
अरविन्द तिवारी
जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश)- ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज सृष्टि की संरचना एवं पञ्चीकृत पञ्चभूतों की समुत्पत्ति के संबंध में वेदादि शास्त्र सम्मत विज्ञान की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि काल योग से क्षुब्ध प्रकृति में स्वप्रकाश ज्ञान स्वरूप सर्वेश्वर पुरुषोत्तम पुरूष रुप से प्रतिफलित होता है, तदनन्तर पुराषाधिष्ठित क्षुब्ध प्रकृति अभिमत कार्योत्पादन के लिये स्वभाव योग से अधोमुख प्रवाह को प्राप्त होती है यथा अम्लयोग से क्षुब्ध दुग्ध दधिरूप कार्य की ओर प्रवृत्त होता है। तदनन्तर कालयोग से क्षुब्ध और स्वभाव योग से द्रुत अव्यक्त संज्ञक त्रिगुणात्मक प्रधान से अकृतार्थ जीवों के समष्टि प्रारब्ध रूप कर्म के योग से विवेक बल सम्पन्न सम्भावित कार्योत्पादन समर्थ महत्तत्त्व समुत्पन्न होता है जैसे कि निमन्त्रित ब्राह्मणों के प्रारब्ध रूप समष्टि कर्म के योग से क्षुब्ध और कार्योन्मुख प्रवाह युक्त दुग्ध दधि भावापन्न होता है। तदनन्तर गुण, काल, स्वभाव और कर्म के योग से महत्तत्त्व से तामस अहम् समुत्पन्न होता है। अहम् वैकारिक , तैजस तथा तामस तीन प्रकार का होता है। वैकारिक ( सात्त्विक) अहम् से ज्ञानशक्ति प्रधान कर्म सम्पादक मन के सहित इन्द्रियानुग्राहक अधिदैव समुत्पन्न होता है। तैजस (राजस) अहम् से क्रियाशक्ति प्रधान कारण संज्ञक करणात्मक ज्ञानेन्द्रिय तथा कर्मेन्द्रिय रूप अध्यात्म समुत्पन्न होता है। तामस अहम् से शब्द तन्मात्रात्मक आकाश समुत्पन्न होता है। शब्द तन्मात्रात्मक आकाश से स्पर्श तन्मात्रात्मक वायु समुत्पन्न होता है। स्पर्श तन्मात्रात्मक वायु से रुप तन्मात्रात्मक तेज समुत्पन्न होता है। रूप तन्मात्रात्मक तेज से रस तन्मात्रात्मक जल समुत्पन्न होता है। रस तन्मात्रात्मक जल से गन्ध तन्मात्रात्मिका पृथ्वी समुत्पन्न होती है। तदनन्तर चिद्धातु से अधिष्ठित पूर्व – पूर्व कार्य से गुण, काल, पुरूष संज्ञक चिदाभास, स्वभाव और कर्म के योग से उत्तरोत्तर कार्य की उत्पत्ति इस प्रकार होती है। शब्द तन्मात्रात्मक आकाश से स्थूल आकाश की उत्पत्ति होती है। शब्द तन्मात्र सहित स्पर्श तन्मात्रात्मक वायु से स्थूल वायु की उत्पत्ति होती है। शब्द स्पर्श तन्मात्र सहित रूप तन्मात्रात्मक तेज से स्थूल तेज की उत्पत्ति होती है। शब्द स्पर्श रूप तन्मात्र सहित रस तन्मात्रात्मक जल से स्थूल जल की उत्पत्ति होती है। शब्द स्पर्श रुप रस तन्मात्र सहित गन्ध तन्मात्रात्मक पृथ्वी से स्थूल पृथ्वी की उत्पत्ति होती है। अथवा शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध तन्मात्रात्मक अपञ्चीकृत पञ्चभूतों में प्रत्येक भूत के आधा अंश और शेष प्रत्येक चार भूतों के आठवें अंशों के योग से पञ्चीकृत पञ्चभूतों की समुत्पत्ति होती है। आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी रूप स्थूल पञ्चभूतों के तारतम्यज संघात से प्राणियों के स्थूल शरीर और बाह्य ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होती है।