Brekings: छुरा में ज़मीन की दलाली चरम पर: शहर से लेकर गांव तक जमीनों की लूट, जनसंख्या से ज्यादा हो रही रजिस्ट्री

 

छुरा (गंगा प्रकाश)। छुरा में ज़मीन की दलाली चरम पर: गरियाबंद जिले के छुरा तहसील में इन दिनों ज़मीन की अंधाधुंध खरीद-फरोख्त चर्चा का विषय बनी हुई है। एक ओर जहां किसान अपनी पुश्तैनी ज़मीनें दलालों के झांसे में आकर औने-पौने दामों पर बेच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नगर क्षेत्र की स्थिति भी विस्फोटक हो चुकी है। यहां जनसंख्या से कई गुना अधिक ज़मीनों की रजिस्ट्री हो चुकी है, जिससे साफ है कि छुरा अब एक भूमाफिया-प्रभावित क्षेत्र बनता जा रहा है।

गांव-गांव में घुस चुके हैं ज़मीन दलाल

छुरा क्षेत्र में अब भूमाफिया किसी खास समुदाय या वर्ग की ज़मीनों पर नहीं, बल्कि हर उस किसान की ज़मीन पर निगाहें गड़ाए हुए हैं, जो थोड़ी भी आर्थिक परेशानी में हो। छोटे-छोटे दलाल अब गांव-गांव में पहुंच कर किसानों को अनुबंध के नाम पर फांस रहे हैं। उन्हें यह बताया जा रहा है कि ज़मीन बेचकर वे शहर में मकान ले सकते हैं या बच्चों का भविष्य सुधार सकते हैं। लेकिन ज़्यादातर मामलों में ये अनुबंध बड़े भू-धंधेबाजों तक पहुंचते हैं, जो बाद में ज़मीन पर कब्जा जमा लेते हैं।

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एक-एक चक में 4 से 5 एकड़ ज़मीन का सौदा करना अब सामान्य बात हो चुकी है। रजिस्ट्री कार्यालयों में रोजाना दर्जनों रजिस्ट्रियाँ हो रही हैं, जिनमें से कई में बाज़ार मूल्य से बहुत कम दाम दर्शाए जाते हैं।

छुरा नगर बना ज़मीन कारोबार का गढ़

छुरा नगर क्षेत्र की स्थिति विशेष चिंता का विषय है। जनसंख्या के अनुपात में जितनी रजिस्ट्री हो रही है, वह सामाजिक और कानूनी संतुलन को बिगाड़ रही है। उदाहरण के लिए – नगर/ग्रामीण में रहवासी संख्या अभी लगभग 8 से 10 हज़ार के बीच है, लेकिन बीते दो वर्षों में नगर/ग्रामीण के नाम पर 50 हज़ार से अधिक लोगों की ज़मीन रजिस्ट्री दस्तावेजों में दर्ज हो चुकी है — यानि कि जनसंख्या से ढाई गुना ज़्यादा। यह दिखाता है कि बाहरी खरीदारों का सीधा धंधा छुरा में चल रहा है।

अनुबंध की आड़ में ज़मीन की लूट

ज़मीन सौदे के लिए सबसे ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है “एग्रीमेंट टू सेल” यानी बिक्री अनुबंध का। किसान को एडवांस में थोड़ा पैसा देकर अनुबंध करवा लिया जाता है और बाद में मुख्य खरीदार – जो अक्सर नगर या अन्य जिलों के प्रभावशाली लोग होते हैं – रजिस्ट्री करवाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया न ग्रामसभा की अनुमति लेती है, न राजस्व विभाग से विधिवत सत्यापन।

कानूनों का उल्लंघन: राजस्व विभाग मौन

छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 के तहत हर ज़मीन सौदे में सत्यापन और अनुमोदन की प्रक्रिया अनिवार्य है। अनुबंध की आड़ में बार-बार जमीन हस्तांतरण कर इस कानून का खुला उल्लंघन हो रहा है। रजिस्ट्री कार्यालयों में दस्तावेजों की जांच के बिना रजिस्ट्री कर दी जा रही हैं, जिससे ज़मीन की पारदर्शिता पूरी तरह खत्म हो चुकी है।

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भूमि से अधिक लाभ: दलालों का सुनियोजित धंधा

ज़मीन अब जीवनयापन का साधन नहीं, दलाली और मुनाफा कमाने का स्रोत बन चुकी है। किसान से कम कीमत में खरीदी गई ज़मीन कुछ ही महीनों में तीन से चार गुना दाम पर बेची जाती है। यह खेल इतना संगठित हो चुका है कि अब ज़मीन की माप, नक्शा, अनुबंध और रजिस्ट्री तक के दलाल अलग-अलग मौजूद हैं।

जनहित में आवश्यक कार्रवाई की मांग

स्थानीय सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि:

  • नगर/ग्रामीण की ज़मीनों पर हो रहे अनियमित सौदों की जांच की जाए
  • किसानों से अनुबंध के नाम पर ठगी करने वालों पर कार्रवाई हो
  • रजिस्ट्री प्रक्रिया को पारदर्शी और ऑनलाइन सत्यापित किया जाए
  • ज़िला प्रशासन जनसंख्या और भूमि रजिस्ट्री के असंतुलन पर स्पष्ट रिपोर्ट जारी करे

निष्कर्ष:

छुरा तहसील में ज़मीन अब सिर्फ़ खेती का साधन नहीं रही, यह अब दलालों और बड़े निवेशकों के लिए मुनाफे की खान बन चुकी है। यदि प्रशासन ने समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया, तो आने वाले वर्षों में छुरा जैसे छोटे नगरों की सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक संरचना पूरी तरह से बिगड़ सकती है।

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