(गंगावतरण दिवस विशेष) 

रायपुर (गंगा प्रकाश)। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पोषक मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगाजी में डुबकी लगाने का बहुत अधिक महत्व है। इसके अलावा इस दिन मां गंगा की पूजा और आरती भी की जाती है। ऐसा करने से व्यक्ति को समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और उसके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।‌ गंगा दशहरा का महत्व धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो इस दिन मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं , इसलिये इसे मनाया जाता है जो इस बार आज 16 जून रविवार को है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये श्रीसुदर्शन संस्थानम् , पुरी शंकराचार्य आश्रम / मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने बताया कि गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी हैं। इसलिये आज के दिन गंगाजी में खड़े होकर अपनी पूर्व में की हुई गलतियों के लिये क्षमा मांगने के साथ – साथ भविष्य में कोई भी बुरा कार्य नहीं करने का संकल्प लेना चाहिये। पौराणिक कथा में गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने के बारे में विस्तार से बताया गया है। राजा भगीरथ ने कठोर तप करके मां गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने की प्रार्थना की थी। गंगा भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु दोनों को ही प्रिय हैं। गंगा दशहरा के अवसर पर आप मां गंगा के साथ भगवान विष्णु और भगवान भोलेनाथ की पूजा करके दोनों देवों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। गंगा दशहरा पर स्नान दान का जितना महत्व है , उतना ही यह ​अवसर आपको जल संरक्षण और उसकी पवित्रता को बनाये रखने का भी संदेश देता है। गंगा दशहरा के अवसर पर भगवान शिव की नगरी काशी / हरिद्वार / त्रिवेणी संगम प्रयागराज / गढ़मुक्तेश्वर आदि स्थानों पर मां गंगा की पूजा की जाती है और स्नान दान किया जाता है। इस अवसर पर गंगा महाआरती भी होती है , इस दिन गंगा में स्नान एवं दान करने से प्राणी के सब दुःख दूर हो जाते हैं और दैहिक / मानसिक एवं वाणी से जुड़े सभी पाप मिट जाते हैं।

बन रहा खास योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष गंगा दशहरा पर सौ वर्षों बाद दुर्लभ योग का निर्माण होने जा रहा है। इस वर्ष गंगा दशहरा पर सर्वार्थ सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग , हस्त नक्षत्र और रवि योग का संयोग बन रहा है। अगर इन शुभ योगों में कोई कार्य किया जाये तो ये अति शुभ साबित हो सकते हैं। इसके अलावा इन शुभ संयोग के प्रभाव से मेष , मिथुन , सिंह , तुला और कुंभ  राशि वाले जातकों को विशेष लाभ मिलेगा।

गंगा दशहरा का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम सब दैनिक जीवन में जाने-अनजाने में कभी-कभी ऐसा कर्म कर देते हैं , जिससे पाप लगता है। ऐसे में इन पापों से मुक्ति के लिये गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने के पश्चात  मां गंगा की आराधना करनी चाहिये। मान्यता है कि इस दिन किये गये दान से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और हमारे भौतिक सुख साधनों में वृद्धि होती है।

गंगा दशहरा पूजा विधि उपाय

गंगा दशहरा के दिन सुबह पवित्र नदी में स्नान करें , यदि संभव ना हो तो घर पर बाल्टी में गंगाजल की कुछ बूंद डालकर स्नान करें। आज के दिन स्नान करने के बाद मंदिर में शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक करें। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि बरकरार रहती है। यदि आप पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है तो गंगा दशहरा के दिन शाम को अपने लंबाई के काले धागे लें। इस धागे को पानी वाले नारियल में लपेट लें और इसे नदी के बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसे प्रवाहित करते वक्त मन में मां गंगा का स्मरण करें और पीछे मुड़कर ना देखें। ऐसा करने से आपको जल्द ही कर्ज से छुटकारा मिलेगा। यदि आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई है तो गंगा दशहरा के दिन पीपल का पेड़ लगायें ऐसा करने से मां गंगा प्रसन्न होती हैं और घर हमेशा धन धान्य से भरा रहता है।

गंगा दशहरा कथा

कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को श्राप दे दिया था जिससे वे भस्म हो गये थे। उन लोगों ने कपिल मुनि पर घोड़ा चोरी का झूठा आरोप लगाया था। अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म ​होने की खबर ने राजा सगर को स्तब्ध और शोकाकुल कर दिया। राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष प्रदान कराने के लिये उनके ही कुल के राजा भगीरथ ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिये तपस्या की। ब्रह्म देव ने राजा भगीरथ को वर मांगने को कहा तो उहोंने मां गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराने का वर मांगा। ब्रह्म देव ने कहा कि इसके लिये तुम भगवान शिव को प्रसन्न करो , वे ही गंगा के वेग और भार को वहन कर सकते हैं। फिर भगीरथ ने अपने कठोर तप से भगवान महादेव को प्रसन्न किया। उन्होंने राजा भगीरथ को वर मांगने को कहा , तो राजा ने ब्रह्माजी की बात बतायी और शिवजी तैयार हो गये। स्वर्ग लोक में बहने वाली गंगा को ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से छोड़ा तो वे बड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ीं। इस बीच भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट कर बांध लिया। अब समस्या यह हो गई कि वह शिव की जटाओं से बाहर ही नहीं निकल सकी। फिर राजा भगीरथ ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया और मां गंगा को अपनी जटाओं से होते हुये पृथ्वी पर अवतरित होने का आशीर्वाद प्रदान करने का निवेदन किया। इसके बाद मां गंगा शिव की जटाओं से निकलकर पृथ्वी पर अवतरित हुईं।आगे आगे राजा भगीरथ और उनके पीछे पीछे मां गंगा पृथ्वी पर प्रवाहित होने लगीं। मां गंगा के स्पर्श से राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ और उनको मोक्ष प्राप्त हुआ। तब से ही मां गंगा पृथ्वी पर बहने लगीं और उनके स्पर्श से मनुष्य अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता आ रहा है।

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