Cgnews:19.87 लाख की मिट्टी सड़क! मनरेगा में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश — सरपंच, सचिव और अफसरों की साठगांठ से सरकारी योजना लुटी
कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ सरकार जहां एक ओर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है, वहीं दूसरी ओर ग्राम पंचायतों में ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाएं किस तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण ग्राम पंचायत सिंघिया से सामने आया है। मनरेगा योजना के तहत स्वीकृत 19.87 लाख की सड़क निर्माण परियोजना में केवल मिट्टी डालकर काम पूरा मान लिया गया, और मुरुम, रोलर, पानी छिड़काव जैसे मूलभूत कार्यों को दरकिनार कर सरकारी पैसे की खुली लूट मचाई गई।
मनरेगा में ‘मिट्टी-मुरुम’ घोटाला: कागजों में शानदार सड़क, ज़मीन पर कीचड़
सिंघिया पंचायत के मुड़धोवा (भदरापारा) में ग्रामीणों को गांव से मुख्य सड़क तक सुगम आवागमन उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2023-24 में मनरेगा के तहत 19.87 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति मिली थी। 27 अप्रैल 2023 को निर्माण कार्य का शुभारंभ भी कर दिया गया था। इस कार्य की तकनीकी जिम्मेदारी तकनीकी सहायक अमितोष राठौर को दी गई थी।
लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि सारा काम सिर्फ कागजों में किया गया। मौके पर केवल मिट्टी डाली गई, मुरुम जो डाला जाना था, वो सड़क किनारे ढेर में अब भी पड़ा हुआ है। रोलर का उपयोग नहीं हुआ, पानी का छिड़काव नहीं हुआ, जिससे बारिश में यह रास्ता कीचड़युक्त होकर आवागमन के लिए बाधा बनता है।
ग्रामीणों की आवाज़:
“हमने देखा, सड़क पर सिर्फ मिट्टी डाली गई। मुरुम सिर्फ लाकर किनारे फेंक दिया गया। बरसात में ये रास्ता दलदल बन जाता है, पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है।”
— ग्राम मुड़धोवा निवासी
फर्जी हाजिरी और मजदूरों के नाम पर हेराफेरी
जांच में यह भी सामने आया कि रोजगार सहायक मदन आंडिल द्वारा बड़ी संख्या में फर्जी मस्टररोल तैयार किए गए। कार्य स्थल पर कभी उपस्थित न रहने वाले रिश्तेदारों और परिचितों के नाम पर हाजिरी भरी गई और फिर उनके खातों से मजदूरी राशि आहरित कर ली गई।
कई असली मजदूरों को नाम मात्र की राशि देकर, उनके नाम से बड़ी धनराशि निकाली गई। यह सीधा मजदूरों के अधिकारों पर डाका है।
प्रधानमंत्री आवास योजना में भी फर्जी जियो टैगिंग का मामला
मनरेगा ही नहीं, पंचायत में प्रधानमंत्री आवास योजना में भी गड़बड़ी सामने आई है। आरोप है कि रोजगार सहायक ने एक लाभार्थी को बिना घर बनाए ही 1.20 लाख रुपये की राशि दिला दी, जिसमें पंचायत के जिम्मेदारों की मिलीभगत उजागर हुई है।
फर्जी जियो टैगिंग कर आवास योजना की किस्तें पास कर दी गईं, जबकि मौके पर कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ।
तकनीकी सहायक की लापरवाही: बिना निरीक्षण, पूरा कर दिया मूल्यांकन
तकनीकी सहायक द्वारा न तो कार्यस्थल का नियमित निरीक्षण किया गया और न ही गुणवत्ता की जांच की गई। बिना स्थल पर पहुंचे ही निर्माण कार्य का मूल्यांकन कर उसे पूर्ण घोषित कर दिया गया। इस लापरवाही का सीधा लाभ फर्मों और पंचायत पदाधिकारियों को मिला, जबकि नुकसान आम ग्रामीणों को झेलना पड़ा।
डिस्प्ले बोर्ड पर भी कार्य की लंबाई-चौड़ाई, लागत व पूर्णता तिथि जैसी अनिवार्य जानकारी गायब पाई गई।
कौन-कौन घेरे में?
- तत्कालीन सरपंच
- पंचायत सचिव
- रोजगार सहायक मदन आंडिलत
- कनीकी सहायक अमितोष राठौर
चारों पर भ्रष्टाचार, सरकारी धन की हेराफेरी, कर्तव्य में लापरवाही और फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।
ग्रामीणों की मांग: निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई
गांव के जागरूक नागरिकों और पंचों ने इस पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की है। वे चाहते हैं कि भ्रष्टाचारियों पर एफआईआर दर्ज कर कड़ी कार्रवाई हो और निर्माण कार्य का पुनर्मूल्यांकन कर पुनर्निर्माण कराया जाए।
क्या कहता है प्रशासन?
अब तक प्रशासन की ओर से इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। स्थानीय मीडिया में खबर आने के बावजूद दोषी अधिकारी बेखौफ हैं। अगर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है।
निष्कर्ष:
मनरेगा जैसी जनहितैषी योजना, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है, भ्रष्टाचार के कारण अपने लक्ष्य से भटक रही है। सिंघिया पंचायत का मामला छत्तीसगढ़ में ग्राम स्तर पर हो रहे योजनागत भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण है।
अब ज़रूरत है कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर तत्काल कार्रवाई करे, ताकि ग्रामीणों का सरकार और जनकल्याणकारी योजनाओं पर विश्वास बना रहे।