राजसूय यज्ञ करने जितना फल मिलता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप दूर होते हैं और साथ ही मोक्ष भी मिलता है।