– या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरीरूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मांँ दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इस अष्टमी को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस अष्टमी तिथि के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि नवरात्रि के आठवें दिन आज महागौरी की आराधना , उपासना का विधान है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं और वह पवित्र एवं अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। दुर्गाष्टमी देवी दुर्गा की उपासना करने के सर्वश्रेष्ठ दिनों में से एक माना जाता है। महागौरी की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाता है। मां के नौ रूप और दस महाविद्यायें सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं , लेकिन भगवान शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है , इसलिये देवी दुर्गा के सभी भक्तों को इस दिन मांँ दुर्गा की उपासना करनी चाहिये। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायी है। ज्योतिष में इनका सम्बन्ध शुक्र नामक ग्रह से माना जाता है , विवाह सम्बन्धी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक होती है। कहा जाता है कि मां महागौरी माता की पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मन में विचारों की शुद्धता आती है। मां महागौरी हर प्रकार की नकारात्मकता को दूर करती हैं। जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से नौ दिन तक उपवास नहीं रख पाते हैं उनके लिये नवरात्र में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखने का विधान है। इससे नौ दिन व्रत रखने के समान फल मिलता है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं और वह पवित्र एवं अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। इनका ध्यान , पूजन , आराधना भक्तों के लिये सर्वविध कल्याणकारी है इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति होती है। अष्ट वर्षा भवेत् गौरी अर्थात इनकी आयु हमेशा आठ वर्ष की ही मानी गयी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि भी श्वेत है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। इनकी अस्त्र त्रिशूल है। इनका वाहन वृषभ है इसलिये इन्हें वृषारूढ़ा और श्वेत वस्त्र धारण की हुई महागौरी को श्वेताम्बरा भी कहा जाता है। महाअष्टमी के दिन इन्हीं की पूजा का विधान है। मांँ महागौरी की उपासना सफेद वस्त्र धारण कर करना चाहिये। मांँ को सफेद फूल , सफेद मिठाई अर्पित करना चाहिये। करूणामयी , स्नेहमयी , शांत तथा मृदुल स्वभाव की मां महागौरी की चार भुजायें हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बायें हाथ में शिव का प्रतीक डमरू है। डमरू धारण करने के कारण इन्हें शिवा भी कहा जाता है। मां के नीचे वाला बायां हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वर-मुद्रा में हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है , इनकी आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं , समस्त पापों का नाश होता है , सुख-सौभाग्य की प्राप्‍ति होती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है। अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाने की पंरपरा है। कन्यायें माँ दुर्गा का साक्षात स्वरूप होती हैं , इसलिये आज अष्टमी के दिन आठ कुँवारी कन्याओं के पूजन , भोजन कराने का विशेष महत्व है लेकिन कहीं कहीं कुँवारी भोजन नवमी के दिन भी कराया जाता है। कन्याओं की पूजा करके काले चने , हलुआ और पुड़ी से भोग लगाया जाता है। इस दिन कई लोग नवरात्रि व्रत का समापन भी करते हैं। अष्टमी और नवमी पर कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें भोजन कराया जाता है। कन्या पूजन के साथ ही ध्यान रखें कि कन्याओं को भोजन कराते समय उनके साथ एक बालक को जरूर बैठाकर भोजन करायें। बालक को बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है। देवी मांँ के साथ भैरव की पूजा जाने की बेहद अहम मानी जाती है। कन्या की पूजा करने के बाद कुछ दक्षिणा भी दी जाती है। इस दिन महिलायें अपने सुहाग के लिये देवी माँ को चुनरी भेंटकर विधिपूर्वक पूजन करती है। माना जाता है कि माता सीता ने श्रीराम की प्राप्ति के लिये महागौरी की पूजा की थी। 

महागौरी की कथा

श्रुतिस्मृति कथा पुराणों के अनुसार मां महागौरी , देवी पार्वती का एक रूप है। देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। इनको अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। तब मां ने पार्वती रूप में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या की थी तथा शिव जी को पति स्वरूप प्राप्त किया था। अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल , फल और पत्तों का आहार लेती थीं। बाद में माता ने केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया। शिव जी की प्राप्ति के लिये कठोर तपस्या करते हुये मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला हो गया था। जब शिवजी ने गंगाजल से इनके शरीर को धोया तब गौरी जी का शरीर गौर व दैदीप्यमान हो गया तभी से ये देवी महागौरी के नाम से विख्यात हुईं। आज के दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है।

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