व्रत त्यौहार-खरमास के दौरान त्यौहार परंपरागत ढंग से ही मनेंगे, खरमास में ही मनेगी होली
गरियाबंद/फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)। होलाष्ठक के तुरंत बाद इस बार होलाष्ठक के साथ खरमास का संयोग भी बन रहा है। इसके चलते 40 दिन तक मांगलिक कार्य नहीं हो सकेंगे। हालांकि इस दौरान आने वाले पर्व एवं त्यौहार परंपरागत ढंग से मनाए जाएंगे। उन पर इस संयोग का कोई असर नहीं होगा। होलाष्ठक 6 मार्च से शुरू होकर होलिका दहन 13 मार्च तक रहेगा। अगले दिन 14 मार्च तारीख से खरमास शुरू हो जाएगा। इसे मलमास भी कहा जाता है। होलिका दहन पर इस बार भी अशुभ मानी गई भद्रा का साया रहेगा। 13 मार्च को सुबह 10.35 बजे से रात 11.26 बजे तक भद्रा काल रहेगा। जिसके कारण शुभ मुहूर्त रात 11.26 से 12.26 बजे तक केवल एक घंटे का समय ही श्रेष्ठ रहेगा। ज्योतिशाचार्यो ने बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 13 मार्च को सुबह 10.35 बजे से शुरू होकर 14 मार्च को दोपहर 12.23 बजे तक रहेगी। 14 मार्च को धुरेड़ी मनाई जाएगी। इस दिन चंद्रग्रहण रहेगा, लेकिन यह केवल उपछाया ग्रहण होगा, जो भारत में दिखाई नहीं देगा और इसका कोई असर नहीं होगा। मान्यताओं के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती है। यह क्रोधी स्वभाव की होती है और जब यह पृथ्वी लोक में होती है, तो अनिश्ट करती है। यह इस बार मृत्यु लोक में है, इसलिए भद्राकाल में शुभ में कार्यो को वर्जित किया गया है। भद्रा रहित प्रदोश व्यापिनी पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन उत्तम माना गया है। धर्म सिंधु के अनुसार भद्रा मुख में किया होलिका दहन अनिष्टकारी होता है। होलाष्ठक की 8 रात्रियों में तंत्र, मंत्र, यंत्र की साधना का महत्व माना जाता है। सिद्ध रात्रि, काल रात्रि व मोह रात्रि जैसी रात्रियां अधिक प्रभावशाली होती है। होलिका दहन के साथ फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलाष्ठक तो समाप्त हो जाएंगे, परंतु इसके साथ ही चैत्र मलमास के 30 दिन भी शुभ कार्य वर्जित होते है।